ज्यातिरादित्य सिंधिया के पिता माधव राव सिंधिया कांग्रेस के बड़े नेता थे। उनकी गिनती गांधी परिवार के करीबी नेताओं में होती थी। लेकिन माधव राव सिंधिया ने अपनी राजनीतिक करियर की शुरुआत जनसंघ के टिकट पर चुनाव लड़कर की थी। उनके जनसंघ में शामिल होने की मुख्य वजह राजमाता विजयाराजे सिंधिया थीं। विजयाराजे सिंधिया उन दिनों जनसंघ की कद्दावर नेता हुआ करती थीं। ग्वालियर में उनका एक तरफा वर्चस्व था। इसलिए वह चाहती थीं कि उनका बेटा भी जनसंघ में शामिल हो।

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साल 1975 में देश में इमरजेंसी लगी तो माधव राव सिंधिया उस समय मुंबई में गोल्फ खेल रहे थे। उन्हें अपनी गिरफ्तारी का अंदाजा पहले ही लग गया था, इसलिए वह अंडरग्राउंड हो गए थे। कुछ समय बाद वह नेपाल चले गए थे जबकि उनकी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया को ग्वालियर से गिरफ्तार कर दिल्ली की तिहाड़ जेल में डाल दिया गया था। इमरजेंसी के बाद साल 1977 में चुनाव हुए और कांग्रेस की जबरदस्त हार हुई।

विजयाराजे को था पहले ही अंदेशा: इन चुनावों में माधव राव सिंधिया ग्वालियर से निर्दलीय मैदान में उतरे थे और वह कांग्रेस के समर्थन से जीतने में कामयाब हुए थे। माधव राव के स्कूल के साथी बालेंदु शुक्ला ने ‘इंडिया टीवी’ से बात करते हुए बताया था, कांग्रेस ने उनके खिलाफ कोई प्रत्याशी खड़ा ही नहीं किया था। संजय गांधी चाहते थे कि वह कांग्रेस में शामिल हो जाएं। दूसरी तरफ उन्हें इंदिरा गांधी की तरफ से सिंधिया परिवार की संपत्ति जब्त तक करने की भी धमकी मिल चुकी थी। क्योंकि प्रिवी पर्स देश में खत्म हो चुका था। माधव राव की मां विजयाराजे को इसका अंदेशा पहले ही लग गया था।

इंदिरा गांधी को चुनौती: कांग्रेस आलाकमान ने साल 1978 में एक बार फिर माधव राव सिंधिया को अपना संदेश भिजवाया। विजयदशमी के जुलूस में रघुनाथ राव पापड़िकर ने उनसे कहा कि आप कांग्रेस में आकर तो देखिए। माधव राव के लिए इस पर फैसला लेना भी आसान नहीं था। क्योंकि उनकी मां राजमाता विजयाराजे सिंधिया अपने भाषणों में गांधी परिवार पर जमकर निशाना साध रही थीं। साल 1980 में तो उनकी मां विजयाराजे सिंधिया ने इंदिरा गांधी को ही चुनाव में चुनौती दे दी थी। इससे निराश होकर माधव राव ने कांग्रेस जॉइन कर ली थी। लेकिन राजमाता को हार का सामना कर पड़ा।