Bihar Ambulance: बिहार में 1600 करोड़ रुपये का एबुंलेंस का ठेका दिए जाने का मामला अब तूल पकड़ता जा रहा है। आरोप है कि नियम बदलकर जदयू सांसद के बेटे को कांट्रेक्ट देने की प्रक्रिया शुरू की गई थी। यह कांट्रेक्ट प्रक्रिया उस वक्त शुरू की गई थी, जब बिहार में जदयू-बीजेपी गठबंधन की सरकार थी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार थे। उस वक्त आरजेडी विधायकों ने इस मामले को लेकर आपत्ति जताई थी। साथ ही जांच की मांग की थी, लेकिन जैसे ही जदयू-बीजेपी का गठबंधन टूटा और बिहार की सत्ता में आरजेडी के सहयोग से महागठबंधन की सरकार बनी, उसके बाद यह पूरा मामला ठंडे वस्ते में चला गया।
इसके बाद राजद-जद (यू) राज्य सरकार ने बिहार ने अगले पांच साल के लिए राज्य भर में आपातकालीन एंबुलेंस चलाने का कांट्रेक्ट जद (यू) के एक सांसद के रिश्तेदारों के स्वामित्व वाली कंपनी को दिया है। इसने पहली बार अनुबंध में एक खंड भी जोड़ा है कि इसे तीन और वर्षों के लिए बढ़ाया जा सकता है। हालांकि यह पूरा मामला पटना हाई कोर्ट भी पहुंचा। हाई कोर्ट ने ऑक्सीजन,दवा, दस्तावेज लीक को लेकर तल्ख टिप्पणी भी की, लेकिन इन सबके बावजूद सरकार ने कोर्ट की टिप्पणी को अनदेखा कर दिया।
क्या है पूरा मामला-
यह पूरा मामला उससे जुड़ा है। जब 31 मई को 102 आपातकालीन सेवा के हिस्से के रूप में 2,125 एम्बुलेंस के बेड़े को चलाने के लिए 1,600 करोड़ रुपये का ठेका पटना स्थित पशुपतिनाथ डिस्ट्रीब्यूटर्स प्राइवेट लिमिटेड (पीडीपीएल) को दिया गया। PDPL को जहानाबाद के सांसद चंदेश्वर प्रसाद के रिश्तेदारों द्वारा चलाया जाता है। इसके तहत एंबुलेंस गंभीर मरीजों, गर्भवती महिलाओं और शिशुओं को नजदीकी सरकारी अस्पतालों में नि:शुल्क पहुंचाती है।
द इंडियन एक्सप्रेस द्वारा जांच किए गए आधिकारिक रिकॉर्ड बताते हैं कि 5 अप्रैल, 2022 को रिक्वेस्ट फॉर प्रपोजल (RFP) जारी किया गया, लेकिन इसके बाद से आपत्तियों के बीच मानदंडों को कैसे बदल दिया गया। पीडीपीएल के निदेशकों में जो लोग शामिल हैं, उनमें- सांसद के बेटे सुनील कुमार, सुनील कुमार की पत्नी नेहा रानी, सांसद के बेटे जितेंद्र कुमार की पत्नी मोनालिसा और सांसद के बहनोई योगेंद्र प्रसाद निराला।
पीडीपीएल द्वारा डायल 102 एंबुलेंस चलाने का यह दूसरा कार्यकाल है। 2017 में पीडीपीएल और सम्मान फाउंडेशन को एक कंसोर्टियम के रूप में लगभग 650 एम्बुलेंस चलाने के लिए 400 करोड़ रुपये का ठेका मिला था। हालांकि, इस बार सम्मान ने बिव्हीजी इंडिया लिमिटेड, मुंबई के साथ हाथ मिलाया।
टेंडर की शर्तों में किया गया था बदलाव
रिपोर्ट में कहा गया है कि टेंडर की शर्तों में बदलाव किया गया। पहले नियम था कि बोली लगाने वाले (एकमात्र बोली लगाने वाले के मामले में) को ‘कम से कम 750 एम्बुलेंस (50 उन्नत लाइफ़ सपोर्ट एम्बुलेंस के अलावा)’ के संचालन और प्रबंधन में अनुभव होना चाहिए, जो तीन वर्षों में ‘कम से कम 75 सीटों’ के कॉल सेंटर वाले रहे हों।
रिपोर्ट में कहा गया है कि पीडीपीएल ने स्वतंत्र रूप से बिहार में एम्बुलेंस सेवा नहीं चलाई थी और इन तीन वर्षों के दौरान केवल 50 सीटों का कॉल सेंटर था। इसी बीच स्टेट हेल्थ सोसाइटी ऑफ़ बिहार ने उन्नत लाइफ सपोर्ट एम्बुलेंस की निर्धारित संख्या को घटाकर 40 और कॉल सेंटर को 50 सीटों पर कर दिया। और इस तरह पीडीपीएल उस निविदा के लिए योग्य हो गई।
मई, 2022 में एक और बड़ा बदलाव किया गया। पहले जहां कहा गया था कि एजेंसी/बोली लगाने वाले का अंतिम चयन गुणवत्ता और लागत आधारित चयन के अनुसार होगा, लेकिन बाद में शुद्धिपत्र में कहा गया है, ‘एजेंसी का अंतिम चयन न्यूनतम लागत चयन पद्धति के अनुसार होगा’।
राजद के तीन विधायकों ने तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री को लिखा था पत्र
इस बीच जुलाई, 2022 में, राजद के तीन विधायकों- मुकेश कुमार रोशन, ऋषि कुमार और भाई वीरेंद्र ने बिहार के तत्कालीन स्वास्थ्य मंत्री भाजपा के मंगल पांडे को एक पत्र लिखा था। जिसमें आरोप लगाया गया था कि निविदा के दस्तावेज लीक किए गए थे और एक नई बोली प्रक्रिया की मांग की गई थी।
बीजेपी से अलग होने के बाद मामला ठंडे बस्ते में चला गया
हालांकि, 9 अगस्त, 2022 को नीतीश कुमार ने भाजपा से नाता तोड़ लिया और राजद और छह अन्य दलों के महागठबंधन में शामिल हो गए। तेजस्वी प्रसाद यादव डिप्टी सीएम और स्वास्थ्य मंत्री बने और वह शिकायत ठंडे बस्ते में चली गई। तेजस्वी यादव टिप्पणी के लिए उपलब्ध नहीं थे। इस बारे में पूछे जाने पर, राजद के मनेर विधायक और पार्टी प्रवक्ता भाई वीरेंद्र ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया: “मैंने मामला उठाया था क्योंकि बोली दस्तावेजों का लीक होना एक गंभीर मुद्दा था। मैंने इस मुद्दे को उठाने के लिए अपनी भूमिका निभाई थी। लेकिन अब एक राजनेता के रूप में मेरी सीमाएं हैं।
जानिए सांसद चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी ने क्या कहा?
संपर्क करने पर, सांसद चंदेश्वर प्रसाद चंद्रवंशी ने कहा, ‘यह मेरे रिश्तेदारों की कंपनी है और इसमें मेरा कोई व्यक्तिगत हिस्सेदारी नहीं है।’ उन्होंने कहा, ‘हम सभी नीतीश कुमार को जानते हैं, वह किसी का पक्ष नहीं लेते हैं। पीडीपीएल एक स्थापित कंपनी है जो पेट्रोलियम, शराब व्यापार और परिवहन व्यवसाय में थी और डायल 102 अनुबंध विशुद्ध रूप से योग्यता के आधार पर मिला था। अब हम एम्बुलेंस सेवाओं में स्थापित हैं।’
प्रतिद्वंद्वी कंपनियों द्वारा इस मामले को कोर्ट में ले जाया गया। कोर्ट ने कहा था कि पहले ही शुरू हो चुकी निविदा प्रक्रिया जारी रह सकती है, लेकिन कोर्ट की अनुमति के बिना बिहार राज्य स्वास्थ्य सोसायटी द्वारा कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया जाएगा। यह मामला हाईकोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक गया।
यह पूछे जाने पर कि याचिका के निस्तारित होने तक प्रतीक्षा करने के कोर्ट के निर्देश के बावजूद एसएचबीएस के कार्यकारी निदेशक संजय कुमार सिंह ने ऐसा क्यों किया, उन्होंने कहा, ‘देरी के कारण राज्य को प्रति माह 2.5 करोड़ रुपये से अधिक का अनुमानित नुकसान हो रहा था… इसलिए सबसे कम बोली लगाने वाले पीडीपीएल के साथ हम आगे बढ़े। जहां तक सुप्रीम कोर्ट के पटना हाई कोर्ट से मामले के निस्तारण के लिए कहने के आदेश की बात है तो आदेश स्पष्ट नहीं दिखता। सुप्रीम कोर्ट के आदेश ने हाई कोर्ट के आदेश पर रोक नहीं लगाई, बल्कि अन्य पहलुओं पर विचार करने को कहा।
बीजेपी ने की निष्पक्ष जांच की मांग
इस पूरे मामले पर बीजेपी सांसद रविशंकर प्रसाद ने सोमवार को सवाल उठाए हैं। प्रसाद ने कहा कि जिस कंपनी को ठेका दिया गया है, उसके बारे में कई विसंगतियां पाई गई हैं। जिस तरीके से फैसला लिया गया है, वह गर्भवती महिलाओं और बच्चों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े करता है। बीजेपी को उम्मीद है इस मामले की निष्पक्ष जांच हो।