देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की 31 अक्टूबर 1984 को उनके सुरक्षाकर्मियों ने हत्या कर दी थी। इंदिरा को पहले ही चेताया गया था, लेकिन उन्होंने इस तरफ खास ध्यान नहीं दिया था। अंत में वही हुआ जिसका डर था। उस सुबह इंदिरा गांधी 1, सफदरजंग रोड स्थित अपने निवास से एक इंटरव्यू खत्म कर अकबर रोड स्थित कार्यालय की तरफ जा रही थीं। इंदिरा गांधी चंद कदम चली होंगी कि उनके दो सुरक्षाकर्मियों, बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने उनके शरीर में 36 गोलियां उतार दीं। पास मौजूद ITBP के जवान जब तक कुछ समझते तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

सोनिया गांधी शोर सुनकर बाहर भागीं। आसपास कोई एंबुलेंस नहीं थी। ऐसे में इंदिरा को एंबेसेडर कार से ही एम्स ले जाने का फैसला किया गया। इंदिरा का सिर सोनिया की गोद में था और कार दिल्ली के एम्स अस्पताल की तरफ बढ़ रही थी। वहां पहुंचने के बाद डॉक्टरों ने इंदिरा की जांच की। तब तक देर हो चुकी थी। डॉक्टरों ने मृत्यु की औपचारिक घोषणा की। इसी बीच कांग्रेस के दिग्गज नेता अरुण नेहरू एम्स पहुंचे। तब तक तमाम और नेता भी एम्स पहुंच चुके थे।

वरिष्ठ पत्रकार और लेखक रशीद किदवई अपनी किताब ‘भारत के प्रधानमंत्री: देश, दशा, दिशा’ में लिखते हैं, इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सोनिया गांधी काफी डर गई थीं। इंदिरा अक्सर उनके सामने आशंका जताया करती थीं कि बांग्लादेश के नेता शेख मुजीबुर्रहमान की तरह उनके भी परिवार को खत्म किया जा सकता है। इस दौरान सोनिया के पति राजीव गांधी भी उनके साथ नहीं थे। वो दिल्ली से बाहर पश्चिम बंगाल में कांग्रेस के लिए प्रचार कर रहे थे।

घर पर अकेले थे राहुल-प्रियंका: सोनिया की चिंता को देखते हुए अरुण नेहरू तुरंत एम्स से सफदरजंग रोड पहुंचे। वहां का नजारा देखकर आश्चर्यचकित रह गए। राहुल और प्रियंका अकेले थे। उनकी हिफाजत के लिए कोई सुरक्षाकर्मी मौजूद नहीं था। दरअसल, राहुल-प्रियंका स्कूल गए थे और छुट्टी के बाद उन्हें स्कूल से लाकर घर छोड़ दिया गया था। उन दोनों को नहीं पता था कि आखिर हुआ क्या है।

बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए अरुण नेहरू उन दोनों को गुलमोहर पार्क स्थित तेजी बच्चन (एक्टर अमिताभ बच्चन की मां) के घर ले गए।

पुलिस वायरलेस पर आई थी खबर: पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अपनी किताब ‘The Turbulent Years: 1980 – 1996’ में लिखते हैं, कांग्रेस का खोया हुआ जनाधार वापस पाने के लिए राजीव अक्टूबर के अंत में पश्चिम बंगाल पहुंचे थे। मैंने कांग्रेस के अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ उनका जोरदार स्वागत किया था। हमारे लिए 31 अक्टूबर 1984 का दिन भी बिल्कुल सामान्य था। रामनगर में जनसभा को संबोधित करने के बाद राजीव कंठई पहुंचे थे। यहां उन्होंने अपना संबोधन शुरू ही किया था कि मुझे पुलिस वायरलेस पर करीब साढ़े 9 बजे मैसेज मिला- इंदिरा गांधी पर हमला हुआ, तुरंत दिल्ली लौटें।

बकौल प्रणब मुखर्जी, मैंने राजीव गांधी को इस बारे में बताया और उन्होंने अपना भाषण बीच में खत्म कर दिया। हमने आगे की सभी जनसभाओं को रद्द कर दिया और तुरंत दिल्ली के लिए रवाना हो गए। यहां हम कांग्रेस के नेता घनी खान चौधरी की मर्सिडीज कार से एयरपोर्ट की तरफ बढ़े। दिल्ली पहुंचने के बाद सभी नेताओं ने राजीव गांधी के नाम पर मुहर लगा दी और उन्हें प्रधानमंत्री पद की शपथ दिला दी गई।