मौसम गर्म हो गया है तो मुद्दा बिजली कटौती का होना चाहिए था लेकिन कार्यवाहक मुख्य सचिव शकुंतला गैमलिन पर आम आदमी पार्टी के आरोप से मुद्दा बिजली कंपनियों को सरकार की ओर से दिए जाने वाला लेटर आॅफ कंफर्ट(अघोषित गारंटी) बन गया है।
इसे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल, उप मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के बाद अब बिजली मंत्री सत्येंद्र जैन भी लगातार उठा रहे हैं। लेटर आफ कंफर्ट के बारे में बिजली कंपनी बीएसईएस के अधिकारियों की मानें तो उनकी कंपनी आर्थिक मुश्किलों से गुजर रही है, इससे उबरने के लिए कंपनी को लगभग 11 हजार करोड़ रुपए कर्ज की जरूरत है। कंपनी अधिकारियों का कहना है कि पावर फाइनेंस कारपोरेशन से कर्ज लेने के लिए रिलायंस और दिल्ली सरकार दोनों से लेटर आफ कंफर्ट (अघोषित गारंटी) चाहिए।
माहौल आप सरकार और उप राज्यपाल के बीच उत्पन्न विवादों के कारण गर्म है, जबकि बहस इस बात की होनी चाहिए कि लेटर आफ कंफर्ट देना जरूरी क्यों है और अगर जरूरी है तो एक अधिकारी ही दोषी क्यों है जितने अफसरों ने निजीकरण से अब तक ऐसा किया है उन सब की जांच होनी चाहिए।
पहली जुलाई 2002 को दिल्ली में बिजली वितरण के लिए डिस्काम बनाकर निजीकरण कर दिया गया था। इस कंपनी में सरकार के 49 फीसद शेयर और चार निर्देशक हैं। बिजली कंपनियों का कहना है कि निजी कंपनियों ने नहीं सरकारी वित्तीय कंपनी पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन ने लेटर आॅफ कंफर्ट की मांग की है।
बीएसईएस को कर्ज देने के लिए पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन को दिल्ली सरकार की ओर से लेटर आॅफ कंफर्ट चाहिए, क्योंकि बीएसईएस में दिल्ली सरकार की 49 फीसद हिस्सेदारी है। रिलायंस अपने हिस्से का लेटर आॅफ कंफर्ट पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन को देने के लिए पूरी तरह से तैयार है।
यही नहीं, इस कर्ज के लिए, लेटर आॅफ कंफर्ट के तौर पर रिलायंस अपना पूरा 51 फीसद शेयर पीएफसी के पास गारंटी के तौर पर रखने को तैयार है। इस लेटर आॅफ कंफर्ट(अघोषित गारंटी) से रिलायंस को नहीं, बल्कि दिल्ली के उपभोक्ताओं का फायदा होगा। यह कहना सही नहीं है कि अगर लेटर आॅफ कंफर्ट दे दिया गया, तो दिल्ली में बिजली की दरों में इजाफा होगा। लेटर आॅफ कंफर्ट और बिजली की दरों का आपस में कोई लेना-देना नहीं है।
मई 2014 में 1000 करोड़ रुपए के कर्ज के लिए पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन/ रूरल इलेक्ट्रेसिटी कॉरपोरेशन को लेटर आॅफ कंफर्ट दिया गया, ताकि बिजली उत्पादक कंपनियों के बकाए का आंशिक भुगतान कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन किया जा सके। पीएफसी को रिलायंस और दिल्ली सरकार, दोनों से लेटर आॅफ कंफर्ट चाहिए। तब बीएसईएस को पावर फाइनेंस कॉरपोरेशन की ओर से मंजूर किया गया कर्ज मिल जाएगा।
इसके बाद, बीएसईएस बिजली उत्पादन और ट्रांसमिशन कंपनियों के बकाए का भुगतान कर पाएगी। दिल्ली सरकार के स्वामित्व वाले जेनको और दिल्ली ट्रांसको के बकाए का भुगतान भी कर दिया जाएगा, जिससे दिल्ली सरकार को भी फायदा होगा। बड़ा कर्ज मिलने के बाद जब बिजली उत्पादन और ट्रंसमिशन कंपनियों के बकाए का भुगतान हो जाएगा, तब उनकी तरफ से दिल्ली को बिना रेगुलेशन और रोक-टोक, निर्बाध बिजली आपूर्ति मिलेगी। इससे गर्मी के इस सीजन में दिल्ली के आम उपभोक्ताओं को लोड शेडिंग का सामना नहीं करना पड़ेगा और लाखों उपभोक्ता लाभान्वित होंगे।
मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का कहना है कि लेटर आफ कंफर्ट का मतलब कर्ज की गारंटी देना है अगर ये कंपनियां कर्ज का भुगतान नहीं करेंगी तो इसे सरकार को भुगतान करना होगा और इसका असर दिल्ली के उपभोक्ताओं पर होगा। बिजली महंगी मिलेगी। कायदे में यह कर्ज की गारंटी पत्र नहीं है। गारंटी पत्र की व्यवस्था 2002 में थी तब इसमें केंद्र सरकार की भी भागीदारी थी।
तब के बिजली मंत्री अजय माकन और वित्त मंत्री महेंद्र सिंह साथी ने इसका विरोध किया फिर बाद में इसका स्वरूप बदला। महेंद्र सिंह साथी ने तो निजीकरण की प्रक्रिया का विरोध किया था। उन्होंने लिखित कहा था कि निजीकरण से पहले मजबूत और स्वतंत्र विद्युत नियामक आयोग बनाया जाए, उपभोक्ताओं को बिजली कंपनी चुनने का विकल्प दिया जाए और निजी कंपनियों के एकाउंट की जांच के लिए अच्छे चार्टर एकाउंटेंट उपलब्ध करवाए जाएं। लेकिन उनकी बात नहीं मानी गई, जिससे निजी कंपनियों के हौसले बढ़ते गए।
यह सवाल आज का नहीं है यह तो बार-बार सामने आने वाला है इसलिए यह तय किया जाना चाहिए कि जो पहले से परंपरा चल रही है उसे जारी रखा जाए या बदला जाए तो कैसे? यह कैसे संभव है कि 51 फीसद शेयर वाले को बिना 49 फीसद के तस्दीक के कर्ज न मिल पाए। उसमें यह हर स्तर पर साफ किया जाना चाहिए कि यह जबाबदेही निजी कंपनियों की है वह पैसे का इंतजाम कहां से करें।
पहले ट्रांसको महंगी बिजली खरीद कर उन्हें सस्ती में देती थी और घाटा सरकार उठाती थी, इसका विरोध होने पर यह बंद हुआ तो 2006 में सरकार ने एक ट्रेडिंग कंपनी बनाने का प्रस्ताव किया था, जिसे तब के उप राज्यपाल ने मंजूर नहीं किया। तब से निजी कंपनी अपने से बिजली खरीदती-बेचती ही है। आप सरकार को बयानबाजी करने के बजाए इस पर गंभीरता से बात करके इस मसले को निबटारा करना जरूरी है। इसे किसी एक अफसर या एक व्यक्ति से जोड़ना ठीक नहीं है।
मनोज मिश्र