ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आने का फैसला किया तो सब हैरान हो गए। ज्योतिरादित्य राहुल गांधी के सबसे करीबी लोगों में शामिल थे, लेकिन पिछले साल उनके अचानक लिए इस फैसले के बाद तमाम चर्चाएं शुरू हो गई थीं। सिंधिया परिवार में ज्योतिरादित्य पहले ऐसे शख्स नहीं हैं जिन्होंने पार्टी बदली हो। ज्योतिरादित्य सिंधिया की दादी जनसंघ (बाद में बीजेपी) की दिग्गज नेता रहीं और वह बीजेपी की संस्थापक सदस्य भी रही थीं।

ज्योतिरादित्य सिंधिया के पिता माधव राव सिंधिया ने मां के नक्शे-कदम से अलग कांग्रेस के साथ राजनीतिक जीवन आगे बढ़ाया। माधव राव सिंधिया की गिनती कांग्रेस के दिग्गज नेताओं में होती थी। इसके अलावा कांग्रेस आलाकमान में भी माधव राव की अच्छी पकड़ थी, लेकिन एक बार वह मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के लिए एक फोन का इंतज़ार करते रह गए थे, लेकिन एक ऐसा नेता सीएम बन गया था जो विधायक तक भी नहीं था।

हेलीकॉप्टर में बैठकर कर रहे थे इंतज़ार: ‘आजतक’ की रिपोर्ट के मुताबिक, 1993 नवंबर में मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव हुए और कांग्रेस के अच्छा-खासा बहुमत मिला, लेकिन मुख्यमंत्री पद की कुर्सी के लिए बहुत सारे लोगों के नाम सामने आने लगे। ऐसा ही एक नाम था ज्योतिरादित्य के पिता और दिग्गज नेता माधव राव सिंधिया का। ऐसे में माधव राव सिंधिया को पूरी उम्मीद थी कि कांग्रेस आलाकमान उन्हें सीएम बनाएगा। इसके लिए वह दिल्ली में हेलीकॉप्टर में बैठकर फोन का इंतज़ार करने लगे थे।

कमलनाथ बने सीएम: लंबे समय तक इंतज़ार करने के बाद भी कोई फोन नहीं बजा और सूबे की कमान दिग्विजय सिंह को सौंप दी गई। सबसे खास बात है कि इस दौरान दिग्विजय सिंह विधायक भी नहीं थे। वह सांसद और पार्टी प्रदेश अध्यक्ष के पद पर जरूर थे, लेकिन सभी नेताओं को दरकिनार कर उन्हें सीएम पद सौंप दिया गया था। हालांकि रिपोर्ट में कहा गया है कि दिग्विजय के लिए सीएम तक की कुर्सी के लिए रास्ता कमलनाथ ने दिल्ली में साफ किया था। हालांकि साल 2018 के मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में एक बार फिर कांग्रेस को बहुमत हासिल हुआ और कमलनाथ को सीएम बनाया गया। ज्योतिरादित्य ने इसके बाद पार्टी से खुद को अलग कर लिया।