देशों के साथ दोस्ती में जानवरों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। जवाहरलाल नेहरू ने 1949 में जापान को हाथी का एक बच्चा भेंटस्वरूप दिया था जिसका नाम उनकी बेटी इंदिरा के नाम पर रखा गया था । वहीं, पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा को जिम्बाब्वे ने उपहार में एक अफ्रीकी हाथी दिया था और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मंगोलिया की उनकी यात्रा के दौरान एक मंगोलियाई घोड़ा भेंट किया गया था। पिछले कुछ महीने से जानवरों की मौत की समस्या से जूझ रहा दिल्ली चिड़ियाघर ‘जानवर कूटनीति’ को और मजबूत किए जाने की इच्छा जताता है। दिल्ली चिड़ियाघर के क्यूरेटर रियाज खान ने बताया कि यहां के चिड़ियाघर में मौजूद अफ्रीकी हाथी ‘शंकर’ का नाम पूर्व राष्ट्रपति शंकर दयाल शर्मा के नाम पर रखा गया है। पूर्व राष्ट्रपति को यह हाथी उपहार के रूप में जिम्बाब्वे सरकार ने दिया था । ‘‘उन्होंने यह हाथी हमें दे दिया।’’

चिड़ियाघर में हर साल लाखों पर्यटक आते हैं और इसे जिराफ, शुतुरमुर्ग, जेब्रा, कंगारू, सफेद मृग तथा पक्षियों और जानवरों की अन्य असाधारण किस्मों की बेहद आवश्यकता है । इसके एक अधिकारी ने कहा, ‘‘जानवर कूटनीति को विभिन्न देशों में संबंधों के रूप में एक महत्वपूर्ण साधन माने जाने के साथ ही यह संबंधित देशों के वन्यजीवन के लिए भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है । नेता आम तौर पर चिड़ियाघरों के लिए जानवरों को दान में देते हैं । लेकिन अधिकतर भारतीय नेताओं ने इस चलन में कोई सक्रिय रूचि नहीं दिखाई है ।’’ अधिकारी ने पूछा, ‘‘आॅस्ट्रेलिया में कंगारुओं की आबादी घटाने के लिए उन्हें मारा जाता है । इन्हें हमारे जैसे देशों को उपहार में क्यों नहीं दिया जा सकता ?’’ उन्होंने कहा कि भारतीय मंत्रियों को इस परंपरा को पुनर्जीवित करना चाहिए और विदेशी सरकारों द्वारा उन्हें उपहार में दिए जाने वाले जानवरों को लेने से मना नहीं करना चाहिए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को उनके मंगोलियाई समकक्ष चिमेदिन सैखानबिलेग ने 2015 में एक घोड़ा भेंट किया था। हालांकि दोनों देशों में भिन्न जलवायु स्थितियों के चलते घोड़े को भारत नहीं लाया जा सका । पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल को पाकिस्तान ने 2014 में ‘नाची’ नस्ल की बकरियां भेंट की थीं । इसी तरह उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल को सीमा पार से ‘रावी’ नस्ल की छह भैंसें दी गई थीं । चीन लंबे समय से अपनी ‘पांडा’ कूटनीति के लिए जाना जाता रहा है । चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के नेता माओ त्से तुंग 1950 के दशक में कूटनीति के रूप में पांडा का इस्तेमाल किया करते थे।