पंजाब में 14 फ़रवरी को निकाय चुनाव होने हैं. कृषि कानून के मुद्दे को लेकर पंजाब पूरी तरह से गर्म है और साथ ही वहां एनडीए में भी फूट पर चुकी है। कृषि कानून को लेकर बीजेपी और अकाली दल के बीच सालों से चल रहा गठबंधन भी टूट चूका है। हालाँकि पहले भी बीजेपी अकाली दल के छोटे भाई होने के नाते ही चुनाव लडती थी। दिल्ली की सीमा पर पिछले दो महीनों से भी अधिक समय से चल रहे आंदोलन को लेकर पंजाब में भाजपा को भयंकर नुकसान उठाना पड़ सकता है। इतना ही नहीं कई स्थानीय नेताओं को किसानों के गुस्से का सामना भी करना पड़ रहा है। कई भाजपा नेता की माने तो प्रचार के दौरान प्रदर्शनकारी उनका पीछा भी कर रहे हैं।

पंजाब के निकाय चुनाव में भाजपा को स्थानीय लोगों के गुस्से भयंकर सामना करना पड़ रहा है। यहाँ तक कि भाजपा निकाय चुनाव में दो तिहाई सीटों पर उम्मीदवार तक नहीं ढूंढ पायी है। इतना ही नहीं करीब 20 से ज्यादा नेताओं ने सिर्फ जनवरी में पार्टी छोड़ दी है। पार्टी छोड़ने वाले नेताओं में भाजपा के बड़े सिख चेहरे मलविंदर सिंह कंग का नाम भी शामिल है।  इतना ही नहीं भाजपा के नेता यह भी कह रहे हैं कि उन्हें आन्दोलनकारियों के सामने जाने में भी डर लगता है और किसान उनका पीछा भी करते हैं। इसके अलावा कई नेताओं ने अपनी गाड़ियों से भाजपा का झंडा भी उतार दिया है। यहाँ तक कि 26 जनवरी को दिल्ली में हुई हिंसा के बाद पंजाब में भाजपा के द्वारा आयोजित किये गए तिरंगा यात्रा को भी टाल दिया गया है।

भाजपा के बड़े नेताओं को अक्टूबर के महीने से ही विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इतना ही नहीं कई नेताओं का सामाजिक बहिष्कार भी कर दिया गया है। भाजपा के बड़े सिख चेहरे हरजीत ग्रेवाल के द्वारा किसानों को अर्बन नक्सल कहे जाने से भी लोग काफी नाराज चल रहे हैं। कई लोगों ने तो उनको निकाय चुनाव लड़ने तक की चुनौती दे रखी है। आपको बता दूँ कि किसान आंदोलन के बीच में हरजीत ग्रेवाल प्रधानमंत्री मोदी से मिलने दिल्ली भी गए थे इस दौरान उनके साथ भाजपा नेता सुरजीत ज्यानी भी मौजूद थे। प्रधानमंत्री मोदी से मिलने के बाद सुरजीत ज्यानी ने किसान आंदोलन को बगैर नेता के चल रहा आंदोलन बताया था।

14 फरवरी को आठ नगर निगमों की 2,302 सीटों पर होने वाले निकाय चुनाव और 109 नगर पंचायतों में होने वाले चुनावों में नए कृषि कानूनों को लेकर भाजपा के खिलाफ गुस्से का पहला प्रतिबिंब देखने को मिलेगा। लंबे समय से भाजपा की सहयोगी रही अकाली दल को इन कानूनों का विरोध करने के बावजूद भी लोगों के गुस्से का सामना करना पड़ रहा है। हालाँकि सत्तारूढ़ कांग्रेस को भी लोगों के नाराजगी का हल्का सामना करना पड़ रहा है।