बिहार में इतनी बड़ी हार क्यों हो गई? इस पर मंथन करने के लिए भाजपा के बड़े नेता प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अमित शाह के साथ सोमवार को दिल्ली में बैठे। अब अमित शाह दिवाली बाद बड़ी बैठक करेंगे। इसमें बिहार के नेताओं को भी बुलाया जाएगा। सोमवार की बैठक में क्या सवाल उठे और उनके क्या जवाब खोजे गए, इसकी जानकारी तो अभी सामने नहीं आई है। लेकिन, ऐसे कुछ सवाल जरूर हैं जिनके जवाब अब भाजपा को खोजने ही होंगे। इन्हीं सवालों पर एक नजर:
1. मोदी के बाद कौन? लोकसभा चुनाव के बाद हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा की दो बड़ी हार हुई है। दिल्ली और बिहार। दोनों ही जगह भाजपा ने मोदी को मुख्य चेहरा बनाया था। यानी यह साफ हो गया है कि मोदी का जादू खत्म नहीं तो कम जरूर होता जा रहा है। ऐसे में भाजपा को अभी से उनके विकल्प पर सोचना होगा। फिलहाल पार्टी में मोदी का कोई विकल्प नजर नहीं आता। इसलिए बिना वक्त गंवाए इस सवाल पर मंथन जरूरी है कि मोदी के बाद कौन?
2. चुनावों को आरएसएस की छाया से दूर रखें, उसी की छत्रछाया में लड़ें या फिर दोनों के एजेंडे पर लड़ें? बिहार में भाजपा ने अपना और आरएसएस का एजेंडा मिला-जुला कर वोट हासिल करने की कोशिश की। विकास की बात करते हुए बीफ के मुद्दे को भी खूब तूल दी। जनता ने इसे पसंद नहीं किया। भाजपा के दो सांसदों (हुकुमदेव नारायण यादव और अशिवनी चौबे) ने कहा भी कि आरक्षण पर आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान के बाद जो कुछ हुआ, उससे बिहार के मतदाताओं में यह संदेश गया कि भाजपा संघ के कहे मुताबिक ही चलती है। लालू यादव ने भी पूरे चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री पर यह कह कर निशाना साधा कि मोदी आरएसएस के प्रचारक हैं। ऐसे में भाजपा को यह तय करना होगा कि चुनावी अखाड़े में उतरते वक्त संघ के एजेंडे को दूर रखा जाए या नहीं? इस सवाल का जवाब तय करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि जल्द ही भाजपा को सबसे बड़े चुनावी अखाड़े (उत्तर प्रदेश) में उतरना है। और, वहां का चुनावी मैदान कमोबेस बिहार की ही तरह है।
3. क्या मोदी को कामकाज का तरीका बदलने की जरूरत है? मोदी के कामकाज करने के तरीके से पार्टी में असंतोष बढ़ रहा है। शत्रुघ्न सिन्हा का साफ आरोप है कि उन्हें बिहार चुनाव से जबरन दूर रखा गया, जबकि वह काम करना चाहते थे। उनके मुताबिक उनसे डेट्स लेकर फिर उन्हें दूर रहने के लिए कह दिया गया। बिहार में चुनावी तैयारियों के लिए बाहरी नेताओं की फौज खड़ी कर दी गई। ऐसे तौर-तरीकों से बढ़ रहा असंतोष कैसे दबाया जाए? क्या मोदी को काम करने का तरीका बदलना होगा? भाजपा को इसका जवाब तलाशना होगा।
4. जैसे देश की राजधानी में मोदी हैं, वैसे हर राज्य में भी पार्टी के चेहरे होंगे या नहीं? भाजपा ने बिहार में किसी को सीएम प्रोजेक्ट कर चुनाव नहीं लड़ा। हो सकता है दिल्ली में किरण बेदी को सीएम कैंडिडेट घोषित कर चुनाव लड़ने के बाद मिली हार से सबक लेते हुए यह फैसला लिया गया हो। अब कई नेता कह रहे हैं कि यह फैसला गलत था। सीएम कैंडिडेट प्रोजेक्ट कर चुनाव लड़ें या नहीं, इस पर बहस हो सकती है। लेकिन इस पर किसी बहस की गुंजायश नहीं होगी कि पार्टी के पास हर राज्य में ऐसा चेहरा तो होना ही चाहिए जो सीएम कैंडिडेट घोषित करने लायक हो। ऐसे में भाजपा को इस सवाल का जवाब ढूंढना ही होगा कि पार्टी ऐसा क्या करे जिससे उसके पास क्षेत्रीय स्तर पर कद्दावर नेताओं की भरमार हो।
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