गोमांस प्रतिबंध और अन्य मुद्दों पर जम्मू कश्मीर के दोनों सदनों में विपक्ष ने आज जबरदस्त हंगामा किया। विधानसभा में नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के विधायक नारेबाजी करते हुए सदन के बीचों बीच चले आए, मेजों पर चढ़ गए और मार्शलों से भिड़ गए जिससे एक विधायक और एक सुरक्षा कर्मी जख्मी हो गया।
नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) ने विधानसभा और विधानपरिषद दोनों सदनों में गोमांस का मुद्दा उठाया। पार्टी के नेता उमर अब्दुल्ला ने सवाल किया कि भाजपा-पीडीपी सरकार ने उच्चतम न्यायालय का रुख क्यों किया जबकि सदन गोवध निषेध संबंधी रणबीर दंड संहिता के 1932 प्रावधान को खत्म कर सकता है।
विरोध प्रदर्शन के कारण दोनों सदनों को दिन भर के लिए स्थगित कर दिया गया। हंगामे की शुरुआत तब हुई जब नेकां ने विधानसभा और विधानपरिषद में प्रश्न काल को स्थगित कर गोमांस प्रतिबंध मुद्दे पर चर्चा कराए जाने की मांग की। कांग्रेस ने भी बाढ़ पीड़ितों के पुनर्वास और वैष्णोदेवी श्रद्धालुओं के लिए हेलिकॉप्टर सेवा पर सेवा कर लगाए जाने के मुद्दे पर चर्चा की।
अध्यक्ष कवींद्र गुप्ता ने सदन की कार्यवाही जारी रखी तो विपक्ष के कई सदस्य सदन के बीचों बीच चले आए और ‘बाढ़ पीड़ितों का शोषण बंद करो’, ‘धार्मिक श्रद्धालुओं पर कर हटाओ’ के नारे लगाने लगे। नेकां सदस्यों ने गोमांस प्रतिबंध के खिलाफ नारेबाजी की और उन्होंने इसे धार्मिक मामलों में दखलंदाजी बताया।
सत्ता पक्ष के तरफ की सीटों और आसन की तरफ जाने से रोके जाने पर उनमें से कुछ विधायक मार्शलों से भिड़ गए। एक मार्शल सहित बांदीपोरा से कांग्रेस के विधायक उस्मान अब्दुल माजिद घायल हो गए।
नेकां और कांग्रेस सदस्यों के साथ निर्दलीय विधायक शेख अब्दुल राशिद और हकीम मोहम्मद यासिन भी शामिल हो गए। विपक्षी विधायकों ने कागज फाड़ दिए और पीडीपी-भाजपा गठबंधन सरकार के खिलाफ नारेबाजी की। हो-हल्ले के बीच अध्यक्ष ने दो बार कार्यवाही स्थगित कर दी। लेकिन, विपक्ष शांत नहीं हुआ तो अध्यक्ष ने दिन भर के लिए कार्यवाही स्थगित कर दी।
नेशनल कांफ्रेंस, माकपा और निर्दलीय विधायक शेख अब्दुल राशिद ने अलग-अलग विधेयक पेश कर राज्य में गोवध को अपराध की श्रेणी में रखने वाले प्रावधान को निरस्त करने की मांग की। उमर ने कहा कि वे अध्यक्ष के ‘तानाशाही रवैये’ के खिलाफ विरोध कर रहे थे जिन्होंने पहले कहा था कि वह इस तरह के किसी भी विधेयक की अनुमति नहीं देंगे।
पूर्व मुख्यमंत्री ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘आज, दुर्भाग्य से हमारा विरोध अध्यक्ष के तानाशाही रवैये के खिलाफ था। क्यों ये मुख्यमंत्री सदन के साथ ही अपनी शक्तियों को भी कम करने पर तुले हैं।’’
यह घटनाक्रम ऐसे दिन हुआ है जब उच्चतम न्यायालय ने जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश से गोमांस पर प्रतिबंध के मुद्दे को सुलझाने के लिए तीन सदस्यीय एक पीठ गठित करने को कहा।
राज्य सरकार ने गोवंशीय पशुओं की कुर्बानी और राज्य में गोमांस की बिक्री पर प्रतिबंध संबंधी उच्च न्यायालय के दो ‘विरोधाभासी’ फैसले के खिलाफ शीर्ष न्यायालय का रुख कर दावा किया कि राज्य में शांति को नुकसान पहुंचाने के लिए इसका दुरूपयोग किया जा रहा है।
अपनी पार्टी के प्रदर्शनों को सही ठहराते हुए उमर ने कहा, ‘‘जम्मू कश्मीर में उच्च न्यायालय ने जब कहा था कि यह सदन रणबीर दंड संहिता में संशोधन लाने के लिए स्वतंत्र है तो इस सरकार को उच्चतम न्यायालय जाने की क्या आवश्यकता पड़ गयी।’’
उन्होंने कहा, ‘‘साफ तौर पर वे न्यायाधीन मामले का कवर चाहते हैं जिससे कि जो विधेयक लाया जाए उसे खारिज किया जा सके और यह सरकार चलती रहे।’’ साथ ही कहा, ‘‘हम चाहते हैं कि हमारी बात सुनी जाए। अगर हमें सही तरीके से नहीं सुना गया, अगर हमें मजबूर किया गया तो आप हमें वह नीति अपनाने पर मजबूर कर देंगे जो हम अपनाना नहीं चाहते।’’
निचला सदन जब दो बार स्थगित हुआ तो विपक्षी सदस्यों ने अपना विरोध तेज कर दिया जिसके बाद मार्शल हरकत में आए। उन्होंने किसी भी सदस्य को आसन के करीब नहीं जाने दिया। हालांकि नेकां के कई विधायकों ने घेराबंदी तोड़ने की कोशिश की लेकिन वे सफल नहीं हुए। बाद में अध्यक्ष ने दिन भर के लिए सदन को स्थगित कर दिया।
विधानपरिषद में भी मुद्दे पर विपक्षी सदस्यों ने हंगामा किया। सदन का कामकाज शुरू होने पर नेकां और कांग्रेस के सदस्य सदन के बीचों बीच चले गए और प्रश्नकाल स्थगित करने की मांग की लेकिन सभापति अनायत अली ने प्रस्ताव मंजूर नहीं किया।
हंगामा जारी रहने पर सभापति ने दो बार कार्यवाही स्थगित की। सदन की कार्यवाही फिर शुरू होने पर सदस्य सदन में आसन के करीब फिर से विरोध करने लगे जिसके बाद सभापति को दिन भर के लिए कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी।
गोमांस प्रतिबंध का मुद्दा तब गर्मा गया जब पिछले महीने जम्मू में उच्च न्यायालय की एक खंड पीठ ने राज्य सरकार को राज्य में कानून के मुताबिक प्रतिबंध का कड़ाई से पालन करना सुनिश्चित करने को कहा था।
आदेश पर विभिन्न हलकों से और अलगाववादी सहित कई संगठनों की तरफ से तीखी प्रतिक्रिया जतायी गयी, जिन्होंने इसे धार्मिक मामलों में दखलंदाजी बताया और कानून को निरस्त करने की मांग की।