योगी आदित्यनाथ (Yogi Adityanath) दूसरी बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बनने वाले हैं। लखनऊ के इकाना स्टेडियम में पीएम मोदी और दूसरी हस्तियों की मौजूदगी में वह शपथ लेंगे। साल 2017 में जब पहली बार बीजेपी ने योगी के नाम पर मुहर लगाई थी तब तमाम लोग चौंक गए थे। 5 जून 1972 को उत्तराखंड के गढ़वाल (पंचूर गांव) में जन्मे अजय सिंह बिष्ट के योगी आदित्यनाथ बनने की कहानी बेहद दिलचस्प है।
यूं हुई गुरु से मुलाकात: नौजवान अजय सिंह बिष्ट उन दिनों ऋषिकेश में एमएससी की पढ़ाई कर रहे थे। देशभर में राम जन्मभूमि आंदोलन की लहर थी। युवा अजय का मन पढ़ाई में नहीं लग रहा था। उनका मन बार-बार आंदोलन की तरफ जाता। साल 1993 के शुरुआती सालों में अजय सिंह बिष्ट ऋषिकेश से गोरखपुर आए। यहां वो सीधे गोरखनाथ मंदिर पहुंचे और महंत अवैद्यनाथ से मिले। इससे पहले साल 1990 में युवा अजय की महंत अवैद्यनाथ से संक्षिप्त मुलाकात हो चुकी थी।
गुरु ने कह दिया था- एक दिन यहीं आना है: महंत अवैद्यनाथ ने अजय सिंह बिष्ट की सारी बातें गौर से सुनी और कहा कि ‘आप योगी हैं और एक दिन यहीं आना है’। साल 1993 में ही अजय सिंह बिष्ट दोबारा गोरखनाथ मंदिर गए और महंत अवैद्यनाथ से मिलकर योग सीखने की इच्छा जाहिर की। जब वे लौटने लगे तो महंत अवैद्यनाथ ने उनसे गोरखनाथ मंदिर में रुकने को कहा, लेकिन तबतक वे किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पाए थे।
इसी बीच कुछ महीनों के बाद महंत अवैद्यनाथ गंभीर रूप से बीमार हो गए और उन्हें दिल्ली के एम्स इलाज के लिए लाया गया। खबर सुनते ही अजय सिंह बिष्ट फौरन दिल्ली आ गए। यहां महंत अवैद्यनाथ ने अपनी बीमारी का हवाला देते हुए उनसे दोबारा मठ में आने का आग्रह किया। इस बार महंत अवैद्यनाथ की बात अजय के मन में बैठ गई थी। वे घर लौटे। फिर नवंबर 1993 में अपना घर-परिवार, गांव और पढ़ाई छोड़ गोरखनाथ मंदिर आ गए।
परिवार को लगा नौकरी करने जा रहे: एबीपी न्यूज को दिये एक इंटरव्यू में उनके पिता ने कहा था कि ‘जब वे गोरखपुर जा रहे थे तो परिवार को लगा था कि वहां नौकरी करने जा रहे हैं। अजय ने भी किसी को कुछ नहीं बताया था। चुपचाप सामान समेटा और चले गए। हमें तो बहुत बाद में पता चला था।’ यह बताते हुए उनकी आंखें भर आई थीं।
गोरखनाथ मंदिर में आने के करीब दो महीने बाद 15 फरवरी 1994 को बसंत पंचमी के दिन अजय सिंह बिष्ट ने महंत अवैद्यनाथ से दीक्षा ली और पुराना जीवन त्यागते हुए नए रास्ते पर चल पड़े और उन्हें नाम मिला ‘योगी आदित्यनाथ’। 12 सितंबर 2014 को महंत अवैद्यनाथ के निधन के बाद योगी आदित्यनाथ गोरखनाथ मंदिर के महंत बने।
चर्चित लेखक शांतनु गुप्ता ने योगी आदित्यनाथ की बायोग्राफी ‘द मॉन्क हू बिकम चीफ मिनिस्टर’ में उनके पंचूर से गोरखनाथ मंदिर आने और फिर देश के सबसे बड़े सूबे यूपी के मुख्यमंत्री बनने तक की यात्रा को बेहद दिलचस्प अंदाज में बयां किया है। वे लिखते हैं कि योगी आदित्यनाथ हर दिन सुबह 3 बजे जग जाते हैं। 3-5 बजे तक नित्य क्रिया और योग करते हैं। उसके बाद पूजा-पाठ करते हैं। फिर सवा छह बजे से 8.30 तक पठन-पाठन करते हैं।
अक्सर नहीं करते लंच: शांतनु गुप्ता अपनी किताब में योगी के करीबी रहे प्रदीप राव के हवाले से लिखते हैं कि योगी आदित्यनाथ अक्सर दोपहर का भोजन नहीं करते हैं। नाश्ते या डिनर में भी वो जो खाते हैं, शायद सबको पसंद न आए। उनके साथ भोजन करना एक तरीके से सजा जैसा ही है। योगी आदित्यनाथ नाश्ते में मीठा या नमकीन दलिया, चना और छाछ लेते हैं। कई बार तो फलों से ही काम चला लेते हैं। डिनर में उबली हुई सब्जियां, रोटी-चावल और दाल लेते हैं। सब्जियों या दाल में नाममात्र का नमक, मसाला और तेल आदि होता है।
शांतनु गुप्ता लिखते हैं कि सीएम बनने के बाद जब योगी आदित्यनाथ लखनऊ आए तो लगभग यही रूटीन फॉलो किया। हां, गोरखपुर में उनकी अनुपस्थिति में जनता दरबार अब भी लगता है। योगी की कुर्सी खाली रहती है, लेकिन उनके करीबी सहयोगी 65 वर्षीय द्वारका प्रसाद तिवारी ठीक उसी तरह जनता दरबार लगाते हैं, लोगों की समस्याएं सुनते हैं और नोट करते हैं।