संसद में पेगासस जासूसी कांड व अन्य मुद्दों पर केंद्र और विपक्ष में फिलहाल गतिरोध कायम है। विपक्ष चर्चा पर अड़ा है, जबकि सरकार उस पर सदन न चलने का आरोप लगा रही है। हालांकि, इस सबके बीच काफी वक्त और पैसे की बर्बादी हो चुकी है, जबकि लोकतंत्र के लिए कठिन स्थिति पैदा होती नजर आ रही है। इसी मसले पर राजनीतिक विश्लेषक सुधींद्र कुलकर्णी ने पुराना अनुभव साझा करते हुए कहा कि अटल जी के काल में पीएम विपक्ष के नेताओं से मिलते थे। प्रमोद महाजन सरीखे नेता भी राजनीतिक कटुता के बावजूद संवाद साधते थे। पर मोदी सरकार ने कितनी बार विपक्षी नेताओं को गैर-सियासी बातचीत के लिए निमंत्रण भेजा?
यह सवाल उन्होंने अंग्रेजी न्यूज चैनल “इंडिया टुडे” पर गुरुवार को एक टीवी न्यूज डिबेट के दौरान उठाया। प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) में रह चुके कुलकर्णी ने पत्रकार राजदीप सरदेसाई के साथ चर्चा के दौरान कहा, “देश की संसद के भीतर और बाहर लोकतंत्र के मद्देनजर स्थितियां विकट हो रही हैं। यह गंभीर स्थिति है और इस सरकार के शेष दो साल के कार्यकाल में और भी बुरी चीजें देखने को मिलेंगी। मैं किस्मत वाला था कि मेरे पास महान सांसदों और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सेवा करने का मौका मिला। वह संसद और विधायिका का हमेशा सम्मान करते थे। संवाद ही संसद की सांसें हैं, जिसके बगैर वह और लोकतंत्र नहीं चल सकती।”
अटल जी के छह सालों के पीएम कार्यकाल का जिक्र करते हुए वह आगे बोले- वह विपक्ष के नेताओं को निरंतर न्यौता देकर अपने दफ्तर और घर बुलाते थे। सोनिया गांधी, डॉ.मनमोहन सिंह, प्रणब मुखर्जी और अन्य दिग्गज नेताओं से तब उनकी विभिन्न मुद्दों पर बात होती थी। खास बात है कि उस वक्त एनडीए सरकार और कांग्रेस के बीच चीजें ठीक नहीं थीं। फिर भी यह संवाद की प्रक्रिया बरकरार थी। पर तत्कालीन पीएम ने वह मुद्दों पर बात करते थे और सहमति बनवाने की कोशिश करते थे।
सरदेसाई ने इसी पर जोर देकर पूछा कि आखिरकार तब और अब में क्या बदलाव आया है…क्या सत्ता पक्ष और विपक्ष अब एक-दूजे के लिए दुश्मन हैं? यही वजह है कि दोनों पक्षों में सम्मान और विश्वास की कमी है? जवाब आया- आप संसदीय कार्य मंत्री या इस सरकार के अन्य किसी मंत्री से पूछें कि पीएम ने कितनी बार विपक्षी नेताओं को गैर-सियासी बातचीत के लिए आमंत्रित किया। प्रमोद महाजन को ही ले लीजिए। वह खांटी भाजपाई थे, पर विपक्ष से “फ्लोर कॉर्डिनेशन” (आपसी तालमेल बनाने और सामंजस्य बिठाने में) में वह उस्ताद थे।