लगभग 15 साल पहले योजना आयोग (अब नीति आयोग) ने देश में गरीबी मापने की पद्धति की समीक्षा के लिए भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के पूर्व गवर्नर सी. रंगराजन की अध्यक्षता में एक समिति गठित की थी। जून 2014 में अपनी रिपोर्ट पेश करने वाली इस समिति ने हलचल मचा दी थी। समिति ने शहरी क्षेत्रों के लिए मासिक प्रति व्यक्ति व्यय के आधार पर राष्ट्रीय गरीबी रेखा का अनुमान 1,407 रुपये और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 972 रुपये लगाया था।
इसका मतलब यह था कि शहरी क्षेत्रों में प्रतिदिन 47 रुपये और ग्रामीण क्षेत्रों में 32 रुपये से अधिक खर्च करने वाला व्यक्ति ‘गरीब’ नहीं था। इन सीमाओं के कारण भारत में गरीबों की संख्या जनसंख्या के 29.5 प्रतिशत पर पहुंच गई। तब से कोई नई गरीबी रेखा (कम से कम सरकार द्वारा समर्थित) नहीं बनाई गई है।
ओडिशा और बिहार में हुए बड़े बदलाव
पिछले हफ़्ते RBI के आर्थिक एवं नीति अनुसंधान विभाग के अर्थशास्त्रियों ने एक रिसर्च पेपर प्रकाशित किया जिसमें उन्होंने 2022-23 के लिए सरकार के घरेलू उपभोग व्यय सर्वेक्षण (HCES) का उपयोग करते हुए भारत के 20 प्रमुख राज्यों के लिए रंगराजन गरीबी रेखा को ‘अपडेट’ किया। परिणामों से पता चला कि 2011-12 और 2022-23 के बीच ओडिशा और बिहार में गरीबी के स्तर में सबसे बड़ी गिरावट दर्ज की गई। रंगराजन गरीबी रेखा के अपडेटेड वर्जन में गरीबी पहले की तुलना में लगभग 40 प्रतिशत अंक कम हुआ।
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ओडिशा में ग्रामीण गरीबी 2011-12 के 47.8 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 8.6 प्रतिशत हो गई – जो भारत के किसी भी राज्य में सबसे बड़ी गिरावट है। शहरी क्षेत्र में बिहार में सबसे ज़्यादा गिरावट दर्ज की गई, जहां 9.1 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। ये रंगराजन समिति के अनुमान के अनुसार 2011-12 के 50.8 प्रतिशत से कम है।
दूसरी ओर गरीबी रेखा से नीचे की आबादी के प्रतिशत में गिरावट केरल और हिमाचल प्रदेश में सबसे कम रही। हालाँकि दोनों राज्यों में गरीबी का स्तर सबसे कम है। 2022-23 में आरबीआई स्टाफ की अपडेटेड गरीबी रेखा से नीचे ग्रामीण आबादी का प्रतिशत केरल में 1.4 प्रतिशत था, जो 2011-12 के 7.3 प्रतिशत से 590 आधार अंक (बीपीएस) कम है। शहरी क्षेत्रों में हिमाचल प्रदेश में गिरावट सबसे कम रही। यह 8.8 प्रतिशत से घटकर 2 प्रतिशत, या 680 आधार अंक रही।
कुल मिलाकर 2022-23 में ग्रामीण गरीबी हिमाचल प्रदेश में सबसे कम (0.4 प्रतिशत) और छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक (25.1 प्रतिशत) रही। वहीं शहरी गरीबी तमिलनाडु में सबसे कम (1.9 प्रतिशत) और छत्तीसगढ़ में सबसे अधिक (13.3 प्रतिशत) रही। यह ध्यान देने वाली बात है कि रंगराजन समिति द्वारा अनुमानित अखिल भारतीय ग्रामीण और शहरी गरीबी रेखाओं को आरबीआई के अर्थशास्त्रियों ने अपने अध्ययन में अपडेट नहीं किया था।
भारतीय गरीबी पर बहस
भारत में गरीबी का स्तर वर्षों से गहन चर्चा का विषय रहा है। इस वर्ष की शुरुआत जनवरी में भारतीय स्टेट बैंक रिसर्च ने 2023-24 के एचसीईएस आंकड़ों का उपयोग करते हुए अनुमान लगाया था कि ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी 4.86 प्रतिशत और शहरी क्षेत्रों में 4.09 प्रतिशत थी। ये अनुमान मुद्रास्फीति-समायोजित 2023-24 की गरीबी रेखा पर आधारित थे, जो ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 1,632 रुपये और शहरी क्षेत्रों के लिए 1,944 रुपये थी।
विश्व बैंक के कार्यपत्र (जिसका शीर्षक था ‘पिछले दशक में भारत में गरीबी में कमी आई है, लेकिन पहले जितनी उम्मीद थी, उतनी नहीं) ने निष्कर्ष निकाला कि 2019 में गरीबी 10.2 प्रतिशत थी। आईएमएफ के कार्यपत्र (जिसके सह-लेखक अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला थे, जो उस समय आईएमएफ में भारत सरकार के कार्यकारी निदेशक थे) ने दावा किया कि 2019 में गरीबी दर काफी कम, यानी 0.8 प्रतिशत थी, जिसे सरकार द्वारा खाद्यान्न हस्तांतरण में सहायता मिली।
बहुआयामी गरीबी
जहां तक सरकार का सवाल है, गरीबी रेखाएं अब अतीत की बात हो गई हैं। अब बहुआयामी गरीबी मायने रखती है, जो सिर्फ़ पैसे और उपभोग से कहीं आगे जाती है। वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Global Multidimensional Poverty Index) के आधार पर भारतीय एमपीआई गरीबी को तीन नज़रियों से देखता है- स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर। ये 12 संकेतकों द्वारा दर्शाए जाते हैं जिसमे पोषण, बाल और किशोर मृत्यु दर, मातृ स्वास्थ्य, स्कूली शिक्षा के वर्ष, स्कूल में उपस्थिति, खाना पकाने का ईंधन, स्वच्छता, पेयजल, आवास, बिजली, संपत्ति और बैंक खाता शामिल है।
वैश्विक एमपीआई गरीबी को मापते समय मातृ स्वास्थ्य और बैंक खातों को ध्यान में नहीं रखता। सरकार ने जनवरी 2024 में कहा था कि पिछले नौ वर्षों में 24.82 करोड़ लोग बहुआयामी गरीबी से बाहर निकल आए हैं, और बहुआयामी गरीबी 2013-14 में 29.17 प्रतिशत से घटकर 2022-23 में 11.28 प्रतिशत हो गई है। विश्व बैंक के अनुसार भारत का गरीबी अनुपात 2022 में 23.9 प्रतिशत था, जो निम्न-मध्यम आय वाले देशों के लिए 4.2 डॉलर प्रतिदिन की अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा है।