सुप्रीम कोर्ट ने आरजेडी नेता प्रभुनाथ सिंह को 1995 में हुए दोहरे हत्याकांड में दोषी करार दिया है। चार बार लोकसभा सांसद रह चुके प्रभुनाथ सिंह को इस मामले में निचली अदालत और हाईकोर्ट ने बरी किया था। 1995 में बिहार के छपरा में 18 साल के राजेंद्र राय और 47 साल के दरोगा राय की एक मतदान केंद्र के पास हत्या हुई थी। अभी भी एक अन्य हत्या के मामले में प्रभुनाथ सिंह जेल में बंद हैं।

ट्रायल कोर्ट ने प्रभुनाथ सिंह को किया था बरी

दरोगा राय और राजेंद्र राय का परिवार 28 सालों से न्याय का इंतजार कर रहा था। ट्रायल कोर्ट ने 2008 में प्रभुनाथ सिंह को बरी कर दिया गया था। उसके बाद से परिवार की उम्मीदें टूट गई थी, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट से उनको न्याय मिला है।

बिहार के सारण जिले के छपरा के पास पानापुर में एक मतदान केंद्र पर प्रभुनाथ सिंह ने राजेंद्र राय (18) और दरोगा राय (48) की गोली मारकर हत्या कर दी, क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर उन्हें वोट नहीं दिया था। प्रभुनाथ सिंह, जो उस समय मसरख सीट के मौजूदा विधायक थे, उन्होंने पिछला चुनाव जनता दल के टिकट पर जीता था और बिहार पीपुल्स पार्टी (BPP) में शामिल होने के बाद अपनी सीट बरकरार रखने की कोशिश कर रहे थे।

सभी सबूत मिटाने के लिए हर संभव प्रयास किया: SC

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार घटना के बाद के वर्षों में प्रभुनाथ सिंह ने अपने खिलाफ सभी सबूत मिटाने के लिए हर संभव प्रयास किया था। उन पर बयान दर्ज कराने से एक दिन पहले राजेंद्र के माता-पिता का अपहरण करने का भी आरोप लगा था। हालांकि राजेंद्र के भाई हरेंद्र राय ने धमकी के बावजूद आगे की लड़ाई लड़ी।

प्रभुनाथ सिंह पहले से ही जेल में हैं और एक मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे हैं। 1995 में मसरख विधायक अशोक सिंह की हत्या भी हुई थी, जिन्होंने उस वर्ष के चुनाव में प्रभुनाथ सिंह को हराया था। इस मामले में प्रभुनाथ सिंह को 2017 में दोषी ठहराया गया था।

हरेंद्र राय ने कहा कि यह काव्यात्मक न्याय है। हरेंद्र ने कहा, ”यह मामला छपरा अदालत से हज़ारीबाग़ अदालत, भागलपुर अदालत से पटना अदालत में ट्रांसफर कर दिया गया था, जिसने 2008 में अधिकांश गवाहों के मुकर जाने के बाद सभी आरोपियों को बरी कर दिया था। पटना उच्च न्यायालय द्वारा 2012 में निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखने और राज्य सरकार द्वारा इसे सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती नहीं देने के बाद हमने उम्मीद खो दी थी। लेकिन मैं बहुत खुश और राहत महसूस कर रहा हूं कि सुप्रीम कोर्ट ने प्रभुनाथ सिंह को दोषी ठहराया है। अब हम चाहते हैं कि उसे मौत की सजा मिले।”

न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति विक्रम नाथ की पीठ ने 18 अगस्त को अपने फैसले में कहा, “दागदार जांच आरोपी की मनमानी को दर्शाती है, जो सत्ताधारी दल का सांसद होने के नाते एक शक्तिशाली व्यक्ति था। अभियोजन पक्ष ने शत्रुतापूर्ण गवाहों के माध्यम से भी यह स्थापित किया था कि राजेंद्र राय के फर्द बयान में दी गई तारीख, समय और घटना का स्थान पूरी तरह से सही था।”

प्रभुनाथ को ठहराया गया दोषी

इसमें कहा गया है कि इस प्रकार प्रभुनाथ सिंह को राजेंद्र और दरोगा की हत्या के साथ-साथ राजेंद्र की मां लालमुनि देवी की हत्या के प्रयास के लिए आईपीसी की धारा 302 और 307 के तहत दोषी ठहराया जा सकता है। 1995 के चुनाव से पहले, मसरख के मौजूदा विधायक प्रभुनाथ सिंह जनता दल से सहरसा के नेता आनंद मोहन के नेतृत्व वाली बीपीपी में शामिल हो गए थे। आनंद मोहन ने उस दौरान तत्कालीन मुख्यमंत्री और जनता दल नेता लालू प्रसाद को चुनौती दी थी।

प्रभुनाथ सिंह मसरख के एक राजपूत नेता थे, जो पहले से ही अपने बाहुबल के इस्तेमाल के लिए जाने जाते थे। उन्हें सारण जिले के मसरख निर्वाचन क्षेत्र में बीपीपी का उम्मीदवार बनाया गया था। इसे उस सीट पर उनके लिए प्रतिष्ठा की लड़ाई के रूप में देखा गया, जहां यादव और राजपूत मतदाताओं की संख्या लगभग बराबर थी। हालांकि वह जनता दल के अशोक सिंह से चुनाव हार गए।

प्रभुनाथ सिंह बाद में जद (यू) और राजद दोनों दलों के टिकट पर कई बार महाराजगंज लोकसभा सीट से सांसद के रूप में चुने गए। पिछली बार आरजेडी के टिकट पर 2013 में महाराजगंज लोकसभा उपचुनाव में उन्होंने जीत हासिल की। 1995 के चुनाव के समय हरेंद्र सिर्फ 16 साल के थे। 18 साल की उम्र में उनके भाई राजेंद्र पहली बार मतदाता करने गया था। हरेंद्र याद करते हुए कहते हैं कि कैसे पूरा परिवार राजेंद्र की शादी का इंतजार कर रहा था।

हरेंद्र ने कहा, “चुनाव के दिन उनके गांव के मतदान केंद्र पर बड़ी संख्या में लोग वोट डालने के लिए लाइन में खड़े थे। प्रभुनाथ सिंह एक वाहन में 8- 9 समर्थकों के साथ पहुंचे। यह जानने के बाद कि ज्यादातर लोग जनता दल के उम्मीदवार को वोट दे रहे थे, उसने मतदान केंद्र की ओर गोलीबारी की, जिससे तीन लोग घायल हो गए। एक गोली दरोगा राय के सिर में लगी और घटना के तुरंत बाद उनकी मौत हो गई। राजेंद्र को कमर के नीचे गोली लगी थी और गोली लगने के पांच महीने बाद पटना मेडिकल कॉलेज में इलाज के दौरान उनकी मृत्यु हो गई।”

वोट न देने पर मारी गोली

राजेंद्र ने अस्पताल में दिए अपने बयान में कहा था कि जब प्रभुनाथ सिंह को पता चला कि उन्होंने जनता दल के उम्मीदवार को वोट दिया है, उसके बाद उन्होंने गोली चलाई थी। इसके बाद प्रभुनाथ सिंह ने राजेंद्र और अन्य लोगों की ओर इशारा करते हुए अपनी राइफल से गोलियां चला दीं और उसके बाद कार तेजी से भाग गई।

हरेंद्र ने हत्या का मामला दर्ज कराने के बाद परिवार की परेशानी को ‘लंबी और कष्टदायक यात्रा’ बताया। उन्होंने कहा, “मेरे माता-पिता, राम राय और लालमुनि देवी, और मैं मामले में गवाह थे। हम भय में रहते थे। सारण प्रशासन ने यह महसूस करते हुए कि प्रभुनाथ सिंह मामले को प्रभावित कर सकते हैं, उन्होंने इस मामले को हज़ारीबाग ट्रांसफर कर दिया, जहां से मामला भागलपुर अदालत में ट्रांसफर कर दिया गया। मामला दर्ज होने के 11 साल बाद सुनवाई शुरू की।”

हालांकि 11 में से 8 गवाह अपने बयान दर्ज होने से पहले ही मुकर गए। 2006 में राजेंद्र के माता-पिता को अदालत में बयान दर्ज कराने से एक दिन पहले उनका अपहरण कर लिया गया था। हरेंद्र ने बताया, “मेरी मां को निर्धारित तारीख पर नशे की हालत में अदालत में पेश किया गया था, लेकिन ऐसा नहीं था। हमारा केस कमजोर किया गया।” अपहरण को गंभीरता से लेते हुए पटना उच्च न्यायालय ने वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी डीएन गौतम को जिला अदालत द्वारा मुकदमे की जांच करने का निर्देश दिया। गौतम की रिपोर्ट के आधार पर मुकदमा 2007 में पटना की अदालत में ट्रांसफर कर दिया गया।

2008 में किया गया था बरी

डीएन गौतम ने अपनी रिपोर्ट में कहा, “वह (लालमुनि देवी) अपने बयान से पहले डरी हुई और भारी तनाव में थी। बयान से पहले उन्हें अदालत कक्ष के अंदर डराया गया। यह सामान्य नहीं था और अदालत का माहौल बेहद तनावपूर्ण और असामान्य था।” हालांकि, पटना ट्रायल कोर्ट से भी परिजनों को कोई अच्छी खबर नहीं मिली। 24 अक्टूबर 2008 को अदालत ने सबूतों के अभाव में 24 अक्टूबर 2008 को अदालत ने सबूतों के अभाव में प्रभुनाथ सिंह और अन्य को मामले से बरी कर दिया। इस मामले को पटना उच्च न्यायालय में चुनौती दी गई, जिसने 2012 में निचली अदालत के फैसले को बरकरार रखा।

हरेंद्र राय ने बताया, “मेरी मां, जिनकी मानसिक स्थिति 2006 के अपहरण के बाद प्रभावित हुई थी, उनकी 2022 में मृत्यु हो गई। लेकिन मुझे अभी भी न्यायिक प्रणाली पर भरोसा था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रभुनाथ सिंह और अन्य को दोषी ठहराए जाने से न्याय में मेरा विश्वास सही साबित हुआ है।” हरेंद्र को 1997 में अनुकंपा के आधार पर सारण में राजस्व विभाग में तृतीय श्रेणी की नौकरी मिली। छह बच्चों के पिता हरेंद्र राय ने 2018 में एक पक्का घर बनाया। उनके परिवार के पास बमुश्किल एक बीघा जमीन है।

दूसरे पीड़ित दारोगा के परिवार के मुताबिक, उनके परिजनों को न तो अनुकंपा के आधार पर नौकरी दी गई और न ही सरकार से कोई अन्य सहायता मिली। परिवार ने भी मामले को आगे नहीं बढ़ाया और इसे राजेंद्र के परिवार पर छोड़ दिया। दारोगा के बड़े बेटे रामपुकार राय का इस साल की शुरुआत में निधन हो गया था। दारोगा के दूसरे बेटे दरवेश राय ने कहा, ”हमें क्या मिला? कुछ नहीं। कुछ लोगों ने मेरे पिता के अंतिम संस्कार के लिए हमें कुछ वनस्पति तेल और चीनी दी। लेकिन अनुकंपा के आधार पर किसी को नौकरी नहीं मिली। हमारे पास कोई ज़मीन है। हम छोटे-मोटे काम और पशुपालन करके गुजारा करते हैं।”