Bihar SIR: सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को बिहार विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर सुनवाई हुई। इस दौरान शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि बड़े पैमाने पर बहिष्करण होता है, तो कोर्ट हस्तक्षेप करेगा। कोर्ट ने यह टिप्पणी बिहार SIR प्रक्रिया में भारत के चुनाव आयोग द्वारा प्रकाशित की जाने वाली मसौदा सूची से 65 लाख मतदाताओं के बाहर होने की आशंकाओं के बीच की।

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने बिहार एसआईआर को चुनौती देने वाली याचिकाओं को 12 और 13 अगस्त को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया।

एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) की ओर से पेश हुए अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने कोर्ट को चुनाव आयोग के इस कथन के बारे में बताया कि 65 लाख लोगों ने एसआईआर प्रक्रिया के दौरान गणना फॉर्म जमा नहीं किए हैं, क्योंकि वे या तो मर चुके हैं या स्थायी रूप से कहीं और चले गए हैं। भूषण ने पीठ को बताया कि इन लोगों को सूची में शामिल होने के लिए नए सिरे से आवेदन करना होगा।

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि भारत का चुनाव आयोग एक संवैधानिक संस्था होने के नाते, कानून के अनुसार कार्य करने वाला माना जाएगा। उन्होंने आश्वासन दिया कि कोर्ट आपकी चिंताओं पर सुनवाई करेगा। जस्टिस कांत ने आश्वासन दिया कि हम यहां हैं और हम आपकी बात सुनेंगे।

जस्टिस बागची ने कहा कि यदि कोई एसआईआर नहीं था, तो जनवरी 2025 की सूची शुरुआती बिंदु है। मसौदा सूची ईसीआई द्वारा प्रकाशित की जाएगी। आपकी आशंका है कि 65 लाख मतदाता इसमें शामिल नहीं होंगे। वे (ईसीआई) 2025 की प्रविष्टि के संबंध में सुधार की मांग कर रहे हैं। हम न्यायिक प्राधिकारी के रूप में इस मामले की समीक्षा कर रहे हैं। यदि बड़े पैमाने पर बहिष्कार होता है, तो हम तुरंत हस्तक्षेप करेंगे। 15 लोगों को यह कहते हुए लाओ कि वे जीवित हैं।

राजद सांसद मनोज झा की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि वे जानते हैं कि 65 लाख लोग कौन हैं, अगर वे मसौदा सूची में नामों का उल्लेख करते हैं, तो हमें कोई समस्या नहीं है।

जस्टिस कांत ने कहा कि अगर मसौदा सूची में स्पष्ट रूप से कुछ नहीं लिखा है, तो आप इसे हमारे संज्ञान में लाएं। चुनाव आयोग की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी ने कहा कि प्रक्रिया के तहत मसौदा सूची पर आपत्तियां दर्ज करने की अनुमति है।

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बता दें, 24 जून, 2025 के एक आदेश के तहत निर्वाचन आयोग ने जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 21(3) के तहत शक्तियों का प्रयोग करते हुए बिहार के लिए एसआईआर प्रक्रिया शुरू की थी। कल, न्यायालय ने चुनाव आयोग को मतदाता सूची में संशोधन करते समय आधार कार्ड और ईपीआईसी कार्ड पर विचार करने का सुझाव दिया , क्योंकि इन दोनों दस्तावेजों के मामले में “सत्यता की धारणा” है । सुनवाई की तारीख तय करने के लिए मामले को आज सूचीबद्ध किया गया था।

गौरतलब है कि चुनाव आयोग 1 अगस्त को बिहार की मतदाता सूची का मसौदा सार्वजनिक करने वाला है। हालांकि कल इस मसौदा सूची को जारी करने से रोकने का अनुरोध किया गया था, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने यह कहते हुए इसे अस्वीकार कर दिया कि यह केवल एक मसौदा सूची है और अगर अंततः कोई अवैधता पाई जाती है, तो पूरी सूची को रद्द किया जा सकता है। साथ ही,जस्टिस कांत ने चुनाव आयोग पर ज़ोर दिया कि “सामूहिक बहिष्कार” के बजाय, मतदाताओं का “सामूहिक समावेश” होना चाहिए। वहीं, SIR पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाने से इनकार किया है। पढ़ें…पूरी खबर।