यदि भारत को गैर संचारित बीमारियों  (non communicable diseases) के संकट से लोगों के जीवन की रक्षा करनी है, तो स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले सभी तरह के खाद्य उत्पादों पर पैकेट के ऊपर की ओर (फ्रंट-ऑफ-पैक) चेतावनी लेबल की व्यवस्था तुरंत शुरू करने की आवश्यकता है। बाल रोग विशेषज्ञों और सार्वजनिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों सहित शीर्ष डॉक्टरों ने इस दिशा में तत्काल कार्रवाई की जरूरत बताई है। हाल के शोध का हवाला देते हुए कि विशेषज्ञों ने कहा है कि अति प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड या यूपीएफ) और पेय पदार्थों के अत्यधिक सेवन से वजन बढ़ने और मोटापे का खतरा रहता है, जो कैंसर, हृदय रोग, नॉन अल्कोहलिक फैटी लीवर और विभिन्न अन्य घातक बीमारियों का प्रमुख कारण है।

ब्रेस्टफीडिंग प्रमोशन नेटवर्क ऑफ इंडिया (बीपीएनआई), न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट (एनएपीआई) और कई अन्‍य सार्वजनिक स्वास्थ्य संगठनों ने भारत सरकार से ज्यादा चीनी, नमक और वसा (saturated fat) वाले खाद्य उत्पादों पर चेतावनी लेबल की अनिवार्यता पर तत्काल विचार करने की अपील की है। शुक्रवार को आयोजित एक वेबिनार में विशेषज्ञों ने इसकी जरूरत पर बल दिया। 

डॉ. सुनीला गर्ग, अध्यक्ष, इंडियन एसोसिएशन ऑफ प्रिवेंटिव एंड सोशल मेडिसिन (आईएपीएसएम) ने कहा, “स्वास्थ्य का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और युवाओं का स्वास्थ्य राष्ट्र की संपत्ति है। इसलिए भारतीय संदर्भ में यह जरूरी है कि राज्य और केंद्र की सरकारें मोटापे और गैर संचारित बीमारियों (एनसीडी) के बढ़ते बोझ से निपटने के लिए ज्यादा चीनी, नमक या संतृप्त वसा वाले हानिकारक खाद्य उत्पादों और पेय पदार्थों पर फ्रंट-ऑफ-पैकेज चेतावनी वाले लेबलिंग जैसे नियामकीय उपायों को अपनाएं।”
पीडियाट्रिक एंड एडोलसेंट न्यूट्रिशन सोसायटी (PAN -IAP Nutrition Chapter) और एपिडेमियोलॉजी फाउंडेशन ऑफ इंडिया (EFI) के विशेषज्ञों ने कहा कि फूड इंडस्ट्री अपने फायदे के लिए चेतावनी लेबल संबंधी दिशा-निर्देशों में देरी करवाना चाहती है। साथ ही इसकी कोशिश है कि नियम सख्त नहीं हों। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि डिब्बा-बंद खाद्य पदार्थ 5 वर्ष से कम उम्र के बच्चों और किशोरों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा हैं। हानिकारक खाद्य उत्पादों की वजह से उनमें गैर संचारी रोगों के होने की संभावना सबसे ज्यादा रहती है।

साओ पाउलो विश्वविद्यालय, ब्राजील के सेंटर फॉर न्यूट्रिशन की पब्लिक हेल्थ फैकल्टी और विशेषज्ञ नेहा खंडपुर ने दुनिया भर में जुटाए जा रहे साक्ष्यों को पेश करते हुए कहा, “उपभोक्ता की समझ में सुधार करने, उनके खरीदने के निर्णयों को प्रभावित करने में ऐसे खाद्य पदार्थों पर चेतावनी लेबल का होना सबसे प्रभावी पाया गया है। इनकी वजह से उपभोक्ताओं को स्वस्थकर खाद्य उत्पाद चुनने में आसानी होती है। साथ ही, इनसे उत्पादों में सुधार की संभावना भी ज्यादा रहती है। पोषक तत्व आधारित लेबल के रूप में चेतावनी लेबल सबसे मजबूत लेबल हैं, जिन्हें भारत में लागू करने पर तत्काल विचार करना चाहिए”।

यूरोमॉनिटर के अनुमानों के अनुसार, वर्ष 2005 में अति प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों (यूपीएफ) की प्रति व्यक्ति बिक्री 2 किलोग्राम थी जो वर्ष 2019 में बढ़कर 6 किलोग्राम हो गई है। वर्ष 2024 तक इसके प्रति व्यक्ति 8 किलोग्राम तक बढ़ने की उम्मीद है। इसी तरह, पेय पदार्थों की बिक्री वर्ष 2005 में प्रति व्यक्ति 2 लीटर से कम थी जो वर्ष 2019 में लगभग 8 लीटर हो गया। वर्ष 2024 में इसके 10 लीटर तक हो जाने की उम्मीद है।

न्यूट्रिशन एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट (एनएपीआई) के संयोजक डॉ. अरुण गुप्ता ने कहा, “खाद्य और पेय, दोनों श्रेणी में भारत में अल्ट्रा प्रोसेस्ड फूड (यूपीएफ) प्रॉडक्ट्स की बिक्री में जबरदस्त वृद्धि हुई है। अगर हम अभी इस पर रोक नहीं लगाते हैं, तो आने वाले दशक में भारत भी ब्रिटेन और अमेरिका जैसे मोटापे से ग्रसित देशों में शामिल हो जाएगा। जब तक हमारे खाद्य और पेय पदार्थ नियामक इसे अनिवार्य नहीं बनाएंगे, तब तक खाद्य उद्योग इसका पालन नहीं करेंगे क्योंकि उनका स्वार्थ सिर्फ मुनाफा कमाने को लेकर है।” 

उपभोक्ताओं के अधिकारों के ल‍िए काम करने वालीं वकील सुश्री पुष्पा गिरिमाजी ने कहा, “उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 ने उपभोक्ताओं को असुरक्षित और अस्वस्थकर खाद्य पदार्थों से उचित चेतावनी लेबल के जरिये स्पष्ट तौर पर सुरक्षित रहने का अधिकार दिया है। ऐसे लेबल जिसे सभी आसानी से समझ सकें, वो भी जो पढ़ नहीं सकते या समझ नहीं सकते। इससे भी महत्वपूर्ण बात यह है कि सेंटर फॉर पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन बनाम भारत सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट तौर सुरक्षित भोजन के अधिकार की व्याख्या की है। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के अधिकार के हिस्से के रूप में सुरक्षित भोजन की गारंटी की व्याख्या की थी, जिसे अनुच्छेद 47 के साथ पढ़ा गया था। इसमें कहा गया था कि पोषण के स्तर को बढ़ाना और सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार करना राज्यों का कर्त्तव्य है।”

उन्होंने कहा, “इन अधिकारों को पूरी तरह से लागू करने और नागरिकों/उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा करने के लिए राज्य, खासकर FSSAI को ज्यादा सोडियम, चीनी और संतृप्त वसा वाले खाद्य पदार्थों पर लेबल कलर कोडिंग या ऐसे अन्य आसानी से समझे जाने वाले चेतावनी लेबल को पेश करना चाहिए।” साथ ही, उन्होंने ऐसे खाद्य पदार्थों के सेवन के परिणामों के बारे में उपभोक्ताओं को शिक्षित करने और इस तरह के उत्पादों का सेलिब्रिटी द्वारा समर्थन पर प्रतिबंध लगाने की भी उन्होंने वकालत की।