Arun Jaitley Death Dead News: पूर्व वित्त मंत्री और बीजेपी के कद्दावर नेता अरुण जेटली नहीं रहे। जेटली की छवि एक ऐसे दिलदार राजनेता की है, जो किसी की भी मदद करने से पीछे नहीं हटते थे। शायद यही वजह है कि ठीक उलट विचारधारा रखने वाले राजनेता भी आज उनको याद कर रहे हैं। जेटली उन शुरुआती लोगों में शुमार थे जिन्होंने नरेंद्र मोदी की योग्यता को पहचाना। वो 90 का दशक था और उस वक्त मोदी दिल्ली में एक ऐसे बीजेपी जनरल सेक्रेटरी थे, जिन्हें ज्यादा कोई नहीं जानता था।

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फिर 2010 का वक्त आया, जब कुछ वक्त के लिए अमित शाह को गुजरात छोड़ना पड़ा। शाह उस वक्त जेटली के संसद स्थित दफ्तर में वक्त गुजारते थे। कई लोग शाह को लोग अक्सर दफ्तर के कोने में बैठा हुआ पाते थे। स्वास्थ्य कारणों से राजनीति से दूरी बरतने के बावजूद आखिर तक जेटली पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के नियमित संपर्क में रहे। अपनी गिरती सेहत की वजह से जेटली ने नई सरकार में मंत्री पद तक लेने से इनकार कर दिया था।

राजनीतिक विचारधारा कभी जेटली की दोस्ती के दायरे को सीमित नहीं कर पाई। विभिन्न पार्टियों में उनके दोस्त रहे हैं। द इंडियन एक्सप्रेस के कार्यक्रम आइडिया एक्सचेंज में यूपीए के तत्कालीन मंत्री प्रणब मुखर्जी ने माना था कि विपक्ष में उन्हें जिस राजनेता से सबसे ज्यादा लगाव था, वह तत्कालीन राज्यसभा के नेता विपक्ष अरुण जेटली थे।

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जेपी आंदोलन के वक्त जेटली अपने समकालीन बिहार के नेताओं लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार के नजदीक आए। ज्योतिरादित्य सिंधिया और राजीव शुक्ला जैसे कांग्रेसी नेता उनके पारिवारिक मित्र थे। अमरिंदर सिंह ने भले ही 2014 आम चुनाव में उन्हें शिकस्त दी हो, लेकिन उसके बाद भी दोनों संपर्क में रहे। अकाली दल के बादल परिवार से भी जेटली का लंबा नाता रहा।

विभिन्न लोगों से अपने संपर्क की वजह से जेटली कई तरह के गठबंधन के सूत्रधार बने, राजनीतिक समझौते करवाए और मुश्किल में लोगों की मदद भी की। उदाहरण के तौर पर, 2017 में तत्कालीन प्रेसिडेंट प्रणब मुखर्जी के फेयरवेल पार्टी में जेटली ने नीतीश कुमार को जानकारी दी कि लालू उनकी पार्टी को तोड़ना चाहते हैं। इस बातचीत के दौरान ही बिहार में जेडीयू और बीजेपी के गठबंधन की आधारशिला रखी गई।