बिहार में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, और इसी के साथ ही सरकारी नौकरियों का श्रेय लेने की होड़ शुरू हो गई है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार ने गुरुवार को राज्य में 2.8 लाख सरकारी पदों पर भर्ती का विज्ञापन जारी किया। नीतीश कुमार की पार्टी जेडी(यू) को उम्मीद है कि इन भर्तियों से उन्हें चुनावों में फायदा मिलेगा। नीतीश के पूरे कार्यकाल में पांच लाख से अधिक पद भरे जाने की संभावना है, और अगर 2005 से गिनती की जाए तो यह आंकड़ा 10 लाख तक पहुंच सकता है। इसे आरजेडी नेता तेजस्वी यादव के उस दावे का जवाब माना जा रहा है, जिसमें उन्होंने रोजगार के मुद्दे पर बिहार में अपनी पकड़ मजबूत की थी।

तेजस्वी का दावा नीतीश सरकार को रोजगार पर ध्यान देने की प्रेरणा उन्हीं से मिली

2020 के विधानसभा चुनावों में तेजस्वी ने अपने अभियान में 10 लाख नौकरियों का वादा किया था, जिससे युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता बढ़ी। उन्होंने लोकसभा चुनावों में भी इसी मुद्दे को उठाया और 17 महीनों के दौरान तीन लाख पदों पर भर्ती कराने का दावा किया। तेजस्वी का कहना है कि नीतीश सरकार को रोजगार पर ध्यान देने की प्रेरणा उन्हीं से मिली है और उनकी पहल से सरकार पर नौकरियां देने का दबाव पड़ा।

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लोकसभा चुनावों में आरजेडी को उम्मीद के अनुसार सफलता नहीं मिली, लेकिन तेजस्वी का रोजगार का मुद्दा युवाओं के बीच अब भी लोकप्रिय है। सरकार ने 2.8 लाख नई नौकरियों की घोषणा की है, जिसमें 1.39 लाख रिक्तियां शिक्षा विभाग में हैं। पिछले तीन वर्षों में शिक्षा विभाग ने 2.5 लाख से अधिक लोगों को रोजगार दिया है, जो कि राज्य में सबसे अधिक है।

गृह विभाग, पंचायती राज समेत कई अन्य बोर्डों और निगमों में भी होंगी भर्तियां

इसके अलावा गृह विभाग में 22,730 रिक्तियां हैं, जिनमें 21,391 पद पुलिस कांस्टेबल के हैं। पंचायती राज विभाग में 4,070 और विभिन्न आयोगों, बोर्डों और निगमों में 11,783 पदों पर भर्तियां होंगी। पिछले बड़े स्तर की भर्तियां 2020 और 2022 के बीच हुईं थीं, जिसमें करीब 2.5 लाख शिक्षकों की नियुक्ति हुई थी। इसे नीतीश कुमार के कार्यकाल की सबसे बड़ी भर्तियां मानी जाती हैं।

हाल ही में एक वीडियो में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को डीजीपी आलोक राज से पुलिस विभाग के रिक्त पदों को जल्द से जल्द भरने का आग्रह करते हुए देखा गया। इस पर तेजस्वी यादव ने टिप्पणी करते हुए कहा कि यह एक “कमजोर और असहाय मुख्यमंत्री” की निशानी है, जो जनता के काम करवाने के लिए अधिकारियों के सामने हाथ जोड़ता है। उन्होंने कहा कि यह लोकतंत्र के लिए अच्छा संकेत नहीं है और नीतीश सरकार की कमजोरियों को उजागर करता है।

आरजेडी के प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने भी नीतीश की रणनीति पर निशाना साधते हुए कहा कि नौकरी सृजन का विचार तेजस्वी का है, और नीतीश कुमार पहले कहते थे कि सरकारी रिक्तियों को भरने के लिए फंड नहीं है। तिवारी ने दावा किया कि अब नीतीश पर दबाव है, और अगर 2025 में आरजेडी सत्ता में आई तो वे नौकरियां देने के साथ-साथ बिजली बिल माफी भी करेंगे।

वहीं, जेडी(यू) प्रवक्ता नीरज कुमार ने बिहार के विकास मॉडल की सराहना करते हुए कहा कि नीतीश कुमार के विचारों को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिल रही है और उनके कई ट्रेंडसेटिंग विचारों को केंद्र सरकार ने भी अपनाया है। नीरज ने कहा कि यह गलतफहमी है कि नीतीश किसी की नकल कर रहे हैं, बल्कि उनकी अपनी योजनाएं ही राज्य और देश के विकास में योगदान दे रही हैं।

बिहार में चुनावों से पहले रोजगार का मुद्दा राजनीतिक दलों के बीच एक अहम बहस का विषय बन गया है। नीतीश और तेजस्वी दोनों ही इस श्रेय को अपने पक्ष में करने के लिए पूरी तरह जुटे हुए हैं, जिससे राज्य में नौकरियों की घोषणा और भर्तियों का माहौल गर्मा गया है।