छत्तीसगढ़ में जहां विधानसभा चुनाव सिर्फ दो साल दूर है वहां पूर्व मुख्यमंत्री अजीत जोगी ने एक नई पार्टी का गठन कर न सिर्फ लोगों को चौकाया है, साथ ही उनके इस फैसले ने दोनों बड़े राजनीतिक दलों कांग्रेस और भाजपा के नेताओं को राजनीतिक नफे नुकसान को लेकर विचार करने पर मजबूर कर दिया है। छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में अजीत जोगी की इस राजनीति चाल का उन्हें कितना फायदा मिलेगा यह तो समय ही बताएगा लेकिन इतना जरूर है कि इससे दिल्ली से लेकर छत्तीसगढ़ तक की राजनीति में हलचल मच गई है।
जोगी का कहना है कि उन्हें यह नया दल गठित करने के लिए इसलिए मजबूर होना पड़ा क्योंकि उन्हें महसूस हुआ कि राज्य कांग्रेस रमन सिंह सरकार को राज्य से बाहर का रास्ता दिखाने में पूरी तरह सक्षम नहीं है। जोगी ने कहा कि ‘ऐसा लगा कि राज्य की मुख्य विपक्षी कांग्रेस भाजपा सरकार के कुशासन के खिलाफ लड़ने की जगह उसके सहायक की भूमिका में आ गई है जबकि राज्य को एक मजबूत विपक्ष की जरूरत है। उन्होंने कहा, ‘मेरे समर्थक और शुभचिंतक चाहते थे कि मैं इस भ्रष्ट शासन से राज्य को निजात दिलाने के लिए कोई ठोस फैसला लूं।’
आगामी विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा को सत्ताविरोधी लहर का सामना करना पड़ सकता है और इसके अलावा उसे कांग्रेस की मजबूत टक्कर का और जोगी की नवगठित पार्टी के विरोध का भी सामना करना पड़ेगा। राज्य के सतनामी अनुसूचित जाति समुदाय और राज्य की कुल जनसंख्या का लगभग पचास प्रतिशत आदिवासी समुदाय पर जोगी का काफी प्रभाव है। इसलिए माना जा रहा है कि वह इस क्षेत्र में भाजपा और कांग्रेस दोनों की संभावनाओं को क्षति पहुंचा सकते हैं।
अगर जोगी अनुसूचित जाति समुदाय के मतदाताओं का समर्थन अपनी तरफ खींच सके तो इससे भाजपा को नुकसान होगा जिसके पास इस समय विधानसभा की दस सुरक्षित सीटों में से नौ सीटें हैं। हालांकि, दोनों मुख्य दलों के नेता जोगी को अपने लिए चुनौती नहीं मानते और इसके उलट उनका मानना है कि जोगी के प्रतिस्पर्धा में रहने का फायदा उन्हें मिलेगा।
उधर, भाजपा के राज्य प्रमुख धर्मलाल कौशिक कहते हैं कि जोगी के कांग्रेस से टूटकर अलग होने से मुख्य विपक्षी कांग्रेस का वोट बैंक बंटेगा और इससे भारतीय जनता पार्टी को फायदा होगा। इसलिए यह कहना कि भाजपा उन्हें लेकर चिंतित है सही नहीं है। वहीं कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष भूपेश बघेल कहते हैं कि राज्य में विधानसभा चुनाव के दौरान भारतीय जनता पार्टी जोगी की छवि का लाभ लेती आई है और उन्हें लगता है कि उसे अब भी जोगी की इस नई पार्टी का लाभ मिलेगा। बघेल ने कहा कि भाजपा पिछले चुनावों में हमेशा जोगी की नकारात्मक छवि को भुनाने का प्रयास करती रही है। अब जबकि जोगी कांग्रेस से बाहर हैं, पार्टी को उसका फायदा मिलेगा।
जोगी ने सोमवार (6 जून) को एक नई पार्टी के गठन की औपचारिक घोषणा की थी। इससे पहले उन्होंने कांग्रेस पर यह आरोप लगाकर की वह राज्य में भाजपा की ‘बी’ टीम की तरह काम कर रही है बगावत का झंडा बुलंद कर दिया था। कांग्रेस ने वर्ष 2000 में मध्यप्रदेश के विभाजन के बाद नौकरशाह से राजनेता बने जोगी को नवगठित छत्तीसगढ़ राज्य का पहला मुख्यमंत्री बनाकर लोगों को चौंका दिया था। राज्य में उस दौरान कद्दावर नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री विद्याचरण शुक्ल और उनके चाहने वालों को उम्मीद थी कि कांग्रेस इस नए राज्य के पहले मुख्यमंत्री के रूप में शुक्ल की ही ताजपोशी करेगी। लेकिन हुआ वही जो कांग्रेस आलाकमान ने चाहा और जोगी छत्तीसगढ़ के पहले मुख्यमंत्री हो गए। तब से लेकर अब तक जोगी अपने राजनीतिक विरोधियों को अपनी चालों और फैसलों से चौंका ही रहे हैं।
लेकिन जब वर्ष 2003 के चुनाव में राज्य में भारतीय जनता पार्टी ने कांग्रेस को पछाड़ दिया तो कांग्रेस की हार का ठीकरा जोगी के सिर पर ही फोड़ा गया और जोगी की छवि को इस हार का कारण माना गया। इसके बाद राज्य में लगातार तीन बार भाजपा की सरकार बनी और जोगी धीरे धीरे हाशिए पर चले गए। नतीजा यह हुआ कि राज्य में खेमों में बंटी कांग्रेस के सभी खेमे जोगी के खिलाफ हो गए तथा कांग्रेस भवन और सागौन बंगला के बीच खाई बढ़ती गई। अंतत: एक समय पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के करीबी माने जाने वाले अजीत जोगी ने राज्य में नई पार्टी बनाकर उस दल के लिए चुनौती खड़ी कर दी जिसके लिए उन्होंने भारतीय प्रशासनिक सेवा की नौकरी छोड़ी थी।