अखिल भारतीय हिंदू महासभा (ABHM) ने कारसेवकों के खिलाफ दर्ज उन सभी मुकदमों को वापस लेने की मांग की है जो 1992 में बाबरी ध्वस्त के वक्त दर्ज किए गए थे। शनिवार (9 नवंबर, 2019) को दिए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए संगठन ने 1992 या उससे पहले अयोध्या आंदोलन के दौरान मारे गए सभी राम भक्तों के लिए ‘शहीद’ का दर्जा देने की भी मांग की है। इसके अलावा मृतकों के परिजनों को आर्थिक मदद और सरकारी नौकरी देने की मांग की। संगठन ने मांग की सरकार कारसेवकों को धार्मिक स्वतंत्रता सेनानी घोषित करे।

संगठन ने इस बाबत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को एक पत्र भी लिखा है। संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष चक्रपाणि महाराज द्वारा लिखे गए पत्र में कहा, ‘सुप्रीम कोर्ट ने शनिवार को रामलला के पक्ष में अपना फैसला सुना। कोर्ट ने इसके साथ ही यह भी स्पष्ट कर दिया कि वहां एक मंदिर मौजूद थे। इससे संबंध में मैं आपसे तीन मांगे चाहता हूं।’

हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इतनी स्पष्ट बातें नहीं कहीं जितनी पीएम मोदी और अन्य नेताओं को भेजे पत्र में कहीं गईं। शनिवार के अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाने की पुख्ता जानकारी नहीं है। सबसे जरूरी कोर्ट ने यह निष्कर्ष निकाला था कि 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद का ढहाया जाना कानून का उल्लंघन था।

इसी बीच रामजन्मभूमि न्यास ने कहा कि अयोध्या में राम मंदिर निर्माण की निगरानी करने वाले ट्रस्ट की अध्यक्षता यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ को करनी चाहिए। न्यास के मुताबिक सीएम योगी को गोरक्षा पीठ के महंत के तौर पर ट्रस्ट की अध्यक्षता करनी चाहिए ना की मुख्यमंत्री की रूप में।