CDS General Anil Chauhan: चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल अनिल चौहान ने शनिवार को कहा कि प्राचीन भारतीय युक्तियां शासन कला को समझने में मदद कर सकती हैं। उन्होंने कहा कि भारत अतीत में ‘विश्व मित्र’ के होने के साथ-साथ ‘विश्व गुरु भी था।
सीडीएस जनरल अनिल चौहान ने कहा कि प्राचीन भारतीय ग्रंथों का ज्ञान आज की रणनीति की जरूरतों के लिए प्रासंगिक है। प्राचीन भारतीय ग्रंथ ज्ञान के भंडार हैं। सीडीएस ने रामायण, महाभारत जैसे बड़े महाकाव्यों का उदाहरण दिया। उन्होंने कहा कि उनका प्राचीन ज्ञान आज की रणनीतिक जरूरतों के लिए प्रासंगिक है।
अनिल चौहान ने भारतीय सेना के पुणे मुख्यालय वाले दक्षिणी कमान के सहयोग से पेंटागन प्रेस द्वारा आयोजित रक्षा साहित्य महोत्सव “कलम और कवच” कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे। अपने उद्घाटन भाषण में दक्षिणी सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एके सिंह ने आधुनिक खतरों और चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए इन प्राचीन रणनीतियों को अपनाने पर जोर दिया।
सीडीएस जनरल चौहान ने “आधुनिक युद्ध में प्राचीन भारतीय रणनीतियां” विषय पर भाषण दिया। प्राचीन विश्व में भारत की स्थिति के बारे में बोलते हुए सीडीएस ने कहा, “किसी समय भारत विश्व गुरु था। जब पश्चिम अंधकार युग में था तब हम भौतिकी, चिकित्सा विज्ञान, खगोल विज्ञान, गणित आदि में गुरु थे। लेकिन किसी तरह हमने इसे खो दिया। विश्व गुरु रहते हुए हम विश्व मित्र भी थे। ऐसा किसी भी चीज़ पर बहुत गहराई से बहस करने और उसका विश्लेषण करने की हमारी बुनियादी क्षमता के कारण था। गहन शिक्षा हमारे डीएनए का हिस्सा थी। वह डीएनए नहीं बदला है। हम वही भारतीय हैं जो एक समय में विश्व गुरु थे।’
जनरल चौहान ने कहा कि प्राचीन भारतीय ग्रंथ आपको शासन कला, कूटनीति को समझने या एक बड़ी रणनीति विकसित करने में मदद कर सकते हैं। जब आप टीटीपी (रणनीति, तकनीक और प्रक्रियाएं) को देखते हैं जो प्रौद्योगिकी से प्रभावित है, तो आपको यह प्रासंगिक नहीं लग सकता है। मैं जो कह रहा हूं वह प्रासंगिक है, क्योंकि वे आपको बताते हैं कि आप एक समय में विश्व गुरु थे। इसलिए प्राचीन भारतीय युक्तियां हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत होनी चाहिए।’
सीडीएस ने यह भी कहा कि सशस्त्र बलों की दुनिया एक बड़े बदलाव के कगार पर है और इसे सैन्य मामलों की तीसरी क्रांति करार दिया। उन्होंने कहा कि इसके आकार और रूपरेखा अभी तक वास्तव में पहचाने जाने योग्य हैं, लेकिन एक सामान्य समयरेखा हमारे लिए उपलब्ध है। भारतीय सशस्त्र बल पहले और दूसरे आरएमए बनकर रह गए, जैसे राष्ट्र औद्योगिक क्रांति में पीछे छूट गया था। इसलिए हम जो करने की कोशिश कर रहे हैं। उसको पकड़ना है।’
उन्होंने कहा कि वास्तव में विकसित राष्ट्रों के साथ बराबरी करने का एकमात्र तरीका यही है कि हम उनके साथ तीसरे आरएमए को बदलने की कोशिश करें। इसके लिए हमारी ओर से बहुत अधिक कल्पनाशीलता और एक नवोन्वेषी एवं आविष्कारशील दृष्टिकोण की आवश्यकता होगी। और मैं इस बात की वकालत करता रहा हूं कि इस आरएमए का नेतृत्व प्रौद्योगिकियों द्वारा नहीं, बल्कि रणनीति द्वारा किया जाएगा। हमारे सामने यही विकल्प है।
