संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक पंजीकरण (एनआरसी) पर बवाल के बीच मोदी सरकार ने राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के अपडेशन को मंजूरी दे दी है। एनपीआर के लिए 2010 में डेटा एकत्रित किया गया था जिसे 2015 में अपडेट किया गया था। एनपीआर को देशभर में एनसीआर का विस्तार कहा जा रहा है। बता दें कि एनआरसी सिर्फ असम में लागू है। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि एनपीआर एनआरसी की तरफ बढ़ने की पहली प्रक्रिया है।

ओवैसी ने दिल्ली में रामलीला मैदान में प्रधानमंत्री मोदी के भाषण का भी हवाला दिया। उन्होंने कहा कि मोदी ने कहा था कि एनआरसी पर कोई चर्चा नहीं है। ओवैसी ने इस पर कहा कि राष्ट्रपति ने राजग सरकार के गठन के बाद संसद में कहा था कि एनआरसी लाया जाएगा।

क्या एनपीआर और एनआरसी में कोई लिंक है। क्या मोदी सरकार एनपीआर के जरिए देशभर में एनआरसी की प्रक्रिया को आगे बढ़ा रही है। नागरिकता से जुड़े सीएए, एनआरसी और एनपीआर पर जारी विवाद पर एक न्यूज चैनल के लाइव डिबेट शो में चर्चा हुई। इस दौरान बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता संबित पात्रा ने एक ऐसी बात कही जिसपर सीपीएम नेता मो. सलीम जमकर हंसने लगे।

दरअसल डिबेट के दौरान महिला एंकर ने बीजेपी प्रवक्ता से एनपीआर के जरिए देशव्यापी एनआरसी लाने के बारे में सवाल पूछा। इस सवाल पर पात्रा ने कई सारे तर्क दिए। उन्होंने कहा ‘पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी कहते थे कि मैं 100 पैसा गरीब के लिए भेजता हूं तो उसमें से 80 पैसा रास्ते में खो जाता है। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 100 पैसे सीधे गरीब को भेजने की बात करते हैं। साल 2011 में जब कांग्रेस की सरकार थी और गृह मंत्रालय उनके अधीन था तो जब उनसे पूछा गया था कि क्या वे एनपीआर के जरिए देशभर में एनआरसी को लागू करना चाहते हैं तो उन्होंने जवाब दिया था कि कानून के हिसाब से एनआरसी एनपीआर का ही सबसेट है। मतलब एनआरसी होगा और वह भी एनपीआर के माध्यम से।’

पात्रा के इनता कहते ही एंकर उन्हें बीच में ही टोक देती हैं और कहती हैं ‘तो क्या कांग्रेस चाहती है कि देशभर में एनआरसी हो बीजेपी नहीं चाहती क्या?’ एकंर के इस सवाल को सुनते ही सीपीएम नेता जोर से हंसने लगते हैं। इस दौरान बीजेपी प्रवक्ता कहते हैं ‘कांग्रेस ने तो 2011 में यह लिखित में कहा है। लेकिन हमने कब कहा कि एनआरसी राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (एनपीआर) के जरिए होगा। विपक्ष के सवाल करने पर क्या हम गरीबों के लिए सोचना छोड़ दें या फिर देश में जनसंख्या की प्रक्रिया को ही न होने दें। देखिए तर्क होता है वितर्क होता है लेकिन वितंडाबाद का कोई उत्तर नहीं होता।’ देखिए डिबेट में आगे क्या हुआ:-