मदरसे में मोहन भागवत ने बच्चों से सीधा संवाद किया और उनकी शिक्षा के संबंध में जानकारियां ली। करीब 45 मिनट तक भागवत मदरसे में रहे। इससे पूर्व मोहन भागवत ने आल इंडिया इमाम आर्गेनाइजेशन के प्रमुख के साथ चर्चा की और उनका हाल जाना।
भागवत पहले मध्य दिल्ली के कस्तूरबा गांधी मार्ग स्थित मस्जिद में गए। इसके बाद वहां से उत्तरी दिल्ली के आजादपुर में मदरसा तजावीदुल कुरान में पहुंचे। वहां उन्होंने ने बच्चों को दी जाने वाली शिक्षा की जानकारी ली। संघ पदाधिकारियों के अनुसार आल इंडिया इमाम आर्गेनाइजेशन के प्रमुख उमर अहमद इलियासी ने मदरसे के बच्चों से बातचीत के दौरान भागवत को ‘राष्ट्रपिता’ बताया, हालांकि भागवत ने उन्हें तत्काल टोका और कहा कि देश में एक ही राष्ट्रपिता हैं और बाकी सभी ‘भारत की संतानें’ हैं।
संघ के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने इस दौरे के संबंध में कहा कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक समाज के सभी वर्ग के लोगों से मिलते रहते हैं। इसी प्रक्रिया के तहत सतत चलने वाली संवाद प्रक्रिया का हिस्सा है। यहां पर आने के लिए संघ प्रमुख के पास काफी दिनों से निमंत्रण था और संघ प्रमुख सभी समुदाय के लोगों से मिल रहे हें। उन्होंने मदरसे में पढ़ रहे बच्चों संवाद बाकी पेज 8 पर किया और उनकी पढ़ाई और उनके भविष्य की योजनाओं पर भी चर्चा की।
इलीयासी ने कहा कि संघ प्रमुख ने देश को जानने-समझने की जरूरत पर बच्चों से बात की। उन्होंने कहा कि दुआ/पूजा करने के तौर-तरीके अलग-अलग हो सकते हैं लेकिन सभी धर्मों का अवश्य ही सम्मान किया जाना चाहिए। इसी मस्जिद में आल इंडिया इमाम आर्गेनाइजेशन का दफ्तर और इलियासी का आवास भी है।
इलिसासी ने कहा कि भागवत के इस दौरे से संदेश जाना चाहिए कि हम सभी को मिल कर काम करना हैं और हम सभी के लिए राष्ट्र सर्वोपरि है। हमारा डीएनए समान है, सिर्फ हमारा धर्म और इबादत के तौर-तरीके अलग-अलग हैं। वहीं संघ पदाधिकारी इंद्रेश कुमार ने कहा कि ये एक प्रयत्न है, सत्तर साल से तो लड़वा ही रहे हैं, जोड़ने वाले लोग ताकत से लड़ेंगे तो बांटने वाले कमजोर होंगे। इस बैठक में महासचिव कृष्ण गोपाल समेत अन्य पदाधिकारी भी शामिल थे।
बताया जाता है कि इस मुलाकात में भागवत ने हिंदुओं के लिए ‘काफिर’ शब्द के इस्तेमाल के मुद्दे को उठाया और कहा कि इससे अच्छा संदेश नहीं जाता है। वहीं, मुसलिम बुद्धिजीवियों ने कुछ दक्षिणपंथी संगठनों द्वारा मुसलमानों को ‘जिहादी’ तथा ‘पाकिस्तानी’ बताए जाने पर आपत्ति जताई थी। मुसिलम बुद्धिजीवियों ने भागवत को यह भी बताया था कि ‘काफिर’ शब्द के इस्तेमाल के पीछे मकसद कुछ और है लेकिन कुछ वर्गों में अब इसे अपशब्द के तौर पर इस्तेमाल किया जा रहा है।
संघ प्रमुख ने बुद्धिजीवियों की चिंताओं का संज्ञान लिया और इस बात को रेखांकित किया कि ‘सभी हिंदुओं तथा मुसलमानों का डीएनए एक ही है। संघ प्रमुख सांप्रदायिक सौहार्द्र को मजबूत करने के लिए मुसिलम बुद्धिजीवियों के साथ चर्चा कर रहे हैं। उन्होंने अयोध्या के निर्णय से पहले भी मुसलिम समाज के प्रतिनिधियों से बैठक की थी ताकि अयोध्या का फैसला जो भी हो कि देश का आपसी सौहार्द बनाया जा सके।