Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में प्रवर्तन निदेशालय (ED) के सहायक निदेशक विशाल दीप को जमानत दे दी। विशाल दीप को छात्रवृत्ति निधि में कथित वित्तीय अनियमितताओं की जांच के दौरान दो कॉलेज प्रशासकों (Two College Administrators) से रिश्वत मांगने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्चिस एम.एम.सुंदरेश और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की खंडपीठ ने पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के उस आदेश को खारिज कर दिया जिसमें उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया गया था। शीर्ष अदालत ने कहा कि जांच पूरी हो चुकी है, आरोप पत्र पहले ही दाखिल किया जा चुका है, तथा अधिकारी को अब और हिरासत में रखने की जरूरत नहीं है।

हाई कोर्ट ने तीन महीने पहले कुछ ज्यादा ही सख्त रुख अपनाया था। हाई कोर्ट ने कहा था कि आरोप वरिष्ठ क़ानून प्रवर्तन अधिकारियों द्वारा अवैध रिश्वत की पूर्व-नियोजित मांग की ओर इशारा करते हैं और सबूतों को एक “सुनियोजित साज़िश” का संकेत बताया था। हाई कोर्ट के अनुसार, आरोपी अधिकारी पर आरोप है कि उसने मांग को पूरा करने के लिए एक उपनाम, एन्क्रिप्टेड एप्लीकेशन और यहां तक ​​कि अपने परिवार से जुड़े वाहनों का भी इस्तेमाल किया। अपनी चिंताओं को संक्षेप में प्रस्तुत करते हुए हाई कोर्ट ने कहा था कि कथित आचरण ने संस्थागत अखंडता पर आघात किया है।

हाई कोर्ट ने कहा था, “याचिकाकर्ता विशाल दीप के खिलाफ जांच के परिणाम में हेरफेर करने और गिरफ्तारी को प्रभावित करने के बदले में अवैध रिश्वत मांगने के आरोप संस्थागत अखंडता पर प्रहार करते हैं।”

यह आरोप तब लगे जब एक अलग मनी लॉन्ड्रिंग जांच में कार्रवाई का सामना कर रहे कॉलेज प्रबंधन के दो अधिकारियों ने शिकायत की कि गिरफ्तारी से बचने के बदले उनसे रिश्वत मांगी गई थी। इन शिकायतों के आधार पर, सीबीआई ने भ्रष्टाचार का मामला दर्ज किया और बाद में ईडी अधिकारी को गिरफ्तार कर लिया। हाई कोर्ट द्वारा उनकी जमानत खारिज किए जाने के बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

यह भी पढ़ें- ‘आरक्षण 50 प्रतिशत से ज्यादा कैसे हो सकता है?’, सुप्रीम कोर्ट ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से पूछा; जानें पूरा मामला

सुप्रीम कोर्ट में ईडी अधिकारी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुक्ता गुप्ता ने दलील दी कि आरोप पत्र दाखिल होने के बाद भी उन्हें हिरासत में रखना मुकदमे से पहले की सज़ा के समान है और उन्होंने जेल में काफी समय बिताया है, जबकि मुकदमा जल्द खत्म होने की संभावना नहीं है। उन्होंने यह भी दलील दी कि संबंधित मामले में पहले ज़मानत का दुरुपयोग करने का कोई आरोप नहीं है।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल राजा ठाकरे द्वारा प्रतिनिधित्व की गई सीबीआई ने जमानत का विरोध किया और कथित कदाचार की गंभीरता पर हाई कोर्ट के विस्तृत निष्कर्षों पर भरोसा किया। हालाँकि, सुप्रीम कोर्ट ने खुद को कार्यवाही के चरण तक ही सीमित रखा। शीर्ष अदालत कहा कि जांच पूरी हो चुकी है, अभियोजन पक्ष की सामग्री पहले ही निचली अदालत में दाखिल की जा चुकी है और अभियुक्त से मुकदमे में सहयोग की अपेक्षा की जाती है।

यह भी पढ़ें- ‘दिल्ली में निर्माण कार्य पर कोई प्रतिबंध नहीं’, सुप्रीम कोर्ट बोला- लाखों परिवार की आजीविका इस पर निर्भर