जीवन में कई बार ऐसा समय आता है जब इंसान टूट कर बिखर जाता है। उसके बाद वह जीवन भर कभी ठीक नहीं हो पाता और उसका भविष्य बर्बाद हो जाता है। लेकिन मुश्किल हालात में भी मुश्किलों से जंग जीतने वाला ही समाज के लिए मिसाल बन जाता है। ऐसी ही एक संघर्ष की कहानी है यूपी कैडर 2008 बैच की आईएएस किंजल सिंह की, जो कि वर्तमान में पंचायती राज विभाग के निदेशक हैं। किंजल सिंह का जीवन काफी संघर्षपूर्ण रहा है, आइए जानते हैं-
पिता की कर दी गई थी हत्या, मां का भी कैंसर से निधन
आईएएस किंजल सिंह का जन्म 5 जनवरी 1982 को यूपी के बलिया में हुआ था। किंजल केवल 6 महीने की थीं जब 1982 में किंजल सिंह के पिता डीएसपी केपी सिंह की हत्या कर दी गई थी। गुड़ियों से खेलने की उम्र में वह बलिया से दिल्ली तक का सफर पूरा कर अपनी मां के साथ सुप्रीम कोर्ट आती थीं और सारा दिन कोर्ट में बैठने के बाद रात में फिर उसी यात्रा पर निकल जाती थीं। वहीं कैंसर से लड़ने के बाद मां विभा सिंह का भी साल 2004 में निधन हो गया। बता दें कि किंजल के पिता की मृत्यु के समय किंजल की मां विभा सिंह गर्भवती थीं। 6 महीने बाद उन्होंने एक और बेटी को जन्म दिया जिसका नाम प्रांजल रखा गया।
पिता बनना चाहते थे आईएएस, बेटियों ने पूरा किया सपना
किंजल के पिता डीएसपी केपी सिंह भी आईएएस बनना चाहते थे, हत्या के कुछ दिन बाद यूपीएससी का रिजल्ट आया था जिसमें उन्होंने आईएएस मुख्य परीक्षा पास कर ली थी। मीडिया को दिए गए इंटरव्यू में किंजल बताती हैं, ‘जब मां कहती थी कि मैं अपनी दो बेटियों को आईएएस अफसर बनाऊंगी तो लोग उन पर हंसते थे। चूंकि मां की तनख्वाह का एक बड़ा हिस्सा उस मुकदमे की फीस व अन्य खर्च में चला जाता था।’
2004 में ग्रेजुएशन में किया टॉप
धीरे-धीरे दोनों बहनें किंजल और प्रांजल बड़ी हुईं। अपनी प्रारंभिक पढ़ाई पूरी करने के बाद किंजल ने दिल्ली के श्री राम कॉलेज में प्रवेश लिया। जिस वर्ष किंजल की मां की मृत्यु हुई, उसी साल किंजल ने दिल्ली विश्वविद्यालय में टॉप किया था। इस बीच किंजल ने अपनी छोटी बहन को भी दिल्ली बुलाया। दोनों बहनों ने आईएएस की तैयारी शुरू कर दी। किंजल कहती हैं, ‘हम दोनों दुनिया में अकेले रह गए थे। हम नहीं चाहते थे कि किसी को पता चले कि हम दुनिया में अकेले हैं।’
2008 में बनीं आईएएस
दूसरे प्रयास में साल 2008 में किंजल का चयन आईएएस के लिए हो गया। उसी साल छोटी बहन प्रांजल का भी आईआरएस में चयन हो गया। आज किंजल सिंह जिस मुकाम पर हैं उसके पीछे वो अपने मौसा-मौसी और प्रांजल का धन्यवाद देना नहीं भूलती।