BJP Hindutva Politics: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने आगरा के कार्यक्रम में जन्माष्टमी के दिन अपने संबोधन में जो बयान दिया, वह BJP के बदलते कलेवर का संकेत दे रहा है। CM Yogi ने हिंदुओं को लेकर कहा कि हिंदू अगर ‘बंटेंगे तो कटेंगे और एक रहेंगे तो नेक, यानी सुरक्षित रहेंगे। योगी आदित्यनाथ लगातार UP के अलग-अलग जिलों का दौरा कर रहे हैं, और वे जहां भी भाषण देते हैं; तो उन भाषणों में ‘हिंदुत्व’, ‘हिंदू’, ‘बांग्लादेश में हिंदू’, और ‘हिंदुओं की एकता’ जैसे कीवर्ड्स जरूर शामिल होते हैं। इसके चलते यह सवाल उठने लगे हैं कि क्या BJP ने उत्तर प्रदेश से एक बार फिर देश को सियासत के लिए हिंदुत्व मोड ऑन कर दिया है?
BJP को 2024 के लोकसभा चुनाव में सबसे बड़ा नुकसान उत्तर प्रदेश से ही हुआ था, जहां समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के PDA गठबंधन ने यह नेरेटिव चलाया था कि बीजेपी अगर सत्ता में आई तो आरक्षण खत्म कर देगी क्योंकि वह पिछड़ा वर्ग विरोधी मानसिकता वाली पार्टी है। जातीय जनगणना के मुद्दे पर पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से लेकर लोकसभा में नेता विपक्ष राहुल गांधी, मोदी सरकार पर हमलावर हैं, तो इस दौरान UP में योगी आदित्यनाथ जाति से ज्यादा अपने बयानों के जरिए हिंदुत्व की राजनीति को मजबूत करने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं।
‘हिंदू बंटेंगे-तो कटेंगे’, CM योगी बोले – बांग्लादेश वाली गलती यहां न हो
UP By-Poll पहली बड़ी परीक्षा
देश में इस वक्त जम्मू कश्मीर में 10 साल बाद हो रहे विधानसभा चुनावों और हरियाणा विधानसभा चुनाव की चर्चा है लेकिन यूपी में योगी आदित्यनाथ के सामने सबसे बड़ा टेस्ट अगले तीन से चार महीनों में होने वाले 10 विधानसभा सीटों के उपचुनाव हैं। जिसके लिए सीएम योगी ने मंत्रियों की टीम बना दी है, अंदरखाने रणनीतियां बनाई जा रही हैं, और यूपी में खुलकर सीएम योगी हिंदुत्व की बात जोर-जोर से उठा रहे हैं। एक सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर जिन योगी आदित्यनाथ को चंद हफ्ते पहले, लोकसभा चुनाव परिणाम माकूल न आने के चलते हटाने की हवा बनाई जा रही थी, वहीं योगी अचानक इतने फायर मोड में कैसे आ गए हैं?
केंद्र और RSS से मिली हरी झंडी?
लोकसभा चुनाव के बाद राष्ट्रीय स्वयंसेवक प्रमुख मोहन भागवत का गोरखपुर में 5 दिन का दौरा हुआ था और यहां उनकी मुलाकात मुख्यमंत्री योग योगी आदित्यनाथ से भी हुई थी। सूत्र यह भी बताते हैं कि पर्दे के पीछे से RSS भी पूरी तरह से योगी आदित्यनाथ का समर्थन कर रहा है और यूपी के अलग-अलग विभागों के मंत्रियों के साथ होने वाली बैठकों में भी RSS के नेता शामिल हैं, जिससे न केवल कार्यकर्ताओं की नाराजगी को दूर किया जाए बल्कि योगी आदित्यनाथ के खिलाफ तैयार किए गए माहौल को खत्म किया जा सके।
उत्तर प्रदेश हमेशा से ही बीजेपी के लिए हिंदुत्व की सबसे बड़ी प्रयोगशाला रहा है और इसीलिए योगी आदित्यनाथ का हिंदुत्व के मुद्दे पर आक्रामक होना बीजेपी की नई सियासी रणनीति के संकेत दे रहा है, जिसका असर पूरे देश पर दिख सकता है। माफियाओं और अपराधियों के खिलाफ बुलडोजर एक्शन लेना हो या लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाना हो… देश की बीजेपी शासित राज्यों की सरकारों ने अगर किसी राज्य को फॉलो किया है, तो वह मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का उत्तर प्रदेश ही है। ऐसे में यह माना जा रहा है कि आने वाले वक्त में अगर बीजेपी शासित राज्यों के मुख्यमंत्रियों और वहां के वरिष्ठ नेताओं द्वारा हिंदुत्व या हिंदुओं को लेकर आक्रामक बयान आते हैं तो वह योगी आदित्यनाथ का ही इफ़ेक्ट होगा।
मध्य प्रदेश से ‘मोहन’ आक्रामक
जन्माष्टमी के दिन ही एक तरफ जहां सीएम योगी आदित्यनाथ ने हिंदुओं को लेकर ‘बंटेंगे तो कटेंगे’ वाला बयान दिया तो दूसरी ओर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने भी हिंदुत्व को धार देते हुए एक बड़ा बयान दिया और यह तक कहा कि जो लोग भारत में रहते हैं, उन्हें राम-कृष्ण की जय बोलनी ही होगी। मोहन यादव ने कहा कि रहीम-रसखान जैसे महान लोगों का हम गुणगान करते हैं जो भारत की खाते थे और यहीं की बजाते थे। मोहन यादव ने कहा कि यह नहीं चलेगा कि भारत की खान और कहीं और की बजाना।
जाति की काट ‘हिंदुत्व’
कांग्रेस नेता राहुल गांधी इस वक्त किसी भी मुद्दे पर जातीय अस्मिता का जिक्र करके बीजेपी को घेर ले रहे हैं, जैसा उन्होंने हालिया UPSC लेटरल मामले में किया था। जाति से जुड़े मुद्दों पर बीजेपी इस समय बैक फुट पर नजर आ रही है। बीजेपी अच्छे से जानती है कि उसका उदय ही हिंदुत्व की बिसात पर हुआ था, जिसके चलते 1984 के लोकसभा चुनाव में महज़ दो सीटें जीतने वाली पार्टी अगले एक दशक में उत्तर प्रदेश समेत उत्तर भारत के कई राज्यों में सत्ता पर काबिज हो गई थी, और इसीलिए यह माना जा रहा है कि बीजेपी अब धीरे-धीरे अपने पुराने हिंदुत्व वाले दौड़ में लौटती नजर सकती है।
मंडल की राजनीति को कमजोर करने के लिए लालकृष्ण आडवाणी की रथयात्रा वाला ‘हिंदुत्ववादी कार्ड’ बीजेपी के लिए सफल रहा था। अपने हिंदुत्ववादी कार्ड के जरिए ही एक वक्त बीजेपी इतनी मजबूत हो गई थी कि समाजवाद की बात करने वाले नीतीश कुमार से लेकर शरद यादव, रामविलास पासवान जैसे नेता भी एनडीए के तहत बीजेपी के ही खेमे में आ गए थे। इन सबके चलते ही एनडीए के तहत पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपयी ने 5 साल पूर्ण बहुमत की सरकार चलाई थी।
बीजेपी के ही एक धड़े में लोकसभा चुनाव के बाद यह भी कहा जाने लगा है कि PM मोदी का ‘सबका साथ सबका विकास’ वाला फॉर्मूला पार्टी के लिए नुकसान की वजह बना है, क्योंकि नए समीकरण साधने की धुन में पार्टी आलाकमान ने अपने पुराने वोट बैंक को तवज्जो नहीं दी, जो कि उसे केवल इसीलिए वोट देता था क्योंकि पार्टी हिंदुत्व को लेकर मुखर थी।
पीएम मोदी वैसे तो खुले तौर पर हिंदुत्व को लेकर ज्यादा कुछ नहीं बोले हैं, लेकिन हालिया बांग्लादेश कांड में जिस तरह से उन्होंने एक या दो नहीं बल्कि कई बार बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हो रहे अत्याचारों का जिक्र किया, तो वह बयान भले ही कूटनीतिक रहा हो, लेकिन उसका संदेश मूल तौर पर देश के बहुसंख्यक वर्ग के लिए ही था, कि वे अब एक बार फिर अपनी मूल विचारधारा की तरफ लौट रहे हैं। संभवतः इसीलिए योगी आदित्यनाथ से लेकर मोहन यादव और हिमंता बिस्वा सरमा पुनः आक्रामक होकर हिंदुत्व की पिच पर उतर चुके हैं।