बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने कांशीराम के साथ मिलकर राजनीति में कदम रखा था। इसके बाद वह उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री बनी थीं। साल 1995 में मुख्यमंत्री बनने के बाद मायावती पर विरोधियों ने कई आरोप लगाए थे, जिसका उन्होंने बेबाकी से जवाब भी दिया था। मायावती पर छोटी-छोटी बात पर अधिकारियों के तबादले करवाने के आरोप भी लगे थे। एक बार मायावती अपने पैतृक गांव बादलपुर जा रही थीं।
बादलपुर जाते हुए उनकी गाड़ियों के काफिले का मार्गदर्शन कर रहे पुलिस गाड़ी का ड्राइवर रास्ता भटक गया था। दूसरे ही दिन जिले के SSP पर इसकी गाज गिरी थी और उसका तबादला तक करवा दिया गया था। पत्रकार रहे राजीव शुक्ला के टीवी शो ‘रूबरू’ में मायावती से इसको लेकर सवाल पूछा गया था। राजीव शुक्ला पूछते हैं, ‘ड्राइवर रास्ता भूल गया तो आपने एसएसपी का ही ट्रांसफर करवा दिया था। ऐसा क्यों?’
मायावती ने अपनी सफाई में कहा था, ‘अलीगढ़ में दलित महिलाओं के साथ रेप की घटना हुई तो मुझे शेड्यूल कास्ट के एसएसपी का रोल ढीला नजर आया। मैंने ये नहीं कहा कि आरोपी अधिकारी के खिलाफ कार्रवाई नहीं की जाए। मैंने खुद मुख्यमंत्री से सिफारिश की कि एसएसपी को सस्पेंड करना चाहिए। जब मैं अपनी बिरादरी के एसएसपी को नहीं छोड़ सकती तो गाजे-बाजे वाले अधिकारी को कैसे छोड़ दूंगी।’
मायावती से डरते थे मुलायम सिंह यादव? इस बीच मायावती ने कहा, ‘अगर ऐसा कहा जाता है कि मुलायम सिंह यादव सिर्फ मुझसे डरते हैं और कांशीराम जी से नहीं डरते हैं तो बिल्कुल गलत है। कांशीराम जी का गुस्सा शायद उन्होंने पहली बार देखा होगा। इसमें कुछ भी कड़े तेवर होने जैसी बात नहीं है।’ बता दें, समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने साल 1993 में मिलकर चुनाव लड़ा था। 422 सीटों वाली यूपी विधानसभा में दोनों ने 420 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे थे।
1993 के विधानसभा चुनाव में गठबंधन को 176 सीटों पर जीत मिली थी। वहीं, बीजेपी ने 177 पर जीत हासिल की थी। बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए दोनों दलों ने अन्य विजयी उम्मीदवारों को भी अपने साथ मिलाया और मुलायम सिंह यादव को मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली थी।
