नीतीश सरकार बिहार में शराबबंदी कानून में ढील देने की तैयारी कर रही है। पहली बार शराब पीने वाले को गिरफ्तार किए जाने के बजाय जुर्माना लेकर छोड़ा जा सकता है और मामले को वापस लिया जा सकता है। इतना ही नहीं जिस वाहन में शराब पाई जाएगी उसे भी जब्त करने की बजाय जुर्माना लेकर छोड़ा जा सकता है। सरकार शराबबंदी कानून के उल्लंघन के मामले में तत्काल गिरफ़्तारी वाले नियम को हटा सकती है। हालांकि अवैध तरीके से शराब बनाने वाले और बेचने वालों के लिए कानून पहले की तरह ही कठोर रहेगा।
इंडियन एक्सप्रेस के पास बिहार निषेध और उत्पाद शुल्क अधिनियम, 2016 में होने वाले परिवर्तनों को लेकर तैयार किया गया प्रस्तावित मसौदा है। जिनमें इन तरह के सुधारों की बात कही गई है। यह प्रस्तावित संशोधन शराबबंदी कानून लागू करने को लेकर बिहार सरकार की आलोचना किए जाने के बाद तैयार किया गया है। दरअसल पिछले महीने मुख्य न्यायाधीश एन वी रमना ने शराबबंदी कानून को दूरदर्शिता की कमी बताया था और कहा था कि इसकी वजह से उच्च न्यायालय में काफी संख्या में जमानत आवेदन पेंडिंग हैं। एक साधारण जमानत आवेदन को भी निपटाने में एक साल लगता है।
हालांकि प्रस्तावित संशोधन मसौदे को लेकर जब इंडियन एक्सप्रेस द्वारा इसे तैयार करने वाले मद्य निषेध और आबकारी मंत्रालय के मंत्री सुनील कुमार से सवाल पूछा गया तो उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। लेकिन सूत्रों ने कहा है कि राज्य सरकार विधानसभा के आगामी बजट सत्र में इन्हें ला सकती है।
प्रस्तावित संशोधन प्रस्ताव में कई कानून में ढील दी है। जैसे मौजूदा कानून के धारा 37 के तहत शराब पीने पर पांच साल से लेकर 10 साल तक की जेल और यहां तक कि आजीवन कारावास की सजा का भी प्रावधान है। लेकिन संशोधन में सिर्फ जुर्माने की बात कही गई है। वहीं जुर्माना नहीं भुगतान करने की स्थिति में एक महीने कारावास की सजा मिल सकती है। प्रस्ताव में यह भी कहा गया है कि बार बार इसी तरह की घटना को अंजाम देने वाले अपराधियों के मामले में राज्य सरकार अधिसूचना द्वारा अतिरिक्त जुर्माना या कारावास या दोनों निर्धारित कर सकती है।
वर्तमान में सभी अपराधों की सुनवाई निचली अदालतों द्वारा की जाती है। लेकिन संशोधन के तहत इन अपराधों को कार्यकारी मजिस्ट्रेट द्वारा परीक्षण के माध्यम से निपटाया जाएगा, हालांकि कार्यकारी मजिस्ट्रेट डिप्टी कलेक्टर के पद से नीचे के नहीं होंगे। इससे प्रक्रिया में तेजी आने की उम्मीद है।
इसके अलावा धारा 55 को हटाने का भी प्रावधान है जिसके अनुसार सभी अपराध समझौते के योग्य नहीं हैं। इसका मतलब है कि अब मामलों को वापस लिया जा सकता है और अदालतों के अंदर या बाहर दो पक्षों के बीच समझौता किया जा सकता है। साथ ही धारा 57 के तहत शराब ले जाने के कारण जब्त किए गए वाहनों को जुर्माने के भुगतान पर छोड़ने की अनुमति देने का भी प्रावधान है।
इनमें अधिनियम के अध्याय VII को हटाना भी शामिल है जो अभियुक्तों की नजरबंदी से संबंधित है, जिसके तहत उनके गतिविधियों पर रोक लगाई जाती है। इसमें धारा 67 (बदर की अवधि का विस्तार), धारा 68 (अस्थायी रूप से लौटने की अनुमति), धारा 70 (तत्काल गिरफ्तारी) को हटाना भी शामिल है। आपराधिक नेटवर्क पर ध्यान केंद्रित करने के लिए एक नई उप-धारा 50 ए की योजना बनाई गई है जो अवैध तरीके से शराब बेचने और बनाने को संगठित अपराध के रूप में परिभाषित करती है।
सूत्रों के अनुसार पिछले साल के नवंबर महीने से लेकर अब तक कई जिलों में जहरीली शराब की वजह से हुई मौतों के कारण भी प्रस्तावित संशोधन को तैयार किया गया है। जदयू अपने सहयोगी भाजपा के दबाव में भी है जो शराबबंदी कानून के ठीक से लागू नहीं होने का आरोप लगाकर अक्सर हमला करती रहती है।