उत्तर प्रदेश में मिशन 80 का सब्जबाग पाल कर 18वीं लोकसभा के चुनाव में उतरी भारतीय जनता पार्टी को आखिर 27 सीटों का नुकसान क्यों हुआ? वह अकेले 33 सीटों पर सिमट क्यों गई? आखिर वे कौन सी ऐसी वजहें थीं, जिससे भाजपा को उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने अपनी नजरों से उतार दिया?

चुनाव परिणाम आने के एक पखवाड़े बाद भी इस बात पर मंथन जारी है। पार्टी के नेता अब तक हार के कारणों की पड़ताल करने में जुटे हैं लेकिन उन्हें वह सिरा नहीं मिल रहा है, जिसे पकड़ कर वे मूल कारणों की तह तक पहुंच सकें।

खेमों में बंटी हुई है भाजपा

BJP के 80 पदाधिकारियों की 40 टीमें उत्तर प्रदेश में हार के कारण तलाशने के काम में जुटी हैं। इस बात की पड़ताल की जा रही है कि आखिर वाराणसी में प्रधानमंत्री के जीतने का प्रतिशत इतना कम क्यों रहा। यदि तह में जाकर हार के कारणों की पड़ताल की जाए तो यह बात साफ हो जाती है कि उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी कई खेमों में बंटी हुई है और ये सभी खेमे दूसरे खेमे के नेताओं और उनके कार्यकर्ताओं से खुद को अधिक श्रेष्ठ बनाने की होड़ में जुटे हुए हैं।

प्रदेश में इतनी बड़ी हार झेलने के बाद भी पार्टी में खेमेबाजी कम नहीं हुई है। विधानसभा चुनाव में अपनी सीट हार जाने के बाद भी प्रदेश सरकार में उच्च पद पर बैठे नेता दिल्ली को यह बताने की अब भी पूरी कोशिश में जुटे हैं कि दरअसल उन्होंने पार्टी को जिताने की पूरी कोशिश तो की थी, लेकिन दूसरे खेमे के नेताओं की वजह से पार्टी को इतनी करारी हार का सामना करना पड़ा।

उत्तर प्रदेश के एक वरिष्ठ भाजपाई कहते हैं, इतने खेमे भाजपा में कभी नहीं रहे। लोकसभा चुनाव के दौरान पहली बार ऐसा देखने को मिला कि केंद्र से आए नेताओं के हेलिकाप्टर में बैठ कर या उनके साथ मंच साझा करने वाले नेताओं की संख्या अधिक दिखी। नेताओं की ये वे जमात है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह सरीखे नेताओं के साथ अपनी फोटो खिंचवा कर उसे सोशल मीडिया पर डालने पर अधिक केंद्रित रही।

2019 से ही मिलने लगे थे संकत

उत्तर प्रदेश में 2014 के लोकसभा चुनाव के पहले तक भाजपा के प्रमुख पद पर रहे एक नेता कहते हैं, 2014 में 75 सांसद जीतने के बाद 2017 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 311 सीटों पर जीती और सरकार बनाई। एक लोकसभा में पांच विधानसभा की गणित के हिसाब से 2017 में ही उत्तर प्रदेश की जनता ने संकेत देने शुरू कर दिए थे। 2019 में राजग को उत्तर प्रदेश में 61 सीटें मिलीं। इसके बाद भी केन्द्रीय नेतृत्व की अकल ठिकाने नहीं आई। केंद्र के इशारे पर प्रदेश में खेमेबाज नेताओं की पूछ लगातार बढ़ती रही, जबकि जनता कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की शक्ल में दूसरे विकल्प पर विचार करती रही।

2022 विधानसभा चुनाव परिणाम के बाद नहीं हुआ कोई चिंतन?

2022 के विधानसभा चुनाव में भाजपा 251 सीटों पर आ कर सिमट गई। उसके बाद भी भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व कान में तेल डाले सोता रहा। इतना सब हो जाने के बाद भी खेमेबाजी करने में महारत रखने वाले नेता केंद्र के इशारे पर प्रदेश सरकार में उच्च पद लेने के बाद भी सक्रिय रहे। आज परिणाम सामने है। डबल इंजन की सरकार की राहुल गांधी और अखिलेश यादव ने हालत खस्ता कर दी है। इतना सब कुछ होने के बाद भी केंद्रीय नेतृत्व उन्हीं खेमेबाज नेताओं पर आश्रित है।