विपक्षी गठबंधन का नया नाम आते ही ‘हिट’ होता दिखा। मूल नाम रहा ‘आइएनडीआइए’ यानी ‘इंडियन नेशनल डेवलपमेंटल इन्क्लूसिव एलायंस’, लेकिन चैनलों में लिखा-बोला जाता रहा ‘इंडिया’! ऐसा ‘ब्रांड नाम’ जो सीधे जुबान पर चढ़ जाए। जो बोले सो बोले ‘इंडिया’ और जो सुने तो सुनाई पड़े ‘इंडिया’। जैसे ‘ये मेरा इंडिया’, ‘चक दे इंडिया’, ‘टीम इंडिया’,‘मेक इन इंडिया’, ‘डिजिटल इंडिया’, ‘अमूल दूध पीता है इंडिया’…वैसे ही ‘इंडिया’! ‘यूपीए’ गया, ‘इंडिया’ आया।

कई चैनलों की लाइनें बताती रहीं कि इस नाम का ‘आइडिया’ इन-इन का था, लेकिन अंतिम ‘ओके’ शायद ‘उन्होंने’ ही दिया! बहरहाल, जिसने भी दिया, वह जरूर ‘मार्केटिंग’ और ‘ब्रांडिंग’ का उस्ताद रहा होगा, जिसका दिया नाम तुरंत जुबान पर चढ़ गया। सत्ता पक्ष के प्रवक्ता देर तक इसकी काट न सोच सके। जब एक विपक्षी प्रवक्ता ने सत्ता के प्रवक्ता को चुनौती दी कि जरा बोलो तो ‘जीतेगा इंडिया’, ’ बोलो ‘जीतेगा इंडिया…’ तो देर तक जवाब न आ सका।

हां, एक ने जरूर जैसे-तैसे कहा कि लीजिए हमने कहा ‘जीतेगा इंडिया’, लेकिन ये ‘इंडिया’ आप नहीं हैं, असली ‘इंडिया’ आप सबसे बहुत बड़ा है। वह ‘इंडिया दैट इज भारत’ है, तो लगा कि हां बहसों में अब कुछ जान पड़ेगी, लेकिन जल्दी ही कुछ विपक्षी प्रवक्ता ‘दर्पोक्तियां’ करने लगे कि जो ‘इंडिया’ से लड़ा, हमेशा हारा! ‘इंडिया’ हमेशा जीता!

एक पक्षी प्रवक्ता ने ‘इंडिया’ नाम पर यह चुटकी अवश्य ली कि ये ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ वाला ‘इंडिया’ है या ‘इंदिरा इज इंडिया’ वाला ‘इंडिया’ है!लेकिन सर जी! आप इसे ऐसे लो या वैसे, बात तो उसी ‘इंडिया’ पर आकर टूटनी है, जिसने ‘अड़तीस दलों’ के ‘एनडीए’ के नाम तक को चर्चा से बाहर किए रखा! एक बहस में सिर्फ एक चर्चक ने सत्ता प्रवक्ताओं को चेताया कि ‘इंडिया’ नाम को ज्यादा हवा न दें, क्योंकि आप जितना नाम लोगे, उतना ही वह लोकप्रिय होगा।

ऐसी ही एक चर्चा में एक चर्चक ने जरूर कहा कि सिर्फ ब्रांड से कुछ नहीं होता, नाम के साथ अंदर ‘मैचिंग माल’ भी तो होना चाहिए! फिर खबर आई कि कुछ दिलजलों ने इस नाम को संविधान की ‘प्रस्तावना’ में लिखे ‘इंडिया दैट इज भारत’ की तौहीन माना और थाने में शिकायत भी कर दी है!

कहीं इसी ‘नाम’ का तो पूर्वानुमान करके कुछ पहले पीएम ने नहीं कहा था कि एक चेहरे पे कई चेहरे लगा लेते हैं लोग! बहरहाल, दो-तीन दिन तक विपक्ष के प्रवक्ता ‘इंडिया’ नाम पर कुछ अधिक ही इतराते दिखे, मानो वे चौबीस के चुनाव को ‘इंडिया’ के ‘नाम स्मरण’ से ही जीत गए हों।

मगर अधिकांश हिंदी चैनलों के लिए सप्ताह की सबसे अधिक मनोरंजक कहानी तो पाकिस्तान से वाया दुबई-नेपाल और फिर ‘ग्रेटर नोएडा’ में अपने प्रेमी/पति सचिन के साथ रहती सीमा हैदर की ‘कहानी’ ही रही! कोई पांच-छह दिन तक ज्यादातर हिंदी चैनल कई बच्चों की मां, पाक सुंदरी सीमा हैदर के पीछे लगे रहे। कुछ पाकिस्तान से उसके ‘कनेक्शन’ को खंगालते रहे। कुछ चैनल कुछ पाकिस्तानियों से भी उलझते रहे। कुछ ‘स्टाक शाट्स’ में सीमा हंसती-खिलखिलाती दिखती रही। एक फ्रेम में वह अपने प्रेमी/पति के गाल पर प्यार से हाथ तक फेरती दिखती रही। कुछ चैनल उसके ‘यूट्यूब’ वाले नाच-गानों के दृश्य भी कुछ इस तरह दिखाते रहे जैसे कि वह बालीवुड के लिए ‘आइटम सांग’ गाने आई हो…।

अधिकांश चैनलों में वह बार-बार यही कहती रही कि वह किसी हालत में यहां से पाकिस्तान नहीं जाने वाली। यहां की सरकार उसे चाहे तो जेल में डाल दे, वह रह लेगी, लेकिन वहां वह नहीं जाएगी। वे उसे मार देंगे। फिर कुछ चैनलों पर पाकिस्तान के कुछ ‘डाकुओं’ की धमकियां भी दिखती रहीं, जो धमकाते रहे कि सीमा को न लौटाया तो हम मंदिरों को तोड़ देंगे। फिर एक मंदिर को राकेट लांचर से ध्वस्त करने की खबरें भी दिखीं!

पुलिस सीमा और सचिन से लगातार पूछताछ करती रही कि कहीं सीमा पाकिस्तानी जासूस तो नहीं, ‘आतंकी स्लीपर सेल’ तो नहीं, लेकिन कुछ साफ नहीं हुआ। इतनी खोजबीन के बाद भी सीमा की कहानी ‘संदिग्ध’ बनी रही। फिर गुरुवार को अचानक चैनलों के फोकस में मणिपुर आया!

एक ओर प्रधान न्यायाधीश महोदय ने मणिपुर की भयावह स्थिति को लेकर अपनी ‘नाराजी’ जाहिर की, तो दूसरी ओर पीएम ने संसद सत्र शुरू होने के ऐन पहले मणिपुर की कुछ जघन्य घटनाओं पर शर्म और गहरा क्षोभ व्यक्त करते हुए कहा कि जिन्होंने भी ये जघन्य अपराध किए हैं, उनको बख्शा नहीं जाएगा… ऐसे में मणिपुर संबंधी विक्षोभ फोकस में आना ही था।

और यह विक्षोभ भी चैनलों में तब अधिक बरसा, जब इंटरनेट के बहाल होते ही कुछ ऐसे वीडियो वायरल हुए, जिनमें हजारों की उन्मादी भीड़ ने दो औरतों को निर्वस्त्र और अत्याचारित करके सड़कों पर घुमाया और दो महीने तक मणिपुर सरकार चुप बैठी रही। चैनलों की बहसों में ‘डबल इंजन’ के चक्कर में, ‘मणिपुरी इंजन’ की तो धुलाई हुई ही, ‘केंद्रीय इंजन’ की भी धुलाई हुई।

दूसरे दिन भी संसद में हंगामा रहा। आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे कि सरकार बहस नहीं चाहती, कि विपक्ष बहस नहीं चाहता, कि वह संसद भी नहीं चलने देना चाहता। कुछ लोग देर तक ‘हम पापी तो तुम भी पापी’ करते रहे। सच, शर्म उनको मगर नहीं आती! फिर भी, ममता दी का जवाब नहीं। कोलकाता में शहीद दिवस पर एक बड़ी रैली करके सबको बता दिया कि नए ब्रांड ‘इंडिया’ में ममता दी की ‘पोजीशनिंग’ क्या है?