अहिंसा, स्वराज, चरखा और सत्याग्रह की बात करने वाले महात्मा गांधी ने आर्थिक समानता और समाज विकास की जो तस्वीर अपनी आत्मकथा सत्य के प्रयोग में लिखी है, वह आज के दौर में ज्यादा प्रासंगिक और उपयोगी है। गांंधी जी की 150वीं जयंती पर उनकी आर्थिक सोच को समझने के लिए उनके तरीकों को भी जानना ज्यादा जरूरी है। वह एक ऐसी व्यवस्था की वकालत करते थे, जो हमारे देश की आबादी और यहां की संस्कृति में फिट बैठती हो।

स्वदेशी और ग्राम स्वराज का विचार : गांधी जी लघु उद्योग, कुटीर उद्योग से हटकर ग्राम स्वराज का विचार लाए। उनका मानना था कि हर व्यक्ति स्वयं में एक उद्योग बने। वह स्वावलंबन की बात करते थे। बड़े उद्योग की बजाए हर व्यक्ति को अपना काम करते हुए कुछ न कुछ उत्पादन करने की बात करते थे। उनका मानना था कि इससे कोई भी बेरोजगार नहीं रहेगा। सबकी जरूरतें पूरी होंगी और सब लोग काम करेंगे। वह मानते थे कि सबमें कुछ न कुछ कौशल है और उसको अपने इस कौशल का उपयोग करना चाहिए।

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पश्चिम की व्यवस्था को शोषण की व्यवस्था कहा : गांधी जी ने रंगभेद, उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद और हिंसा के खिलाफ जिस आंदोलन का नेतृत्व किया, उससे उन्हें यह समझ आई कि जब तक आर्थिक असमानता दूर नहीं होगी तब तक यह दौर खत्म नहीं होगा। दुनिया के कुछ देश बाकी देशों की अर्थव्यवस्था को प्रभावित कर रहे हैं। इससे वैश्विक स्तर पर जो भेदभाव और टकराव पनप रहा है, उसको गांधी जी ने बहुत पहले ही समझ लिया था। वह कहते थे कि यूरोप और पश्चिमी देशों के आर्थिक मॉडल को यहां नहीं अपनाए जाने चाहिए। वहां की आबादी कम है और यहां की ज्यादा, ऐसे में उनके तरीके हमारे लिए अनुपयोगी और असमानता बढ़ाने वाले हैं।

अहिंसापूर्ण स्वराज की असल चाबी : नवजीवन प्रकाशन अहमदाबाद से प्रकाशित सर्वोदय का सिद्धांत नामक पुस्तक में 24 अगस्त 1940 को रचनात्मक कार्यक्रम नाम से छपे गांधी की आर्थिक समानता विषय पर विचार का उल्लेख किया गया है। इसमें गांधी जी कहते हैं कि आर्थिक समानता अहिंसापूर्ण स्वराज की असल चाबी है। आर्थिक समानता के लिए काम करने का मतलब है कि पूंजी और मजदूरी के बीच के झगड़ों को हमेशा के लिए मिटा देना। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक अहिंसा की बुनियाद पर चलने वाली राज्य व्यवस्था कायम नहीं होगी।

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पर्यावरण संरक्षण और महिलाओं की भागीदारी : गांधी जी कहते थे कि पश्चिम की व्यवस्था शैतानी व्यवस्था है। वे प्रकृति का दोहन कर प्रकृति को नष्ट कर रहे हैं। खदान से खनिज निकालना और जमीन से तेल निकालना यह उनका व्यक्तिगत साधन नहीं है। यह प्रकृति का शोषण पर आधारित व्यवस्था है। वह महिलाओं की भागीदारी पर भी जोर देते थे। वे कहा करते थे कि महिलाएं संवेदनशील होती हैं। हिंद स्वराज में वह कहते हैं कि महिलाएं जरूरतों को ज्यादा अच्छी तरह समझती हैं। इसलिए सभी तरह के कामों में महिलाओं को बराबर का हिस्सेदार बनाया जाना चाहिए।

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चरखा और सृजनशीलता की वकालत : गांधीवादी चिंतक, विचारक और समाजकर्मी रामधीरज कहते हैं कि गांधीजी सृजनशीलता पर आधारित अर्थव्यवस्था की वकालत करते थे। वे कहते थे कि हर आदमी कुछ न कुछ करेगा तो वह अपने समय का सही उपयोग और जरूरतों को स्वयं पूरा करने में सक्षम होगा। उनका मानना था कि हर आदमी यदि एक-दो घंटे चरखा चलाएगा तो वह अपनी जरूरतों के लिए आवश्यक पूंजी कमा सकेगा। साथ ही उसकी कपड़े की मौलिक आवश्यकता भी पूरी होगी।

अंत्योदय पर केंद्रित व्यवस्था : गांधीजी कहा करते थे कि जबभी कोई दुविधा हो तब समाज के अंतिम व्यक्ति के बारे में सोचें। जबतक अंतिम व्यक्ति की बेहतरी की बात नहीं सोचेंगे तब तक किसी भी तरह की समानता दूर की बात होगी। गांधी जी का मानना था कि सभी के लिए निश्चित उत्पादन और निश्चित उपभोग की शक्ति मिलनी चाहिए। इसीलिए वह कहते थे कि गांव में जो लोग रहते हैं उन्हें काम मिले यानि गांव का श्रम लगे, उसमें गांव वालों का अपना साधन का उपयोग हो तो गांव का विकास होगा।