2024 के लोकसभा चुनाव को लेकर विपक्षी खेमे में सियासी हलचल तेज हो गई है। जिस विपक्षी एकता की बात पिछले कई महीनों से की जा रही है, कल यानी कि 23 जून को उसका पहला और सबसे अहम लिटमस टेस्ट होने जा रहा है। कई विपक्षी पार्टी के नेता कल पटना में एकजुट होने जा रहे हैं। राहुल गांधी से लेकर ममता बनर्जी तक, सभी दस्तक देंगे, उदेश्य एक ही- बीजेपी को रोकना है, मोदी को हराना है।
नेता कई, दिल मिले या नहीं?
इस विपक्षी बैठक में राहुल गांधी, मल्लिकार्जुन खड़गे, ममता बनर्जी, उद्धव ठाकरे, शरद पवार, अरविंद केजरीवाल, हेमंत सोरेन, स्टालिन, अखिलेश यादव, सीताराम येचुरी, डी राजा, और दीपांकर भट्टाचार्य शिरकत करने जा रहे हैं। लेकिन सवाल ये कि विपक्ष सही मायनों में एकजुट हो पा रहा है या नहीं? कहीं ऐसा तो नहीं सिर्फ एक सियासी संदेश देने के लिए सब साथ आ रहे हों, और दिल अभी तक ना मिले हों?
राजस्थान में कांग्रेस पर वार, केजरीवाल के मन में क्या?
ये सवाल इसलिए क्योंकि जो एकजुट होता है, वो एक दूसरे खिलाफ बयानबाजी नहीं करता, वो एक दूसरे ही को समय-समय पर कठघरे में खड़ा नहीं करता। लेकिन इस विपक्षी एकता में विवाद की कई चिंगारियां हैं जिन्हें अगर हवा दी गई तो वो बड़ी सियासी आग में तब्दील हो सकती है। इसे ऐसे समझ सकते हैं कि जो अरविंद केरीवाल लगातार विपक्षी एकता की बात कर रहे हैं, जो पहले सत्येंद्र जैन और फिर मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी के बाद सभी विपक्ष को साथ लाने की बात कर चुके हैं, राजस्थान जाकर उनकी तरफ से सबसे बड़ा सियासी हमला वहां के सीएम अशोक गहलोत पर किया जाता है।
केजरीवाल का पास्ट ट्रैक रिकॉर्ड क्या कहता?
केजरीवाल राजस्थान की धरती से कहते हैं कि देश में सिर्फ दो पार्टियां बीजेपी और कांग्रेस ही हैं, जिन्होंने 75 साल तक शासन किया है। आज हमारा देश अगर गरीब है, पिछड़ा है और हमारे देश के लोग अशिक्षित हैं तो इसकी जिम्मेदार यही दो पार्टियां हैं। गहलोत को लेकर केजरीवाल ने बोला कि गहलोत जब विपक्ष में थे तो वसुंधरा पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाते थे, लेकिन जब वह सत्ता में आए तो दोनों भाई-बहन बन गए। बेचारे सचिन पायलट ‘अरेस्ट वसुंधरा’ कहकर फूट-फूट कर रो रहे हैं, लेकिन गहलोत का कहना है कि वह उन्हें गिरफ्तार नहीं करेंगे। गहलोत कहते हैं कि वह उनकी बहन हैं। केजरीवाल ने जोर देते हुए सचिन पायलट को बेचारा कहा और बोले कि ‘सचिन पायलट रोते रह गए कि वसुंधरा को भ्रष्टाचार को लेकर गिरफ्तार करो, लेकिन गहलोत कहते हैं कि मैं गिरफ्तार नहीं करूंगा।
केजरीवाल और कांग्रेस की सियासी दुश्मनी
इसके ऊपर आम आदमी पार्टी की तरफ से एक अल्टीमेटम और दे दिया गया है। अगर दिल्ली अध्यादेश को लेकर उन्हें दूसरे विपक्षी दलों का साथ नहीं मिला, तो उस स्थिति में अरविंद केजरीवाल कल पटना वाली बैठक का भी बहिष्कार कर सकते हैं। ऐसे में बैठक शुरू होने से पहले ही बड़ी अड़चन सामने आ गई है। वैसे ये कोई पहली बार नहीं है जब कांग्रेस को लेकर अरविंद केजरीवाल तल्ख रहे हों, उनकी जैसी राजनीति रही है, उन्हें हर बार कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती के तौर पर देखा गया है। गुजरात और पंजाब में तो सियासी दोनों पार्टियां सियासी दुश्मन भी मानी जा सकती हैं।
ममता और कांग्रेस की भी जबरदस्त तल्खी
अब अरविंद केजरीवाल का दिल मिलना मुश्किल है, तो बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के साथ कांग्रेस के रिश्ते कुछ खास अच्छे नहीं लगते हैं। असल में ममता बनर्जी समझौता करने को तो तैयार दिख रही हैं, लेकिन बंगाल में जिस तरह की बयानबाजी हो रही है, जिस तरह से कांग्रेस कार्यकर्ताओं की हत्या हुई है, जिस तरह से टीएमसी की तरफ से भी कांग्रेस पर वार हुआ है, विपक्षी एकता की कवायद के बीच में इसे शुभ संकते नहीं माना जा सकता।
बंगाल के दुश्मन, दिल्ली के दोस्त कैसे बनेंगे?
असल में बंगाल में इस समय पंचायत चुनाव के दौरान जबरदस्त हिंसा देखने को मिल रही है। उस हिंसा में कांग्रेस के कुछ कार्यकर्ता भी मारे गए हैं, ऐसे में पार्टी टीएमसी पर हमलावर है। इसी कड़ी में एक बयान में ममता ने कहा था कि कांग्रेस बंगाल में बीजेपी की बेस्ट फ्रेंड है। कांग्रेस तो दोनों लेफ्ट और बीजेपी की दोस्त है। आप चाहते हो कि सदन में आपका समर्थन करें, हम बीजेपी के खिलाफ ऐसा कर भी देंगे, लेकिन याद रखिए आप यहां बंगाल में अपना घर सीपीआईएम के साथ चलाते हो। ऐसे में बंगाल में हमसे मदद की कोई उम्मीद ना रखी जाए।
अब इस एक बयान साफ समझा जा सकता है कि ममता बनर्जी 2024 के लिए समझौता तो कर सकती हैं, लेकिन कांग्रेस के साथ वे दिल खोलकर नहीं जाने वाली हैं।
अब ममता के आरोप पर कांग्रेस का जवाब डीकोड करना भी जरूरी है। बंगाल में जब ममता ने कांग्रेस को बीजेपी का दोस्त बताया, अधीर रंजन चौधरी ने जोरदार पलटवार किया। उन्होंने बोला कि ममता बीजेपी के साथ खेलती हैं। जब भी विपक्षी एकता की बात होती है, वे हमेश इसे तोड़ने का काम करती हैं। ममता को समझना चाहिए कि वे कांग्रेस की दया की वजह से ही नेता बनी हुई हैं। आखिर कांग्रेस को उनकी मदद क्यों चाहिए होगी।
लेफ्ट से भी कांग्रेस की तनातनी
अब कांग्रेस के लिए चुनौती सिर्फ ममता या केजरीवाल से नहीं है, लेफ्ट जो इस समय केरल में सरकार चला रही है, उसके साथ भी देश की सबसे पुरानी पार्टी के रिश्ते थोड़े नहीं काफी तल्ख हैं। यानी कि जो स्थिति बंगाल में टीएमसी के साथ चल रही है, वैसे ही हालात केरल में भी हैं। बड़ी बात ये है कि कल की विपक्षी एकता वाली बैठक में सीताराम येचुरी दस्तक देने वाले हैं। ऐसे में वे कांग्रेस की बातों से कितना सहमत रहते हैं, उसे कितनी स्पेस देते हैं, ये बड़ा सवाल है।
राहुल फंसे, कांग्रेस का पीएम चेहरा कौन?
वैसे इस पूरी विपक्षी एकता की कवायद में कांग्रेस के सामने भी एक बड़ी चुनौती है। पहले तो राहुल गांधी ही पार्टी की तरफ से पीएम उम्मीदवार माने जा रहे थे, लेकिन अब जब मोदी सरनेम केस ने समीकरण बदल दिए हैं, पार्टी के सामने बड़ा सवाल खड़ा है।। आखिर राहुल के अलावा किसे पीएम फेस प्रोजेक्ट किया जा सकता है, इससे भी बड़ा सवाल विपक्ष के सामने किसे चेहरा बताया जाए। ये सवाल अहम इसलिए क्योंकि अगर इस मुद्दे पर कांग्रेस डिफेंसिव हो गई, तो दूसरी विपक्षी पार्टियों की बार्गेनिंग पावर काफी ज्यादा बढ़ जाएगी।
कांग्रेस के लिए 208 और क्षेत्रीय पार्टियों के लिए 150 सीटें जरूरी
सीटों के लिहाज से बात करें तो लोकसभा की 208 सीटे ऐसी हैं जहां पर मुकाबला सीधे-सीधे कांग्रेस बनाम बीजेपी का चल रहा है। वहां भी पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन काफी लचर रहा था, वो इन 208 सीटों में से सिर्फ 16 पर जीत दर्ज कर पाई थी। वहीं एक आंकड़ा ये भी बताता है कि कांग्रेस के अलावा दूसरे क्षेत्रीय दलों को भी काफी मेहनत करनी पड़ेगी। ऐसा इसलिए क्योंकि लोकसभा 150 सीटें ऐसी हैं जहां पर बीजेपी का मुकाबला कांग्रेस से नहीं किसी क्षेत्रीय पार्टी से होगा। ऐसे में विपक्ष एकजुट तो हो सकता है, लेकिन वोटों के लिहाज से ये कितना मुफीद रहेगा, ये आने वाले समय में साफ होगा।