पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन से पूरे देश में मातम छाया हुआ है। उनके परिवार से लेकर समर्थक, दिग्गज नेता, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, बीजेपी के सभी नेता, विपक्षी पार्टियों के नेता से लेकर उनके साथ कभी न कभी काम करने वाला हर व्यक्ति इस वक्त देश के बेटे के जाने से दुखी है। बीजेपी के वरिष्ठ नेता और पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी भी इस वक्त बेहद गमगीन हैं, हों भी क्यों न, आखिर उनका बेहद करीबी दोस्त उन्हें अलविदा कहकर इस दुनिया से चला गया है।
अटल और आडवाणी, भारत की राजनीति की ऐसी जोड़ी हैं, जिन्होंने साथ मिलकर बड़े से बड़ा युद्ध लड़ा और अपनी पार्टी बीजेपी को मजबूत करने में अहम योगदान दिया। दोनों दिग्गज नेताओं की पहली मुलाकात साल 1952 में हुई थी, उसके बाद अटल और आडवाणी ने लगातार छह दशकों से भी ज्यादा समय तक जिंदगी और राजनीति का सफर साथ तय किया। 1952 की मुलाकात के बाद दोनों ने साथ में काम करना शुरू कर दिया और दोनों की दोस्ती गहराती गई।
कैसे हुई पहली मुलाकात
अटल जी 1952 में जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ राजस्थान के कोटा से ट्रेन से गुजर रहे थे। उस वक्त आडवाणी संघ के प्रचारक थे। ट्रेन में ही दोनों की पहली मुलाकात हुई। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने अटल और आडवाणी का परिचय एक-दूसरे से करवाया। उसके बाद करीब 65 सालों तक दोनों दिग्गज नेताओं ने साथ काम किया और वक्त के साथ ही उनकी दोस्ती भी गहराती गई।
आडवाणी और अटल ने साथ मिलकर जनसंघ को मजबूत करने के लिए काम किया। दोनों की छवि हिंदुत्ववादी की थी, दोनों के बहुत से विचार एक-दूसरे से मेल नहीं खाते थे, लेकिन दोनों के बीच कभी भी मनभेद नहीं हुआ। अटल जी ज्यादातर फैसले आडवाणी से सलाह करने के बाद लेते थे। आपातकाल के दौरान भी दोनों नेता एक साथ जेल में रहे। दोनों ने एक साथ साल 1977 में जनता दल की टिकट पर लोकसभा चुनाव भी लड़ा था। जनता दल की सरकार में वाजपेयी विदेश मंत्री बने तो आडवाणी को सूचना एवं प्रासरण मंत्रालय दिया गया। दोनों ने जनता पार्टी से अलग होकर बीजेपी का गठन किया। भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पहले अध्यक्ष अटल जी बने।
आडवाणी और अटल दोनों ही अयोध्या में राम मंदिर बनाने के पक्षधर थे, लेकिन अटल कट्टर हिंदुत्व की राजनीति को कभी सही नहीं मानते थे। 80 के दशक का वक्त ऐसा था जब धीरे-धीरे आडवाणी का कद बीजेपी में अटल से बड़ा होता गया, लेकिन उसके बाद भी दोनों में कभी भी मनभेद नहीं हुए। 1992 में अयोध्या में हुए बाबरी मस्जिद कांड को लेकर अटल बिल्कुल भी सहज नहीं थे, यह वो समय था जब अटल और आडवाणी के बीच थोड़े मतभेद हुए, लेकिन 1995 तक दोनों की दोस्ती एक बार फिर मजबूत हो गई।
1995 में आडवाणी ने ही मुंबई में बीजेपी के अधिवेशन में पार्टी के अध्यक्ष के तौर पर बहुत बड़ा ऐलान किया। उन्होंने घोषणा कर दी कि 1996 में बीजेपी अटल बिहारी वाजपेयी को प्रधानमंत्री का चेहरा बनाकर चुनाव लड़ेगी। आडवाणी अक्सर ही अटल जी की तारीफ करते थे। वह अटल जी को बहुत ही प्रभावशाली वक्ता मानते थे, जो कि पूरा देश मानता है। आडवाणी ने एक इंटरव्यू में यह तक भी कहा था कि जब उन्होंने अटल जी को पहली बार बोलते सुना था तब उन्हें लगा था कि कहीं वह गलत पार्टी में तो नहीं आ गए।