वित्त मंत्री अरूण जेटली ने रविवार को दावा किया कि हैदराबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय और जेएनयू दोनों घटनाक्रम ‘‘अतिवादी वामपंथी कदम’’ थे जिनसे ‘‘जिहादियों’’ का एक छोटा तबका भी जुड़ा था। उन्होंने कहा कि जेएनयू के मामले में मुख्यत: ‘‘अति वामपंथी’’ शामिल थे जिसमें ‘‘जेहादियों का एक छोटा वर्ग भी जुड़ा था जो नौ फरवरी को परिसर में प्रदर्शन के दौरान अपने चेहरे ढंके हुए थे। उस प्रदर्शन के दौरान राष्ट्रविरोधी नारे लगाए गए थे।

जेटली ने मीडिया के साथ बातचीत के दौरान कहा कि हैदराबाद विश्वविद्यालय के मामले में डॉ बी आर अंबेडकर के नाम का ‘‘अनुचित रूप से इस्तेमाल’’ किया गया जहां एक शोध छात्र रोहित वेमुला द्वारा आत्महत्या के बाद प्रदर्शन शुरू हो गए। उन्होंने इस तथ्य पर संतोष जताया कि देश भर में धार्मिक और अल्पसंख्यक समूहों तथा उनके नेताओं ने दोनों विश्वविद्यालयों के घटनाक्रम से शुरू की गयी बहस में भाग नहीं लिया।

मंत्री ने कहा, ‘‘ उदार वामपंथी और कांग्रेस उसमें फंस गए जो अति वामपंथियों का आंदोलन था।’’ उन्होंने कहा कि भाजपा ने इसे एक वैचारिक चुनौती के तौर पर लिया। उन्होंने कहा कि भाजपा ने इस वैचारिक बहस का ‘पहला चरण’ इस अर्थ में जीत लिया कि हर कोई कम से कम ‘‘इस नतीजे के करीब पहुंचा जिसकी हम बात कर रहे थे।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या वह बहस में और चरणों की उम्मीद कर रहे थे, भाजपा नेता ने कहा कि इस लड़ाई की शुरूआत उनकी पार्टी ने नहीं की थी ‘‘ हम बहस को इस सीमा तक नहीं पहुंचा रहे हैं लेकिन अगर कोई फिर से इसे फिर से शुरू करता है तो निश्चित रूप से बहस जारी रहेगी।’’ यह पूछे जाने पर कि राष्ट्रवाद पर चर्चा शुरू कर भाजपा राजनीतिक लाभ उठा रही है, जेटली ने कहा, ‘‘मैं किसी लाभ की ओर नहीं देख रहा हूं। यह एक वैचारिक स्थिति थी और हमने अपनी बात कर दी है। हमें नहीं लगता कि हम यह लड़ाई हार सकते।’’

जेटली ने कहा कि उन लोगों ने इसे एक वैचारिक चुनौती के तौर पर लिया और ‘‘…. कम से कम वे इस स्थिति में आए (कि ‘भारत माता की जय’ के बदले ‘जय हिंद’ बोलें ) । मुझे काफी खुशी है और संतुष्ट हूं कि वे इस स्थिति तक आए।’’ सवालों का जवाब देते हुए जेटली ने कहा कि विकास का सरकार का एजेंडा और राष्ट्रवाद को लेकर बहस के बीच कोई विरोधाभास नहीं है। उन्होंने कहा, ‘‘मैं समझता हूं कि देश में एक छोटा तबका है जिसे यह चर्चा बहुत आकर्षक नहीं लगती। इसलिए वह इस विषय से ध्यान भटकाना चाहता है।’’

एमआईम सांसद असादुद्दीन ओवैसी की टिप्पणी का परोक्ष रूप से जिक्र करते हुए जेटली ने कहा, ‘‘इस देश में एक नारा (भारत माता की जय) लगाना अनिवार्य नहीं है। लेकिन यह उस समय एक मुद्दा बन जाता है जब किसी ने कहा कि मुझे इस पर आपत्ति है तथा मैं यह नारा नहीं लगाउंगा।’’

यह पूछे जाने पर कि क्या जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष कन्हैया कुमार के खिलाफ देश्रदोह का आरोप दर्ज करना एक अति सख्त कदम था, जेटली ने कहा कि यह एक कानूनी मुद्दा है और वह इस बारे में टिप्पणी नहीं करना चाहेंगे। उन्होंने कहा, ‘‘यह व्यक्तिगत तौर पर दोषी ठहराए जाने का मामला बनता है। वह तकनीकी रूप से जवाबदेह हैं या नहीं, उनके खिलाफ किन धाराओं के तहत अभियोजन हो और क्या उनके खिलाफ अभियोजन हो या नहीं….।’’

उन्होंने कहा, ‘‘ऐेसे नारे लगाए जा रहे हैं कि इस देश को टूटने तक जंग होगी। हम जंग से इस देश को तोड़ देंगे। और एक व्यक्ति इस गैरकानूनी भीड़ में शामिल होता है जहां यह संकल्प लिया जा रहा है। इसलिए वह कानूनी रूप से जवाबदेह हैं या नहीं, एक सवाल है जिस पर अदालतों को गौर करना है।’’

कांग्रेस पर हमला बोलते हुए जेटली ने कहा कि मुख्यधारा की पार्टियों के लोगों को उस समूह में शामिल होने के पहले दो बार सोचना था कि जो इस देश को तोड़ने के लिए जंग की बात कर रहा हो। उन्होंने कहा, ‘‘संसद में मैंने कहा था कि दो तरह के लोग होते हैं- एक जो पहले सोचता है फिर कदम उठाता है और दूसरा तो पहले कदम उठाता है फिर सोचता है। कांग्रेस नेताओं ने पहले कदम उठा लिया। वे गए और शामिल हो गए और कहा कि ‘देश को तोड़ने वाला नारा’ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है और हम यहां इस अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा के लिए आए हैं।’’

जेटली ने दावा किया कि देश के भारी बहुमत ने भारत विरोधी नारों की प्रकृति को ही खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि वह व्यक्तिगत तौर पर विश्वविद्यालयों में ‘‘चरमपंथी रोमांच’’ के पक्ष में हैं जिसमें कोई अति उत्साह में ऐसी बातें करता है जो बहुत जिम्मेदारी भरी नहीं होती और 10 साल के बाद वह महसूस करता है कि वे समझदारी भरी बातें नहीं थीं। जेटली ने कहा, ‘‘आप उसके लिए लाइसेंस दे सकते हैं। लेकिन मैं समझता हूं कि देश की बर्बादी, देश के टुकड़े की बात करना… यह सभी सीमाओं को पार कर गया।’’