अमेठी लोकसभा सीट को लेकर सस्पेंस खत्म हो गया है। इस सीट से कांग्रेस ने केएल शर्मा को चुनाव मैदान में उतारा है। नहीं रायबरेली से राहुल गांधी उम्मीदवार बनाए गए हैं। दोनों ही सीटें गांधी परिवार का गढ़ मानी जाती है। लंबे समय दोनों ही सीटों पर गांधी परिवार को कब्जा रहा है। फिलहाल अमेठी से स्मृति ईरानी सांसद हैं। स्मृति ईरानी ने 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष राहुल गांधी को हराया था। स्मृति ईरानी एक बार फिर अमेठी से चुनाव मैदान में हैं। वहीं इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने नन्हें सिंह चौहान को प्रत्याशी बनाया है।

25 साल बाद अमेठी में गांधी परिवार का कोई शख्स चुनाव मैदान में नहीं

अमेठी की सीट गांधी परिवार का गढ़ मानी जाती है। साल 1998 के बाद ऐसा पहली बार है कि अमेठी सीट से गांधी फैमिली का कोई शख्स चुनावी मैदान में नहीं है। इस सीट से आखिरी बार 1998 में सतीश शर्मा ने चुनाव लड़ा था। इस चुनाव में संजय सिंह ने उन्हें करारी शिकस्त दी थी। इसके बाद से यह सीट लगातार कांग्रेस के कब्जे में रही। 2004 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से राहुल गांधी को जीत मिली। वह 2019 तक इस सीट से सांसद रहे।

2019 के लोकसभा चुनाव में लगातार तीन बार के सांसद राहुल गांधी चौथी बार अमेठी सीट से मैदान में थे। 2019 के चुनाव में राहुल गांधी और बीजेपी की स्मृति ईरानी के बीच कड़ी टक्कर देखने को मिली थी। 2014 में राहुल गांधी से शिकस्त मिलने के बाद बीजेपी ने एक बार फिर स्मृति ईरानी पर भरोसा जताया था। 2019 के चुनाव में स्मृति ईरानी को 4 लाख 68 हजार 514 वोट मिले। वहीं राहुल गांधी 4 लाख 13 हजार 394 वोट ही हासिल कर सके।

केएल शर्मा पर कांग्रेस को भरोसा क्यों?

किशोरी लाल शर्मा को गांधी परिवार का काफी करीबी माना जाता है। वह रायबरेली में सोनिया गांधी के प्रतिनिधि रह चुके हैं। उन्हें चुनाव प्रबंधन का भी लंबा अनुभव है। कांग्रेस के सामने इस समय सबसे बड़ी चुनौती अमेठी में अपने खोए हुए गढ़ को वापस पाने की है। मूल रूप से पंजाब के लुधियाना के रहने वाले किशोरी लाल ने 1983 में यूथ कांग्रेस के साथ अपने सियासी सफर का आगाज किया था। तब वह राजीव गांधी के करीब आ गए। उनके साथ वह लगातार रायबरेली और अमेठी के दौरे पर रहते थे। राजीव गांधी के निधन के बाद गांधी परिवार को और करीब आ गए। केएल शर्मा ने अमेठी और रायबरेली में शीला कौल और सतीश शर्मा का काम भी देखा। इसके बाद सोनिया गांधी जब रायबरेली से सांसद बनीं तो किशोरी लाल उनके प्रतिनिधि बन गए।

अमेठी सीट का क्या रहा चुनावी इतिहास?

पहले अमेठी सुल्तानपुर साउथ संसदीय सीट का हिस्सा हुआ करता था। इसके बाद सुल्तानपुर जिले की चार और प्रतापगढ़ की एक अठेहा विधानसभा को मिलाकर मुसाफिरखाना लोकसभा सीट का गठन हुआ, जिसका हिस्सा अमेठी हुआ करती थी। 1967 के लोकसभा चुनाव में पहली बार अमेठी सीट अस्तित्व में आई थी। पहली बार इस सीट पर कांग्रेस के विद्याधर वायपेयी सांसद बने थे। इसके बाद 1972 में वह दोबारा इस सीट से सांसद बने। 1977 के चुनाव में पहली बार गांधी परिवार के किसी सदस्य ने इस सीट से चुनाव लड़ा। तब कांग्रेस ने संजय गांधी को इस सीट से चुनाव मैदान में उतारा था।

हालांकि इमरजेंसी के कारण कांग्रेस सरकार के खिलाफ देशभर में माहौल था। संजय गांधी को इसका खामियाजा भी उठाना पड़ा। इस चुनाव में संजय गांधी की हार हुई और जनता पार्टी के उम्मीदवार रविंद्र प्रताप सिंह यहां से सांसद चुने गए। 1980 में संजय गांधी की मृत्यु हो गई। बाद में इस सीट पर इंदिरा गांधी के बड़े बेटे राजीव गांधी ने चुनाव लड़ा और उन्हें जीत मिली। 1984 में एक बार फिर राजीव गांधी को इस सीट से जीत मिली। इसी बीच इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई। इसके बाद राजीव गांधी देश के प्रधानमंत्री बने।

जब राजीव गांधी को मेनका ने दी थी टक्कर

1984 में राजीव गांधी के प्रधानमंत्री बनने के बाद जब लोकसभा चुनाव हुए तो अमेठी से राजीव गांधी ने एक फिर पर्चा भरा। यहां संजय गांधी की पत्नी मेनका गांधी ने भी निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर पर्चा भर दिया। नेहरू और गांधी परिवार के बीच यहां सीधी टक्कर देखने को मिली। हालांकि तब इसके चुनावी नतीजे आए को मेनका गांधी के हाथ निराशा लगीं। चुनाव में राजीव को 3,65,041 वोट जबकि उनके विरोध में उतरीं मेनका को महज 50,163 वोट ही मिल सके। इस सीट से राजीव गांधी 1989 में भी सांसद बने। हालांकि 1991 के चुनाव में प्रचार के दौरान उनकी हत्या कर दी गई। इसके बाद उपचुनाव में कांग्रेस के सतीश शर्मा सांसद बने। हालांकि 1998 में बीजेपी के संजय सिंह ने उन्हें शिकस्त दे दी। इसके बाद 1999 के चुनाव में सोनिया गांधी इस सीट से सांसद बनी।