Suvendu Adhikari: भाजपा नेता और पश्चिम बंगाल में विपक्ष के नेता शुभेंदु अधिकारी को बड़ी राहत मिली है। कलकत्ता हाई कोर्ट 24 अक्टूबर को अधिकारी के खिलाफ 15 मामलों में FIR रद्द कर दी हैं। शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ यह FIR साल 2021 से 2022 के बीच दर्ज की गई थीं।
बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस जय सेनगुप्ता ने मामले में पहले पारित अंतरिम आदेशों को भी रद्द कर दिया, जिसमें राज्य को कोर्ट की अनुमति के बिना अधिकारी के खिलाफ कोई और एफआईआर दर्ज करने से रोक दिया गया था। प्रभावी रूप से कोर्ट ने अब अधिकारी को उनके विरुद्ध दायर अनेक आपराधिक मामलों के संबंध में राहत प्रदान कर दी है, तथा ऐसे मामलों को रद्द करने के लिए उनके द्वारा दायर दो याचिकाओं को अनुमति दे दी है।
हालांकि, जस्टिस राजशेखर मंथा द्वारा दिसंबर 2022 में पारित एक अंतरिम आदेश , जिसने पहले राज्य को शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ कोई और एफआईआर दर्ज करने से प्रतिबंधित कर दिया था, उसको हटा दिया गया है, क्योंकि भाजपा नेता अधिकारी की दो याचिकाओं पर अंतिम फैसला सुनाया गया है।
जस्टिस सेनगुप्ता ने अधिकारी के इस आरोप पर भी संक्षिप्त टिप्पणी की कि उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले 2020 में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस पार्टी (टीएमसी) छोड़कर भाजपा में शामिल होने के बाद बदला लेने की एक चाल का हिस्सा थे।
कोर्ट ने कहा कि यह किसी के लिए भी अनुमान लगाना मुश्किल है कि क्या टीएमसी ने जानबूझकर पहले के अपराधों को नजरअंदाज किया था, जबकि अधिकारी अभी भी इसके सदस्य थे, या अधिकारी को भाजपा के प्रति अपनी राजनीतिक निष्ठा बदलने के लिए झूठा फंसाया गया है।
हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, “यदि इतने सारे मामले … वर्तमान याचिकाकर्ता (भाजपा नेता अधिकारी) के खिलाफ राजनीतिक निष्ठा बदलने के बाद शुरू किए जा सकते हैं … तो यह सोचने में कोई हर्ज नहीं कि क्या याचिकाकर्ता एक आदतन अपराधी है और बिल्कुल भी नहीं सुधरने वाला है। लेकिन, राज्य ने उसके निष्ठा बदलने से पहले उसके खिलाफ एक भी आपराधिक मामला दर्ज नहीं किया। इसलिए, यह अटकलें लगाई जा सकती हैं कि क्या राज्य पुलिस जानबूझकर किसी पुराने अपराध को नजरअंदाज कर रही थी, या यह सच है कि याचिकाकर्ता को राजनीतिक निष्ठा बदलने के लिए इन मामलों में झूठा फंसाया गया था”
अधिकारी द्वारा दायर याचिकाओं में 16 एफआईआर रद्द करने के निर्देश देने की मांग की गई थी। 16 में से 15 एफआईआर में न्यायालय ने पाया कि या तो अधिकारी के खिलाफ कोई विशेष आरोप नहीं थे या फिर केस डायरी को प्रथम दृष्टया पढ़ने पर भी शुभेंदु अधिकारी के खिलाफ कथित अपराध नहीं बनते थे।
अंतिम शेष एफआईआर में कोर्ट ने उल्लेख किया कि अधिकारी को अभी तक एफआईआर में आरोपी के रूप में नामित नहीं किया गया है, जिसमें आरोप लगाया गया है कि कुछ लोगों ने फर्जी नौकरी रैकेट के तहत अधिकारी के नाम पर धन इकट्ठा करने की साजिश रची थी।
इसलिए, जस्टिस सेनगुप्ता ने निष्कर्ष निकाला कि अधिकारी के खिलाफ मामले में किसी भी एफआईआर को विशेष रूप से रद्द करने की कोई आवश्यकता नहीं है। अदालत के समक्ष चार मामलों में कई आरोपी शामिल थे। इसलिए, भले ही अधिकारी के संबंध में वे एफआईआर अब रद्द कर दी गई हों, लेकिन शेष आरोपियों के संबंध में वे लंबित हैं।
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कोर्ट ने अब आदेश दिया है कि शेष आरोपियों के संबंध में जांच पूरी करने के लिए केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और राज्य पुलिस के अधिकारियों के साथ एक विशेष जांच दल (एसआईटी) का गठन किया जाए। कोर्ट ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि कुछ प्राथमिकियों में राज्य ने कहा है कि वह आपराधिक कार्यवाही जारी रखने के लिए दबाव नहीं डाल रहा है।
न्यायालय ने घटनाक्रम को विचित्र बताया
न्यायमूर्ति सेनगुप्ता ने कहा कि आपराधिक मामला बहुत गंभीर होता है… यह वास्तव में बहुत अजीब है कि राज्य, जो अपने नागरिकों के अधिकारों का अंतिम रक्षक है, आठ आपराधिक कार्यवाहियों (तीन को औपचारिक रूप से चुनौती दी गई, शेष का केवल सुनवाई के दौरान उल्लेख किया गया) में निरस्तीकरण की प्रार्थना पर जोर न देने या गंभीरता से विरोध न करने का निर्णय लेने में इतना लापरवाह रुख अपना सकता है। यदि राज्य का यही रुख होता, तो वे बहुत पहले ही कार्यवाही को समाप्त कर सकते थे। “
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