सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस रंजन गोगोई इसी सप्ताह राज्यसभा सांसद की शपथ ले सकते हैं। उन्होंने पद ठुकराने की सलाह या मनोनयन की आलोचनाओं को दरकिनार करते हुए कहा है कि शपथ लेने के बाद वह बताएंगे कि क्यों मनोनयन स्वीकार किया? जस्टिस गोगोई ने कभी कहा था कि रिटायरमेंट के बाद जजों द्वारा कोई पद लेना न्यायपालिका की स्वतंत्रता के विचार पर बदनुमा दाग है। यह बात उन्होंने 2018 में पांच जजों की पीठ के मुखिया के तौर पर कही थी।
रिटायरमेंट से कुछ वक्त पहले जब उन पर यौन शोषण के आरोप लगे थे तो उन्होंने शनिवार की सुबह इस मामले पर आपात सुनवाई की थी। तब उन्होंने कहा था कि उनके पास जो हैं वह बस इज्जत ही है। पैसा तो उनके चपरासी के पास उनसे ज्यादा होगा। इसे उन्होंने एक जज के तौर पर अपनी स्वतंत्रता का सबूत भी बताया था।
इन-हाउस कमेटी की जांच में उन्हें इस आरोप से बरी कर दिया गया था और 17 नवंबर, 2019 को वह रिटायर भी हो गए थे। लेकिन, बस चार महीने बाद 16 मार्च, 2020 को उन्हें केटीएस तुलसी की जगह राज्यसभा सांसद मनोनीत करने का आदेश जारी हुआ। इस आदेश के बाद एक बार फिर उनकी इन पुरानी बातों को याद किया जा रहा है।
‘शपथ के बाद बताऊंगा कि क्यों स्वीकारा…’, राज्यसभा के ऑफर पर बोले जस्टिस गोगोई
गोगोई अहम मसलों पर फैसला सुनाने के लिए तो याद किए ही जाते हैं, नौकरी में रहते हुए एक और मामले में उन्होंने इतिहास बनाया था। उन्होंने तीन जजों के साथ मिल कर मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। ये तीन जज थे- जस्टिस चेलामेश्वर, जस्टिस कुरियन जोसेफ और जस्टिस मदन बी लोकुर। ऐसा शायद भारत में पहली बार हुआ था।
जस्टिस गोगोई के साथ प्रेस कॉन्फ्रेंस करने वाले तीन जजों ने रिटायरमेंट के बाद पद लेने को लेकर अपना रुख साफ किया है। जस्टिस कुरियन जोसेफ ने रिटायरमेंट के अगले दिन ही कहा था कि नौकरी के बाद सरकार द्वारा कोई पद बतौर ‘खैरात’ दिया जाता है, इसलिए जजों को यह नहीं लेना चाहिए। उन्होंने कहा था, ‘जब तक सरकार यह समझती हो कि रिटायर्ड जजों को पद देकर उन पर मेहरबानी कर रहे हैं, तब तक किसी जज को यह स्वीकार नहीं करना चाहिए। अगर किसी जज को आदरपूर्वक बुलाया जाए, आग्रह किया जाए और पूरी प्रक्रिया सम्मानपूर्वक निभाई जाए तो स्वीकार करने में कोई हर्ज नहीं है, क्योंकि कई ट्रिब्यूनल ऐसे हैं जिनमें जजों को रखना अनिवार्य होता है।’
जस्टिस जे. चेलामेश्वर ने सार्वजनिक रूप से घोषणा की थी कि वह रिटायरमेंट के बाद सरकार द्वारा दिया जाने वाला कोई पद स्वीकार नहीं करेंगे। जस्टिस लोकुर का रुख भी रिटायरमेंट के बाद कोई पद स्वीकार करने के खिलाफ ही रहा है। जस्टिस गोगोई के राज्यसभा के लिए मनोनयन पर उन्होंने सवाल किया है कि क्या आखिरी किला भी ढह गया है?