China Global Times Article: प्रधानमंत्री मोदी अभी हाल ही में अमेरिका के तीन दिवसीय दौरे पर थे। इस दौरान अमेरिका ने मोदी का जोरदार स्वागत किया। मोदी ने अपनी यात्रा के दौरान प्रवासी भारतीयों को संबोधित भी किया। साथ ही कई मद्दों पर अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन से बात की। प्रधानमंत्री मोदी यह दौरा कई मायनों में ऐतिहासिक भी रहा। अब जो सबसे बड़ी बात निकलकर सामने आ रही है, वो यह है कि भारत की अमेरिका से बढ़ती दोस्ती के को लेकर अब चीन के पेट में भी दर्द हो उठा है। जिसको लेकर चीन ने भारत को नसीहत दी है। चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स ने अमेरिका से दोस्ती को लेकर भारत को नसीहत दी है।

भारत को अमेरिका से सावधान रहने की जरूरत: ग्लोबल टाइम्स

ग्लोबल टाइम्स में प्रकाशित एक लेख में कहा गया है कि भारत को अमेरिका से सावधान रहने की जरूरत है। लेख में कहा गया है कि अमेरिका लंबे समय से चीन से निपटने के लिए भारत का सहारा लेता रहा है, लेकिन भारत को अमेरिका से पूरी तरह से सावधान रहने की जरूरत है। लेख में आगे यह भी कहा गया है कि अमेरिका की आदत है कि वह जियोपॉलिटिक्स को सत्ता और ताकत के चश्मे से देखता है। वह द्विपक्षीय संबंधों को लेनदेन की कसौटी पर परखता है। अमेरिका ऐसे देशों से गठजोड़ करता है, जिनसे उसे फायदा हो सके। संयुक्त राज्य अमेरिका किससे कितना फायदा होगा, उसके आधार पर देशों को महत्व देता है।

इस लेख में अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री हेनरी किसिंजर के हवाले से कहा गया कि उन्होंने एक बार कहा था कि अमेरिका का कोई स्थाई दोस्त नहीं है, उसके हित केवल स्थाई होते हैं। ग्लोबल टाइम्स में कहा गया कि अमेरिका दूसरे देशों की सद्भावना के बल पर सुपर पावर नहीं बना है, बल्कि दूसरे देशों के डर को भुनाकर वह यहां तक पहुंचा है, लेकिन आज चीन को लेकर अमेरिका के खुद के डर की वजह से वह सहयोगी देशों की तरफ देख रहा है।

मोदी दुनिया के तीसरे ऐसे पीएम जिन्होंने दो बार अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित किया

इस नजरिए से देखें तो अमेरिका के लिए भारत बिल्कुल सही सहयोगी है। क्योंकि इंडिया उसके सभी लक्ष्यों को पूरा कर सकता है। यही कारण है कि जहां एक तरफ अमेरिका भारत के प्रधानमंत्री मोदी की स्टेट विजिट के लिए रेड कार्पेट बिछा रहा था तो दूसरी तरफ विश्व के दो सबसे बड़े लोकतंत्र का हवाला देकर अमेरिका एक प्रोपेगैंडा भी चला रहा था, जिसमें भारत और अमेरिका के साझा हितों और मूल्यों (चीन का विरोध) को पेश किया जा रहा था। मोदी भारत के पहले और दुनिया के तीसरे ऐसे प्रधानमंत्री बन गए हैं, जिन्होंने दो बार अमेरिकी कांग्रेस को संबोधित किया है।

प्रधानमंत्री मोदी के इसी दौरे के दौरान एलन मस्क और रे डैलियो से लेकर अमेरिका की थिंकटैंक लॉबी के दिग्गज लाइन लगाकर मोदी से मिलने पहुंचे। चीन के साथ अपने मुद्दों को लेकर भारत भी अमेरिका के साथ है। भारत की रणनीति अमेरिका और चीन के साथ रहने की है, लेकिन स्वार्थ की दोस्तियां आम नफरतों (चीन के प्रति) पर आधारित होती हैं और इस तरफ की दोस्तियां आमतौर पर ज्यादा टिकने वाली नहीं होती। सैन्य प्रौद्योगिकी के लिए अमेरिका पर निर्भरता रूस पर निर्भरता की तुलना में अधिक खतरनाक है। दरअसल भारत अपना आधे से अधिक सैन्य हार्डवेयर रूस से आयात करता है।

ग्लोबल टाइम्स ने लिखा कि अमेरिका से दोस्ती बढ़ाते वक्त भारत को सावधान रहने की जरूरत है, क्योंकि अमेरिका का इतिहास पीठ में छुरा घोंपने वाला रहा है। अमेरिका अपने मित्र राष्ट्रों को धोखा देने के लिए जाना जाता है। कौन कह सकता है कि वह एक दिन भारत को भी इसी तरह धोखा देगा?

‘अमेरिका और भारत के संबंध टिकाऊ नहीं’

लेख में आगे कहा गया है कि जब भारत इतना सशक्त हो जाएगा कि वह अमेरिकी आधिपत्य को चुनौती देने लगेगा तो जाहिर सी बात है कि अमेरिका का रवैया भारत को लेकर बहुत तेजी से बदलेगा। अमेरिका और भारत के संबंध टिकाऊ नहीं है। अमेरिका ने सिर्फ इस तरह भारत के लिए अपने दरवाजे खोले हैं, ताकि वह चीन से निपट सके। यह अभी स्पष्ट नहीं है कि दोनों देशों का संबंध आखिर कब तक टिक पाएगा।

‘अमेरिका का दुश्मन होना खतरनाक, दोस्त होना उससे भी ज्यादा घातक’

ग्लोबल टाइम्स में कहा गया कि भारत बहुत स्मार्ट तरीके से चीन को लेकर अमेरिका की असुरक्षा को भुना रहा है, लेकिन भारत के प्रधानमंत्री को सचेत रहने की जरूरत है। इस बात का इतिहास साक्षी है कि अमेरिका जो वादे करता है। उन वादों को पूरा करने की उसकी नीयत नहीं होती। एक बार किसिंगर ने कहा था कि अमेरिका का दुश्मन होना खतरनाक हो सकता है, लेकिन अमेरिका का दोस्त होना उससे भी घातक है। अमेरिका एक ऐसा देश है, जो युद्ध चाहता है और उससे अपना लाभ लेता है।