साल 2019 में अनुच्छेद 370 का समाप्त करने और ‘नया कश्मीर’ बनाने के वादे के बाद भी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) जम्मू-कश्मीर के विधानसभा चुनाव में एक तिहाई सीटें तक नहीं जीत पाई। इतना ही नहीं इस केंद्रशासित प्रदेश के पार्टी अध्यक्ष रविंद्र रैना तक अपनी सीट नहीं बचा पाए। पार्टी को कश्मीर क्षेत्र में तो एक भी सीट नहीं मिली जबकि जम्मू क्षेत्र में भी उसे तगड़ा झटका लगा है।

भाजपा ने कश्मीर क्षेत्र की 47 विधानसभा सीटों में से केवल 19 पर ही अपने उम्मीदवार उतारे थे। यहां पार्टी का कोई उम्मीदवार नहीं जीता और सबसे बड़ी बात यह है कि इस क्षेत्र में भाजपा का मत फीसद इकाई अंक में ही रहा। कश्मीर तो छोड़िए, भाजपा के अपने गढ़ जम्मू क्षेत्र में भी उसका प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा। यहां की 43 सीटों में से पार्टी को केवल 29 सीटों से ही संतोष करना पड़ा जबकि पिछले चुनाव में यहां से पार्टी को 25 सीटें मिली थीं। अब सवाल उठता है कि देश में सरकार चला रही पार्टी के साथ जम्मू-कश्मीर में ऐसा क्यों हुआ।

इसमें पहला मुद्दा तो यह है कि पार्टी अनुच्छेद 370 की समाप्ति को लोगों को सही तरह से समझा नहीं पाई। जब अनुच्छेद 370 को खत्म किया गया उस दौरान काफी समय तक केंद्रशासित प्रदेश में प्रतिबंध लग रहे जिससे आम लोग परेशान हुए। जब स्थिति थोड़ी सामान्य होने लगी तो केंद्र सरकार ने विकास, नौकरियां और सुरक्षा के नाम पर ‘नया कश्मीर’ का वादा रखा।

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ मान रहे लोग

हालांकि, अनुच्छेद 370 हटाने से वहां के लोगों को जो नुकसान हुआ उसकी भरपाई करने के प्रयास बहुत कम हुए। इसके अलावा नैशनल कांफ्रेंस (नैकां) के फारूक अब्दुल्ला और पीडीपी की महबूबा मुफ्ती ने अनुच्छेद 370 को हटाने को जम्मू-कश्मीर की अस्मिता से जोड़ दिया। ऐसा माना जा रहा है कि कश्मीर ही नहीं बल्कि जम्मू के लोग भी अनुच्छेद 370 के हटाने के खिलाफ हैं। भाजपा ने ‘नया कश्मीर’ मुहिम के तहत आतंकवाद, अलगाववाद और पत्थरबाजी के खिलाफ कार्रवाई की जिसका लोगों ने स्वागत किया लेकिन कुछ लोग इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के खिलाफ भी मानते रहे।

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एक धारणा यह भी बनी की केंद्र सरकार लोगों को दबा रही है। यही वजह है कि भाजपा घाटी में कुछ खास नहीं कर पाई। इसके अलावा लोगों को केंद्र सरकार से उम्मीद थी कि वह घाटी के नौजवानों को नौकरी देगी लेकिन ऐसा नहीं होने पाने से लोगों ने भाजपा के विरुद्ध अपना गुस्सा जाहिर किया।

2014 में पीडीपी बनी थी सबसे बड़ी पार्टी

जम्मू-कश्मीर में आखिरी बार 2014 में विधानसभा चुनाव हुए थे। यहां की 87 सीटों में से पीडीपी ने 28, भाजपा ने 25, नैशलन कांफ्रेंस ने 15 और कांग्रेस ने 12 सीटें जीती थीं। भाजपा और पीडीपी ने मिलकर सरकार बनाई और मुफ्ती मोहम्मद सईद मुख्यमंत्री बने। जनवरी 2016 में मुफ्ती मोहम्मद सईद का निधन हो गया। करीब चार महीने तक राज्यपाल शासन लागू रहा। इसके बाद में उनकी बेटी महबूबा मुफ्ती मुख्यमंत्री बनीं, लेकिन ये गठबंधन ज्यादा नहीं चला।

19 जून, 2018 को भाजपा ने पीडीपी से गठबंधन तोड़ लिया, राज्य में राज्यपाल शासन लागू हो गया। अभी जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन लागू है।