High Court Judges Transferred Process: केंद्र सरकार ने 14 अक्टूबर को 11 हाई कोर्ट के जजों का एक उच्च न्यायालय से दूसरे उच्च न्यायालय में ट्रांसफर की अधिसूचना जारी की थी। यह ट्रांसफर सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा 25 अगस्त, 2025 को कई गईं सिफारिशों के अनुरूप है।
इस आधार पर दिल्ली हाई कोर्ट के दो जज जस्टिस तारा वितस्ता गंजू और जस्टिस अरुण मोंगा को क्रमश: कर्नाटक हाई कोर्ट और राजस्थान हाई कोर्ट में ट्रांसफर किया गया। वहीं, केरल हाई कोर्ट से जस्टिस चंद्रशेखरन सुध को दिल्ली हाई कोर्ट ट्रांसफर किया गया।
गौरतलब है कि जस्टिस मोंगा को मई 2025 में राजस्थान हाई कोर्ट से दिल्ली हाई कोर्ट ट्रांसफर किया गया था। उन्होंने जुलाई 2025 में वहां पदभार ग्रहण किया था। राजस्थान हाई कोर्ट में उनकी वापसी के कारण सार्वजनिक रूप से उपलब्ध नहीं हैं। जस्टिस मोंगा मूल रूप से पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट से हैं।
दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस मोंगा वरिष्ठता क्रम में 14 नंबर पर थे और जस्टिस गंजू 21 नंबर पर। वहीं, राजस्थान हाई कोर्ट में जस्टिस मोंगा वरिष्ठता के क्रम में 7वें नंबर पर होंगे। जबकि कर्नाटक हाई कोर्ट में जस्टिस गंजू 38 पर होंगी।
हाई कोर्ट के जजों का क्यों किया जाता है ट्रांसफर?
हाई कोर्ट के जजों का ट्रांसफर प्रशासनिक कारणों से किया जाता है। जैसे न्यायिक कार्यभार को संतुलित करना, न्यायालयों की कार्यकुशलता में सुधार करना और राष्ट्रीय एकीकरण को बढ़ावा देना। ट्रांसफर व्यक्तिगत परिस्थितियों या जजों के व्यावसायिक विकास के कारण भी शुरू किए जा सकते हैं। हालांकि, यह प्रक्रिया कभी-कभी विवादस्पद भी होती है, लेकिन यह एक संवैधानिक प्रावधान है। जिसे पदोन्नति के संभावित मार्ग के रूप में भी देखा जा सकता है। क्योंकि कई जज ट्रांसफर के बाद ही मुख्य न्यायाधीश बनते हैं।
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ट्रांसफर प्रक्रिया, क्या कहता है संविधान का आर्टिकल 222
भारतीय संविधान का आर्टिकल 222 एक जज के एक हाई कोर्ट से दूसरे हाई कोर्ट में ट्रांसफर से संबंधित है। संविधान के इस आर्टिकल के तहत किसी जज के ट्रांसफर के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश को संबंधित हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीशों और सर्वोच्च न्यायालय के चार सबसे वरिष्ठ जजों (कॉलेजियम) के पैनल से परामर्श करना होगा। यह सिफारिश केंद्रीय कानून मंत्री और प्रधानमंत्री के माध्यम से राष्ट्रपति को भेजी जाती है। इसका अर्थ है कि कार्यपालिका किसी न्यायाधीश का ट्रांसफर कर सकती है, लेकिन केवल भारत के मुख्य न्यायाधीश से परामर्श के बाद। समय-समय पर, ऐसे प्रस्ताव आए हैं कि प्रत्येक उच्च न्यायालय में एक-तिहाई न्यायाधीश अन्य राज्यों से होने चाहिए। नियम के मुताबिक, ट्रांसफर न्यायाधीश प्रतिपूरक भत्ते का हकदार होता है।
ट्रांसफर से जुड़े विवाद
पारदर्शिता का अभाव: ट्रांसफर के विशिष्ट कारणों का हमेशा खुलासा नहीं किया जाता, जिससे सार्वजनिक और कानूनी चिंताएं उत्पन्न होती हैं।
सजा के रूप में माना जाना: पारदर्शिता की कमी के कारण, ट्रांसफर को प्रशासनिक कार्रवाई के बजाय सजा के रूप में देखा जा सकता है।
न्यायिक स्वतंत्रता को कमजोर करना: बार-बार या अस्पष्टीकृत ट्रांसफर न्यायिक स्वतंत्रता के बारे में चिंताएं पैदा कर सकते हैं, क्योंकि इस प्रक्रिया को न्यायाधीशों पर दबाव डालने के तरीके के रूप में देखा जा सकता है।
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