नीतीश कुमार ने बिहार में सियासी खेला कर दिया है। एक बार फिर पलटी मारी गई है, फिर एनडीए से हाथ मिलाया गया है। नीतीश के इस सियासी एग्जिट के अपने कई कारण हैं। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम में असल विलेन कोई और ही निकला है। इस विलेन ने खुद को आगे रखने के लिए दूसरों को पूरी तरह नजरअंदाज किया। अपने आगे दूसरे को कुछ नहीं समझा और उसी का नतीजा है नीतीश कुमार की ये लेटेस्ट पलटी।
यहां बात हो रही है कांग्रेस की, देश की वो पार्टी जो बीते कुछ सालों में राष्ट्रीय स्तर पर काफी कमजोर हो चुकी है। कई चुनावी हारों ने इस पार्टी के एक जमाने में रहे मजबूत संगठन को जंग लगा दी है। लेकिन उसके बाद भी कांग्रेस हाईकमान खुद को कमतर आकने को तैयार नहीं। वो किसी के साथ भी समझौता नहीं कर पा रहा है, इसी वजह से इंडिया गठबंधन के बन जाने के बाद भी बंगाल में सीट शेयरिंग फेल हो चुकी है, यूपी में सहमति नहीं बन पा रही है, पंजाब में आम आदमी पार्टी अकेली जा रही है और अब बिहार में तो सबसे बड़ा सियासी खेला हुआ है।
जेडीयू के नेता केसी त्यागी ने मीडिया के सामने एक बयान दिया है, उसने साफ बता दिया है कि नीतीश के अलग होने के पीछे ना लालू हैं, ना तेजस्वी हैं, ना महागठबंधन है, बल्कि सारी गलती सिर्फ और सिर्फ कांग्रेस की रही है। केसी त्यागी ने कहा था कि कांग्रेस इंडिया ब्लॉक का नेतृत्व चुराना चाहती थी। 19 दिसंबर को हुई बैठक में मल्लिकार्जुन खड़गे का नाम (प्रधानमंत्री के रूप में) प्रस्तावित किया गया था। इसलिए इंडिया ब्लॉक के नेतृत्व को हथियाने के लिए साजिश रची गई थी।
अब इस बयान से एक बात तो साफ समझ आ रही है कि नीतीश कुमार किसी भी कीमत पर कांग्रेस के सामने झुकने को तैयार नहीं थे। इसके ऊपर जिस तरह से मल्लिकार्जुन खड़गे को इंडिया गठबंधन का अध्यक्ष नियुक्त किया गया, नीतीश को ये भी रास नहीं आया। अब ये समझना जरूरी है कि इस इंडिया गठबंधन को खड़ा करने का काम नीतीश कुमार ने किया था। वो समय सभी को याद है जब बिहार से दिल्ली के नीतीश ने कई चक्कर लगाए थे। कभी सीएम केजरीवाल से मुलाकात कर रहे थे, कभी सोनिया से समय मांग रहे थे। हर तरफ सिर्फ उन्हीं की चर्चा चल रही थी।
इसके ऊपर कांग्रेस को भी एक तरह का समर्थन नीतीश कुमार से ही मिल रहा था। जब-जब कांग्रेस के बिना गठबंधन की बात हुई, सबसे पहले काउंटर नीतीश ने ही किया। इसी वजह से जब इतनी मेहनत के बाद भी हाथ में कुछ नहीं आया, नीतीश नाराज हुए, उन्हें धोखा लगा। ये सच है कि सामने से उन्होंने किसी पद की मांग नहीं की, लेकिन ये भी सच है कि उनके सपने बड़े थे। पीएम पद के लिए उनका नाम जेडीयू द्वारा लगातार लिया जा रहा था। संयोजक बनाने को लेकर तो डील फाइनल ही हो गई थी। लेकिन ऐन वक्त पर जिस तरह से सभी ने खड़गे का साथ दिया, नीतीश नाराज हुए और अब ये सियासी खेला।
अब यहां समझने वाली बात ये है कि अगर पीएम पद कांग्रेस अपने पास रखना भी चाहती थी, वो नीतीश कुमार के नाम को संयोजक के लिए आगे कर सकती थी। माना दूसरी पार्टियों ने भी खड़गे का समर्थन किया, लेकिन क्योंकि कांग्रेस सबसे बड़ा दल है, हर फैसले में उसकी अहमियत भी मायने रखती है। लेकिन जिस सहजता के साथ खड़गे के नाम को स्वीकार कर लिया गया, नीतीश की ईगो हर्ट होना लाजिमी है।
अब एक तरफ तो कांग्रेस की तरफ से नीतीश को कोई पद नहीं दिया जा रहा है, लेकिन रिटर्न में पार्टी की डिमांड खत्म ही नहीं हो रही थी। बिहार में सिर्फ एक सीट जीतने वाली कांग्रेस 9 सीटों की मांग कर रही थी, यानी कि हर तरफ बस दबाने की कोशिश। अब नीतीश कुमार जैसे वरिष्ठ नेता को ये रवैया बर्दाश्त नहीं था, जिस तरह से छोटे दलों के साथ सलूक किया जा रहा था, उन्हें कुछ भी समझा नहीं जा रहा था, उन्होंने सबक सिखाने का मन बना लिया था।
वैसे भी जिस समय नीतीश ने इंडिया गठबंधन का साथ छोड़ा है, साफ संदेश जा रहा है कि चुनाव से ठीक पहले विपक्ष बिखर चुका है, आपसी लड़ाई की वजह से तल्खी चरम पर है। अब तो जिस तरह से जेडीयू ने भी कांग्रेस को ही जिम्मेदार ठहरा दिया है, आने वाले दिनों में देश की सबसे पुरानी पार्टी की मुश्किलें बढ़ना तय है। वैसे इस मुश्किल का अंदाजा उस समय लग गया था जब एमपी में कई घंटों के मंथन के बाद भी कांग्रेस एक सीट भी जेडीयू के लिए नहीं निकाल पाई थी। इस सियासी ड्रामे की आधी पटकथा तो तभी लिख दी गई थी। कांग्रेस का सिर्फ खुद को तवज्जो देने वाला रवैया कई को रास नहीं आ रहा था। बस नीतीश ने दो कदम आगे बढ़कर सीधे झटका देने का काम किया।
अब नीतीश के इस कदम से ममता बनर्जी, अखिलेश यादव और अरविंद केजरीवाल जैसे नेताओं की हिम्मत भी और ज्यादा बढ़ने जा रही है। विपक्ष एकजुट हो ना हो, लेकिन कांग्रेस को सभी सबक सिखाना चाहते हैं। इस बात का अहसास करवाना है कि अब उसका देश की राजनीति में स्वर्णिम काल नहीं रह गया है, उसे भी बड़ा दिल दिखाना पड़ेगा। यानी कि अभी तक कुर्बानी देने की कोशिश कर रही कांग्रेस को अब और ज्यादा झुकने को तैयार रहना पड़ेगा, हो सकता है कि उसे सीटें भी और ज्यादा कम करनी पड़ जाएं।