चुनाव की दहलीज पर खड़े बिहार में एनडीए और महागठबंधन में शामिल दलों की तैयारियों के बीच एक पार्टी को लेकर काफी चर्चा है। इस पार्टी का नाम है AIMIM और इसके प्रमुख हैं असदुद्दीन ओवैसी। ओवैसी बिहार में महागठबंधन के साथ मिलकर विधानसभा चुनाव लड़ना चाहते हैं। वह पिछले कई महीनों से कोशिश कर रहे हैं कि उनकी पार्टी को महागठबंधन में शामिल कर लिया जाए लेकिन महागठबंधन विशेषकर राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) इसके लिए तैयार नहीं दिखाई देता।

ओवैसी इस बात को कई मर्तबा साफ कर चुके हैं कि अगर उन्हें महागठबंधन में जगह नहीं मिली तो वह अकेले ही चुनाव मैदान में उतर जाएंगे। अगर ओवैसी अकेले चुनाव लड़ गए तो इससे महागठबंधन को बड़ा नुकसान हो सकता है। खासकर आरजेडी इस बात को लेकर परेशान है कि ओवैसी उसे मिलने वाले मुस्लिम मतों में सेंधमारी कर सकते हैं।

2020 के विधानसभा चुनाव में AIMIM को ने पांच सीटों पर जीत हासिल की थी। हालांकि बाद में चार विधायकों ने पार्टी छोड़ दी थी और वे आरजेडी के साथ चले गए थे।

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बीजेपी और एनडीए को होगा फायदा?

अगर ओवैसी का अलग चुनाव लड़ना आरजेडी और महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ाएगा तो बीजेपी और एनडीए को इससे राजनीतिक सुकून मिलेगा क्योंकि वे जानते हैं कि सीमांचल में कई सीटों पर ओवैसी महागठबंधन का राजनीतिक खेल बिगाड़ने की ताकत रखते हैं।

ओवैसी का मुख्य आधार मुस्लिम समुदाय के बीच ही है। पिछले कई सालों से ओवैसी लगातार बिहार जाते रहे हैं। राज्य में AIMIM के प्रदेश अध्यक्ष अख्तरुल ईमान कहते हैं कि 25 जिलों में उनकी पार्टी का मजबूत संगठन है और वह 100 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं। AIMIM न सिर्फ सीमांचल बल्कि इससे बाहर निकलकर मगध और दूसरे इलाकों में भी चुनाव लड़ने के लिए तैयार है।

आइए, जानते हैं कि बिहार के कुछ जिलों में मुस्लिम समुदाय की कितनी आबादी है।

जिला मुस्लिम आबादी (अनुमान प्रतिशत में)
औरंगाबाद15%
गया15%
पटना15%
दरभंगा15%
मधेपुरा15%
भागलपुर15%
पूर्णिया30%
कटिहार38%
सुपौल15%
मधुबनी24%
सीतामढ़ी21%
किशनगंज65%
अररिया 32%

सीमांचल में हैं 24 सीटें

सीमांचल के चार जिलों- किशनगंज, कटिहार, अररिया और पूर्णिया में विधानसभा की 24 सीटें आती हैं। 2020 के विधानसभा चुनाव में राजनीतिक विश्लेषक AIMIM के प्रदर्शन से हैरान रह गए थे क्योंकि उसने इनमें से पांच सीटें अपनी झोली में डाली थी। 2011 की जनगणना के मुताबिक, अररिया में 43 फीसदी, किशनगंज में 68 फीसदी, पूर्णिया में 38 फीसदी और कटिहार में 44 फीसदी मुस्लिम आबादी है।

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लोकसभा चुनाव 2024 में AIMIM ने 10 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे लेकिन पार्टी को किसी भी सीट पर सफलता नहीं मिल सकी थी।

बिहार के राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, सीमांचल में AIMIM की सक्रियता बढ़ने से पहले आरजेडी का दबदबा हुआ करता था। मुस्लिम मतों का कुछ हिस्सा नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू को भी मिलता है लेकिन ओवैसी ने इसमें बड़ी सेंध लगाई है और इससे आरजेडी की मुश्किलों में इजाफा हुआ है।

AIMIM के विस्तार में जुटे हैं ओवैसी

ओवैसी का कहना है कि वह बीजेपी को चुनाव हराना चाहते हैं और सांप्रदायिक ताकतों को सत्ता में आने से रोकना चाहते हैं। ऐसे में आरजेडी के नेता उनसे सवाल पूछते हैं कि अगर वह वाकई ऐसा चाहते हैं तो बिहार में उन्हें चुनाव नहीं लड़ना चाहिए और INDIA गठबंधन का समर्थन करना चाहिए लेकिन ओवैसी पिछले कई साल से AIMIM का हैदराबाद से बाहर विस्तार करने में जुटे हैं।

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17% मुस्लिम आबादी किसके साथ जाएगी?

आरजेडी की नजर बिहार की 17% मुस्लिम आबादी के वोटों पर है। इसके अलावा कांग्रेस को भी मुस्लिम मतों का कुछ हिस्सा मिल सकता है। बीते दिनों में बिहार में वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ बहुत बड़ी-बड़ी रैलियां हुई हैं और विपक्षी दलों ने इसका पुरजोर विरोध कर मुस्लिम समुदाय के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की थी। बिहार की 243 विधानसभा सीटों में से 47 सीटों पर मुस्लिम वोटर बड़ी राजनीतिक ताकत हैं। 47 सीटों में मुस्लिम आबादी 20 से 40 प्रतिशत या इससे ज्यादा है।

आरजेडी और महागठबंधन को शायद ये पता है कि अगर ओवैसी उनके साथ आ गए तो इसे बीजेपी मुद्दा बना सकती है और हिंदू वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है और ऐसी स्थिति में बीजेपी और एनडीए को फायदा हो सकता है।

यह बात कुछ हद तक सही है कि असदुद्दीन ओवैसी सीमांचल की 24 विधानसभा सीटों पर तो असर रखते हैं लेकिन उसके बाहर वह आरजेडी या महागठबंधन को बहुत ज्यादा नुकसान नहीं पहुंचा पाएंगे। लेकिन अगर ओवैसी बिहार में अलग विधानसभा चुनाव लड़े तो मुस्लिम समुदाय के सामने भी असमंजस वाले हालात बन जाएंगे कि वह महागठबंधन का समर्थन करे कर अपने वोटों का बंटवारा होने से बचाए या फिर ओवैसी का साथ दे।

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