Bihar Chunav 2025: बिहार विधानसभा चुनाव से पहले चुनाव आयोग ने एसआईआर के तहत फाइनल वोटर लिस्ट जारी कर दी है। अनुमान ये है कि अक्टूबर के दूसरे हफ्ते में बिहार में विधानसभा चुनावों को ऐलान कर दिया जाएगा। इसके पहले बीजेपी चुनावी रणनीतियों पर तेजी से काम कर रही है। बीजेपी इस बार एनडीए में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना चाहती है और यह उसके मौजूदा विधायकों के लिए चुनौती वाली बात हो सकती है, क्योंकि पार्टी का लक्ष्य सत्ता विरोधी लहर को कमजोर करना है।

साल 2020 के विधानसभा चुनाव में आरजेडी पहले नंबर पर आई थीं और उससे कुछ सीटें कम बीजेपी की थीं। पार्टी राज्य की दूसरी सबसे बड़े विधायक लेकर आई थी। बीजेपी के 22 मंत्रियों समेत 80 विधायक सत्ता विरोधी लहर का सामना कर रही है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार एनडीए का नेतृत्व में हैं, और पांचवीं बार सीएम बनने की उम्मीद कर रहे हैं।

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कैसे बैलेंस बना रही है BJP?

नीतीश कुमार की एनडीए सरकार ने चुनाव से पहले कई अहम योजनाएं घोषित की हैं, जिसके चलते बीजेपी सत्ता विरोधी लहर को कम करने और संतुलन स्थापित करने की उम्मीद कर रही है। इसके अलावा बीजेपी की प्लानिंग यह है कि इस बार वह नए चेहरों को मौका देगी लेकिन यह कहना आसान है, और करना काफी मुश्किल होगा।

इसको लेकर बिहार बीजेपी के एक नेता ने कहा कि विभिन्न वर्गों के लिए बनाई गईं नई योजनाओं ने निश्चित रूप से NDA की संभावनाओं को मजबूत किया है, लेकिन मौजूदा विधायकों के लिए जनता में जो नाराजगी है, वो पार्टी और गठबंधन पर भारी पड़ सकती है। इसीलिए इस बार बिहार में मुकाबला सत्ता विरोधी लहर और सरकार द्वारा दी जा रह रियायतों के बीच हैं।

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गुजरात के फॉर्मूले पर हुई थी बात

सूत्रों के मुताबिक, पिछले हफ्ते उम्मीदवारों के नाम फाइनल करने को लेकर बीजेपी कोर गुट की बैठक हुई थी। इस बैठक में बीजेपी ने टिकट बंटवारे पर चर्चा की थी और साल 2022 के गुजरात विधानसभा चुनावों के टिकट बंटवारे के फॉर्मूले पर चर्चा की। गुजरात में बीजेपी ने सातवीं बार सत्ता में आने के लिए अपना पूरा मंत्रिमंडल बदल दिया था। इसके अलावा सीटिंग विधायकों के टिकट भी काट दिए थे। इसमें कई वरिष्ठ नेता और मंत्री भी शामिल थे। खास बात यह है कि साल 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले छत्तीसगढ़ में अपने मौजूदा सभी सांसदों को बदल दिया था। को बदल दिया था।

छत्तीसगढ़ और गुजरात दोनों ही राज्यों के चुनावों में बीजेपी को सफलता मिली थी। इसके अलावा बिहार के एक अन्य नेता ने कहा है कि गुजरात के पैमाने पर बदलाव की अभी कोई संभावना नहीं है लेकिन इस बात से कोई असहमत नहीं है कि बीजेपी को साफ सुथरे चेहरों की जरूरत है। अहम बात यह है कि बीजेपी के नवनियुक्त बिहार चुनाव प्रभारी, केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने सीट बंटवारे पर जेडीयू के साथ बैठकें शुरू कर दी हैं।

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बीजेपी कितनी सीटों पर लड़ना चाहती है चुनाव

बीजेपी के एक नेता ने कहा कि इस बार बिहार में 101-104 सीटों पर चुनाव लड़ना चाहती है, इसलिए उस पर भारी दबाव है, क्योंकि उसे कुछ मौजूदा विधायकों को हटाते हुए भी कई और जीतने लायक उम्मीदवार ढूंढने होंगे। उसके केवल कुछ विधायक जैसे, अमरेंद्र प्रताप सिंह और सीएन गुप्ता 75 साल से ज्यादा की उम्र के हैं, लेकिन उम्र भी कोई बड़ी बाधा नहीं बन सकती है।

कर्नाटक में हुआ था ‘गुजरात फॉर्मूले’ का नुकसान

बीजेपी नेता ने यह भी कहा कि बिहार कोई गुजरात नहीं है, न तो बिहार में बीजेपी का पूर्ण प्रभुत्व है, और न ही राज्य में पार्टी के लिए शक्तिशाली दावेदारों की कमी है। बीजेपी नेता के बयान को इस तरह भी देखा जा सकता है, कि पार्टी को गुजरात का फॉर्मूला अपनाना भारी पड़ सकती है। बीजेपी के सामने कर्नाटक एक बड़ा सबक है, जहां टिकट हासिल न करने वाले नेताओं ने पार्टी से बगावत कर दी थी, जिसका पार्टी को तगड़ा नुकसान हुआ था।

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नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली जेडीयू सीट शेयरिंग के मुद्दे पर सख्त सौदेबाजी कर रही है और फायदा में भी है। उसके 45 मौजूदा विधायक हैं, जिनमें से कई 70 साल से ज़्यादा उम्र के हैं, और एक नेता के अनुसार वह बिना किसी ज़्यादा हंगामे के अपने 50% तक उम्मीदवार बदल सकती है। खास बात यह है कि पिछले कुछ दिनों में जनसुराज के संस्थापक प्रशांत किशोर ने नीतीश कुमार के डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी पर हत्या के मामले में आरोपी बनाने और उम्र के बारे में झूठ बोलने का आरोप लगाया था।

वहीं एक बीजेपी सांसद ने कहा कि पार्टी को एक नया नैरेटिव गढ़ने की ज़रूरत है और एक तरीका यह होगा कि विश्वसनीय और बेदाग़ चेहरों पर ध्यान केंद्रित किया जाए। उन्होंने आगे कहा कि बेशक, बीजेपी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी, लेकिन ज़मीनी स्तर पर हमें स्थानीय नेतृत्व को सामने लाना ही होगा, जिसकी छवि साफ सुथरी होनी ही चाहिए।

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