हार्ट से संबंधित बीमारियों के लिए आमतौर पर हमारा लाइफस्टाइल जिम्मेदार होता है लेकिन कुछ ऐसी भी बीमारियां हैं जिसके लिए लाइफस्टाइल नहीं बल्कि हमारा परिवार जिम्मेदार होता है। बेशक सुनने में यह थोड़ा अजीब लगे लेकिन माता-पिता के जीन के कारण बच्चे में भी कुछ बीमारियां हो जाती है, इन्हीं में से एक है हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया।

हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया पारिवारिक बीमारी है जो माता-पिता से आए जीन में बदलाव के कारण होती है। यह एक गंभीर समस्या है जिसमें हार्ट अटैक का खतरा रहता है। जन्म के साथ ही यह बीमारी लग जाती है लेकिन शुरुआत में इसका पता नहीं चलता है। हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया का समय पर इलाज नहीं किया जाए तो हार्ट अटैक का खतरा हो सकता है। आइए जानते हैं कि हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया की बीमारी के लक्षण कौन-कौन से हैं और उसका उपचार कैसे करें।

हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया के लक्षण

  • सांस का तेजी से फूलना
  • सिर में दर्द रहना
  • मोटापा बढ़ना
  • सीने में दर्द की शिकायत होन
  • बेचैनी रहना और मितली आना
  • हर वक्त थकान होना
  • हाई बीपी होना शामिल है।

हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया से बॉडी में होने वाली परेशानियां:

हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया से पीड़ित मरीज में एलडीएल यानी बैड कोलेस्ट्रोल बहुत ज्यादा हो जाता है जो धमनियों में जमा होने लगता है। कोलेस्ट्रॉल के धमनियों में जमा होने से धमनियां पतली और हार्ड होने लगती हैं। ज्यादा कोलेस्ट्रोल जमा होने के कारण कभी-कभी यह स्किन और आंखों के सामने जमा होने लगता है।

आंखों के अलावा हाथ, कोहनी और घुटने के आसपास की नसें फूल जाती हैं जिसमें कोलेस्ट्रोल जमा होने लगता है। हाथों में ऐंठन होने लगती है। ज्यादा कोलेस्ट्रोल के कारण आंखों में कॉर्निया की बीमारी हो जाती है। आंखों में पुतली के चारों ओर एक सफेद या भूरे रंग का छल्ला बन जाता है जो आमतौर पर वृद्ध लोगों में दिखाई देता है। लेकिन पारिवारिक हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया के मरीजों में यह युवावस्था से ही दिखाई देने लगता है।

इसका इलाज क्या है:

पारिवारिक हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया का शुरुआत से इलाज कराना चाहिए। इसके लिए लाइफस्टाइल में सुधार बहुत जरूरी है। ज्यादा फैट वाली चीजें और प्रोसेस्ड फूड नहीं खाना चाहिए। बचपन में अगर लक्षण दिखे तो डॉक्टर के पास जाना चाहिए। 20 साल से पहले हर हाल में डॉक्टर को दिखाना चाहिए। कोलेस्ट्रोल जांच के बाद यह पता चलेगा कि उसमें हाइपरकोलेस्ट्रोलेमिया है या नहीं। इस बीमारी में डॉक्टर शुरुआत से ही नियमित दवा की सलाह देते हैं।