Gandhi Jayanti 2019: एक तरफ देश राष्ट्रपिता मोहनदास करमचंद गांधी (Father of Nation Mohandas Karamchand Gandhi) की 150वीं जयंती मना रहा है तो दूसरी तरफ उनके निधन के सात दशक बाद भी देश की कुछ समस्याएं जस की तस हैं। कश्मीर के हालात (Kashmir Situation) अब भी काफी कुछ वैसे ही हैं। मौजूदा मोदी सरकार ने बीते दिनों जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के तहत राज्य को दो अलग-अलग केंद्रशासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित करने का फैसला लिया है, इसी के साथ अनुच्छेद 370 के अधिकांश प्रावधानों को रद्द कर दिया है। इसके बावजूद अभी कश्मीर में स्थिति सामान्य होने में वक्त लगेगा। ऐसे वक्त में 72 साल पहले कही गई गांधी की बातें आज भी प्रासंगिक लगती हैं। गांधी अपने जीवन में सिर्फ एक बार कश्मीर यात्रा पर गए थे। देश की आजादी से महज 14 दिनों पहले रावलपिंडी के रास्ते गांधी कश्मीर पहुंचे थे, यही उनकी पहली और आखिरी कश्मीर यात्रा थी।
‘कश्मीर का अर्थ वहां की राजा या जमीन नहीं’: रियासतों के एकीकरण के उस दौर में कश्मीर के राजा हरि सिंह (Kashmir King Hari Singh) ने अपनी रियासत को भारत-पाकिस्तान दोनों से अलग रखने का फैसला लिया था। तब लॉर्ड माउंटबेटन के प्रस्ताव पर गांधी कश्मीर गए थे। गांधी चाहते तो कश्मीर के राजा या अंग्रेज सरकार से बात करके कश्मीर को कागजी तौर पर भारत में विलीन करवा सकते थे, लेकिन वो कहते थे कि कश्मीर का अर्थ वहां की जमीन या राजा नहीं, बल्कि वहां की जनता है।
‘कश्मीर का फैसला वहां की जनता करेगी’: जिस शख्स ने अहिंसा के दम पर फिरंगियों को हिलाकर रख दिया था उसने जनता की भावनाओं का सम्मान किया और उनकी इच्छा को ही सबसे ऊपर रखने पर जोर दिया। 29 जुलाई 1947 को अपने कश्मीर जाने का ऐलान करते हुए गांधी ने कहा था, ‘मैं यह समझाने नहीं जा रहा हूं कि कश्मीरियों को भारत में रहना चाहिए। अपने कश्मीर का फैसला तो वहां की जनता ही करेगी।’
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…जब गांधी कश्मीर पहुंचेः 1 अगस्त 1947 को जब गांधी कश्मीर पहुंचे तो वहां लोगों की अभूतपूर्व भीड़ उमड़ पड़ी। सड़कों पर इतनी भीड़ थी की गांधी को नाव में बिठाकर नदी के रास्ते श्रीनगर ले जाना पड़ा। कश्मीर पहुंचने पर वहां के राजपरिवार ने उनका भव्य स्वागत किया। महाराजा हरि सिंह समेत राजपरिवार के सदस्यों ने अपने महल से बाहर आकर उनका स्वागत किया था। वहीं बेगम अकबरजहां अब्दुल्ला ने भी उनका स्वागत किया। यहां स्वागत सभा को संबोधित करते हुए गांधी ने कश्मीर के फैसले में जनता की भूमिका पर अपनी बात दोहराई। उन्होंने सभा में कहा था, ‘कश्मीर का फैसला यहां की प्रजा को करना है। रियासत की असली राजा तो वही है। उसकी राय जानने के लिए सहज, भयमुक्त वातावरण बनाना होगा। अगर पाकिस्तानी यहां घुसते हैं तो पाकिस्तान की हुकूमत को उन्हें रोकना चाहिए, ऐसा नहीं किया तो उस पर इल्जाम तो लगेगा ही।’
National Hindi News, 01 October 2019 LIVE Updates: देश-दुनिया की हर खबर पढ़ने के लिए यहां करें क्लिक
भारत-पाकिस्तान दोनों को दी थी यह चेतावनीः आजादी के चंद महीनों बाद कश्मीर पर पाकिस्तानी कबाइलियों ने हमला कर दिया था। इसकी जानकारी गांधी को मिली तो वे बेहद दुखी हुए। उन्होंने भारत और पाकिस्तान दोनों को चेतावनी देते हुए कहा था, ‘कश्मीर की जनता यदि पाकिस्तान में जाना चाहती है तो दुनिया की कोई ताकत उसे पाकिस्तान जाने से रोक नहीं सकती, लेकिन उसे पूरी आजादी और आराम के साथ अपनी राय रखने दी जाए। उनके गांवों को जलाकर आप उसे मजबूर नहीं कर सकते। भले ही वहां मुस्लिम बहुलता में है लेकिन यदि वे हिंदुस्तान में रहना ताहते हैं तो उन्हें रोक नहीं सकते। भारत-पाकिस्तान के लोग कश्मीरियों को मजबूरत करते हैं तो उन्हें रोका जाना जाहिए।’