जम्मू-कश्मीर के राजौरी में हुए ब्लास्ट में 23 साल के अग्निवीर अजय सिंह शहीद हो गए। वे बेहद गरीब परिवार से थे। उनकी मां लक्ष्मी उर्फ मंजीत कौर घरों में घरेलू सहायिका का काम करती हैं। वहीं पिता चयरणजीत सिंह काला दिडाड़ी मजदूर हैं। अजय के 7 भाई-बहन हैं। उन्होंने अग्निवीर बनना चुना। परिवार को लगा कि अब घर की हालत सुधर जाएगी मगर अजय के अचानक छोड़ के चले जाने से माता-पिता एक बार फिर हताश-निराश हो गए हैं।
अजय का परिवार लुधियाना जिले के पायल डिवीजन के रामगढ़ सरदारन गांव में एक कमरे के घर में रहता है। उनके पास कोई जमीन भी नहीं है कि वे खेती कर सके। अजय हमेशा से कुछ करना चाहते थे। वे परिवार को गरीबी से निजात दिलाना चाहते थे। इसी कारण 2022 में वे अग्निवीर के रूप में सेना में शामिल हुए।
उनकी मौत से 58 साल के पिता गमगीन हैं। उन्होंने हमारे सहयोगी द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि उनके बेटे का बलिदान भी उतना ही सम्मान का हकदार है, जितना देश के लिए शहीद होने वाले अन्य सैनिकों को दिया जाता है। “ओहनू वी शहीद दा दरजा मिल्ना चाहिदा है (वह भी शहीद के दर्जे का हकदार है)। हमें देश के लिए उनके बलिदान पर गर्व है लेकिन वह भी उतना ही सम्मान और गौरव का हकदार जितना अन्य सैनिकों को दिया जाता है।”
मां ने दूसरों के घरों में काम करना जारी रखा
चरणजीत सिंह काला ने अपने परिवार की हालत के बारे में बताते हुए कहा कि अजय के सेना में शामिल होने के बाद भी उनकी मां ने घर चलाने के लिए दूसरों के घरों में काम करना जारी रखा। “मैंने जिंदगी भर एक मजदूर के रूप में काम किया। जब मैं बीमार रहने लगा तो अजय की मां ने दूसरों के घरों में खाना पकाने और साफ-सफाई का काम करना शुरू कर दिया, ताकि हम दिन में दो बार भोजन कर सकें”।
अजय के पिता ने कहा,”हमने अपनी चार बेटियों की शादी के लिए कुछ कर्ज लिया था। सरकारी स्कूल से 12वीं कक्षा पास करने के बाद अजय ने कुछ समय तक मजदूर के रूप में भी काम किया था, लेकिन जैसे ही अग्निवीर की रिक्तियां खुलीं उसने तुंरत इसके लिए आवेदन कर दिया। उन्होंने आगे कहा कि भले ही 4 सालों तक मगर एक सैनिक बनना उसका सपना था।”
वहीं अजय के चाचा बलविंदर सिंह ने कहा कि अगर सरकार उनके लिए कुछ नहीं करती है तो यह परिवार के साथ अन्याय होगा क्योंकि उन्होंने देश के लिए अपना बेटा खो दिया है। “इस परिवार की आर्थिक स्थिति इतनी खराब है कि इसे शब्दों में बयां करना भी मुश्किल है। उनका एकमात्र उम्मीद उनका बेटा था, वह भी चला गया। हमें उम्मीद है कि पंजाब सरकार अपनी नीति के अनुसार उन्हें उनका उचित 1 करोड़ रुपये मुआवजा देगी और अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगी। ताकि मृत अग्निवीरों के परिवारों को उचित लाभ मिले, उन्होंने अपना सब कुछ खो दिया है।”