‘महाभारत रूपी महायज्ञ का अंत होने वाला था और इसका निर्णय क्या होने वाला था, यह केवल श्रीकृष्ण जानते थे। ऐसे कौन-से जीवन-मूल्य इसमें से उभरने वाले थे, जिसका पालन मानव जाति पीढ़ियों तक करती रहेगी, यह भी भगवान वासुदेव ही जानते थे। इस महायुद्ध में भाग लेने वाले प्रत्येक व्यक्ति को इतना अवश्य ज्ञात हुआ था कि यह युद्ध केवल कौरव-पाण्डवों के राज्याधिकार अथवा दुष्ट निर्दलन के लिए नहीं लड़ा जा रहा था। वह इससे बढ़कर कुछ था।’ सच में अगले वर्ष का लोकसभा चुनाव भी कुछ ऐसा ही होने वाला है।
प्रधानमंत्री के तीसरे कार्यकाल की घोषणा करने से राजनीतिक माहौल गर्म
परिणाम यहां भी केवल ऊपर बैठा सर्वशक्तिमान ईश्वर ही जानता है, क्योंकि आज की तारीख में उस काल जैसी सर्वज्ञ जानने वाला कोई नहीं है, लेकिन 15 अगस्त को लालकिले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2024 में होने जा रहे लोकसभा चुनाव का शंखनाद करते हुए अपने तीसरे कार्यकाल के लिए देश को जो भविष्य का संदेश दिया, उसके परिणामस्वरूप आज देश में राजनीतिक माहौल गर्म हो गया है। हां, महाभारत के युद्ध को धर्मयुद्ध कहा गया, लेकिन आज जिस युद्ध की बात की जा रही है, उसे धर्मयुद्ध नहीं चुनाव कहा जाता है। वैसे इस चुनाव की परिकल्पना हमारे संविधान निर्माताओं ने धर्मयुद्ध के रूप में ही किया था, लेकिन अब ऐसा कहना बेमानी लगता है। अब एकमात्र उद्देश्य सत्ता की कुर्सी पर येन-केन-प्रकारेण काबिज होना ही माना जाता है।
अगले लोकसभा चुनाव में भी 26 और 38 दलों के बीच होगा संघर्ष
धर्मयुद्ध महाभारत में भी देश के कोने-कोने के राजाओं ने द्विपक्षीय युद्ध में भाग लेने आए थे। आगामी लोकसभा चुनाव में भी 26 और 38 दलों के बीच संघर्ष होगा। एक पक्ष सत्तारूढ़ भाजपा होगी, जिसमें 38 राजनीतिक दल शामिल होंगे और दूसरा पक्ष कांग्रेस विपक्ष के रूप में सामने रहेगा, जिसके साथ देश के 26 दल होंगे। भाजपा तो लगभग दस वर्षों से देश में सत्तारूढ़ है और उसका संगठन भी अपनी जीत के लिए नियमित रूप से देश की जनता के संपर्क में रहता है, जिसे लेकर समय-समय पर वाद-विवाद होता रहा है। लेकिन, हां जनता से जुड़कर सरकार को महिमामंडित करने में बढ़-चढकर हिस्सा लेना उसकी विशेषता रही है।
देश में किसी प्रकार की कोई गतिविधि हो, विपक्षी का आरोप होता है कि सत्तारूढ़ दल भाजपा का संगठनात्मक कार्यकर्ता उसमें जुड़े रहे होंगे। उनका इशारा आरएसएस, बजरंग दल की ओर जरूर होता है। विपक्ष, खासकर कांग्रेस तो हर बात के लिए जैसे जातीय संघर्ष, हिंदू-मुस्लिम दंगों के लिए आरएसएस को ही जिम्मेदार मानती रहती है। जो भी हो सत्तारूढ़ और विपक्ष के बीच इस तरह का आरोप-प्रत्यारोप तो एक दूसरे पर लगाते ही रहते हैं, क्योंकि यदि ऐसा नहीं करेंगे तो जनता के बीच उनकी घुसपैठ कैसे होगी और वे आगामी चुनाव में अपनी किन विशेषताओं को लेकर जाएंगे?
उन्हें जनता को प्रलोभन तो देना ही होगा, क्योंकि हमारा देश अभी तक पूर्ण शिक्षित नहीं हो सका है और जब तक देश का शत-प्रतिशत व्यक्ति शिक्षित नहीं होगा, इसी तरह गैर शिक्षित समाज देश पर राज करता रहेगा। वैसे हमारे संविधान निर्माताओं ने ऐसा कुछ नहीं कहा था कि जनप्रतिनिधित्व करने वालों के लिए शिक्षा का कोई पैमाना, कोई ऐसा नियम नहीं बनाया, क्योंकि उनकी सोच यह थी कि जो जनप्रतिनिधि होगा, वह जनता के बीच का होगा, और वह जनता की हर समस्या से रू-ब-रू रहता होगा, इसलिए उसकी योग्यता पर कोई बल नहीं दिया गया।
इधर दूसरे पक्ष ने पुराने दिग्गजों और नए चेहरों से कांग्रेस ने अपने को मजबूत करने का प्रयास किया है तथा पुराने अनुभवी 90 वर्षीय अर्थशास्त्री और पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को गरिमानुसार उनके महत्व को समझते हुए प्रियंका गांधी, सचिन पायलट तथा शशि थरूर और फायर ब्रांड नेता कन्हैया कुमार, सुप्रिया श्रीनेत, पवन खेड़ा, श्रीनिवास बीवी को अपनी अग्रिम पंक्ति में शामिल करके एक लंबी-चौड़ी और मजबूत जन नेताओं को सामने खड़ा कर दिया है। वहीं, राहुल गांधी की बढ़ती लोकप्रियता भाजपा के मन में एक डर पैदा कर दिया है।
भाजपा के मन में इस डर को इस प्रकार भी देखा जा सकता है कि संसद में चाहे मणिपुर को लेकर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा की बात हो अथवा लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री का राष्ट्र के नाम का संबोधन हों, चर्चा चुनाव पर ही शुरू हो जाती है। विशेष रूप से स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद शायद ही ऐसा हुआ होगा, जब प्रधानमंत्री बार-बार अपने विपक्षी दलों का नाम लिया हो और अपनी प्रशस्ति में नारे संसद में लगवाए हों। आलोचक अब यह कहने लगे हैं कि प्रधानमंत्री जब सदन और सदन के बाहर सीना ठोक ठोककर बार-बार यह कहते हैं कि ‘एक अकेला सब पर भारी’ तो फिर 38 दलों को इकट्ठा करने का क्या मतलब है? जिस एनडीए के गठन के बाद कभी कोई बैठक नहीं हुई, उसे INDIA के गठन के बाद इस बैठक की क्या जरूरत पड़ने लगी?
लाल किले से पीएम का भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टिकरण के खिलाफ जंग का ऐलान
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लालकिले की प्राचीर से 10वीं बार देश को संबोधित किया। यह उनके दूसरे कार्यकाल का आखिरी झंडारोहण संबोधन था। प्रधानमंत्री ने कहा कि ‘भारत दुनिया का सबसे युवा देश है।’ प्रधानमंत्री ने देश के 140 करोड़ जनता को संबोधित करते हुए पहली बार कहा कि यह एक परिवार है। मणिपुर का उल्लेख करते हुए उन्होंने कहा कि वहां अब शांति है। युवा को प्रोत्साहित करते हुए कहा कि युवा शक्ति में सामर्थ्य है और हमारी नीति उसे बल देने के लिए है। उन्होंने अपने संबोधन में विशेषरूप से जिसका उल्लेख किया, वे थे भ्रष्टाचार, परिवारवाद और तुष्टिकरण। प्रधानमंत्री देशवासियों से अपील करते हैं कि वे उनसे लड़ें।
उन्होंने आगे कहा ‘मेरे प्रिय परिवारजनो, ये मोदी के जीवन का कमिटमेंट है। ये मेरे व्यक्तित्व का कमिटमेंट है कि मैं भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई लड़ता रहूंगा। दूसरा, हमारे देश को नोच लिया है, परिवारवाद ने। इस परिवारवाद ने देश को जिस प्रकार से जकड़कर रखा है, उसने देश के लोगों का हक छीना है। तीसरी बुराई तुष्टीकरण की है। इस तुष्टीकरण ने देश के मूलभूत चिंतन को दाग लगा दिया है, तहस-नहस कर दिया है । इसलिए मेरे प्यारे परिवारजनो, हमें इन तीन बुराइयों के साथ पूरे सामर्थ्य से लड़ना है।’
अब ऐसा लगने लगा है कि सरकार को अपनी कमी का अहसास हो गया है, इसलिए वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले मतदाताओं को लुभाने के लिए कई आकर्षक उपहार देने की योजना बनाई गई है। जो जानकारी समाचार पत्रों से मिल रही हैं उसके अनुसार सबसे पहले सरकार शहर में अपना मकान बनाने वालों के लिए नई योजना की औपचारिक घोषणा कर सकती है। विश्वकर्मा योजना के तहत 18 प्रकार के पारंपरिक पेशेवरों को अधिकतम पांच प्रतिशत की दर से एक लाख रुपए का लोन वितरण का काम शुरू हो जाएगा। मार्च तक मुफ्त अन्न योजना बढ़ाई जा सकती है । पेंशन का नया मॉडल आ जाएगा, सस्ते दर पर मकान खरीदने की योजना घोषित की जा सकती है। चुनाव से पहले इस प्रकार के लुभावने घोषणाओं का अर्थ समझने में किसी को कोई कठिनाई नहीं होगी।
‘अपनी-अपनी जीत के लिए हम कुछ भी करेंगे’ के फार्मूले पर चलते हुए जनता को साधने का हर संभव प्रयास दोनों पक्षों द्वारा किया ही जाएगा, लेकिन अब समझने की बारी उनकी है, जो अब तक सत्ता की उदासीनता से ऊबकर देश तक छोड़ने के लिए तैयार हैं। आलोचक कहते हैं कि प्रधानमंत्री जब भ्रष्टाचार की बात करते हैं, तो सब पार्टियों के नकारे भ्रष्टाचारियों को वाशिंग मशीन में धुलाकर अपने दल में शामिल करने वालों को वे क्यों नहीं देखते हैं? कई भाजपा की नाक के बाल बने नेताओं का उल्लेख करते हुए असम के मुख्यमंत्री और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री का नाम विशेष रूप से लेते हुए कहते हैं कि भाजपा एक नीति के तहत ऐसा कुछ करती है क्योंकि उसे स्वार्थ साधना है । भाजपा की आलोचना इस बात के लिए भी जमकर होती है जब परिवारवाद की बात उनके द्वारा की जाती है।
आलोचक का कहना होता है कि आज परिवारवाद की बात किसी भी दल के लिए की जाए, तो सर्वाधिक परिवारवादी लोग तो भाजपा में ही हैं। दरअसल, भाजपा नीति के तहत गांधी परिवार को अपमानित करना, समाज में उन्हें बदनाम करने के उद्देश्य से ही भाजपा द्वारा और विशेष रूप से प्रधानमंत्री द्वारा सार्वजनिक रूप से चर्चा का विषय होता रहा है। तीसरी बुराई तुष्टिकरण की बात, जब भाजपा द्वारा की जाती है, तो उसका भी एकमात्र उद्देश्य पिछली सरकार और कांग्रेस पर प्रहार करना ही होता है।
जो भी हो, जुमलों और आलोचनाओं को सुन-सुन कर जनता अब आजिज आ चुकी है और अब सर्वस्वीकार को अपना नेता मानने को तैयार बैठी है। इसलिए अगला लोकसभा का चुनाव आजादी के बाद का सर्वाधिक महत्वपूर्ण होगा और भयंकर भी होगा तथा महाभारत की तरह उसे भी हम धर्मयुद्ध भी कह सकते हैं। अब समाज के श्रेष्ठ जनों को आगे आना ही होगा, अन्यथा आगे की पीढ़ियों के लिए उनके पास पश्चात्ताप के अतिरिक्त कुछ भी नहीं बचेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)