Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने एक विधि स्नातक के खिलाफ आपराधिक मामला रद्द करने से इनकार कर दिया। कानून स्नातक छात्र ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करके कहा था कि बाबरी मस्जिद एक दिन फिर से बनाई जाएगी।

बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने कहा कि उन्होंने पोस्ट देखी है। पीठ याचिकाकर्ता मोहम्मद फैय्याज मंसूरी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही में हस्तक्षेप नहीं करना चाहती। याचिकाकर्ता ने कथित तौर पर 5 अगस्त, 2020 को यह फेसबुक पोस्ट अपलोड की थी, जिसमें लिखा था, “बाबरी मस्जिद का भी एक दिन पुनर्निर्माण किया जाएगा, जिस तरह तुर्की में सोफियान मस्जिद का पुनर्निर्माण किया गया था।”

याचिकाकर्ता की ओर से पेश वकील तल्हा अब्दुल रहमान ने दलील दी। दलील में कहा गया कि पोस्ट में कोई अश्लीलता नहीं थी और मंसूरी ने केवल इतना कहा था कि बाबरी मस्जिद का पुनर्निर्माण तुर्की की मस्जिद की तरह किया जाएगा। उन्होंने तर्क दिया कि भड़काऊ पोस्ट किसी अन्य व्यक्ति ने किया था, लेकिन उसकी जांच नहीं की गई।

जस्टिस सूर्यकांत ने वकील से कहा कि आप हमारी ओर से कोई कठोर टिप्पणी न आमंत्रित करें। कोर्ट के मूड को भांपते हुए वकील ने याचिका वापस लेने की मांग की, जिसकी अदालत ने उन्हें अनुमति दे दी।

पीठ ने सोमवार को आदेश दिया, “कुछ समय तक मामले पर बहस करने के बाद, याचिकाकर्ता के वकील ने इस याचिका को वापस लेने की मांग की और उन्हें इसकी अनुमति दी गई। तदनुसार, विशेष अनुमति याचिका को वापस लिया गया मानकर खारिज किया जाता है। यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि याचिकाकर्ता द्वारा उठाए गए सभी बचाव पक्ष के तर्कों पर ट्रायल कोर्ट द्वारा उनकी योग्यता के अनुसार विचार किया जाएगा।”

मंसूरी ने इलाहाबाद हाई कोर्ट की लखनऊ पीठ के उस आदेश को चुनौती दी थी जिसमें उनके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामले को रद्द करने से इनकार कर दिया गया था। अगस्त, 2020 में उन पर एक पोस्ट करने के लिए मामला दर्ज किया गया था जिसमें एक अन्य व्यक्ति ने हिंदू समुदाय के देवताओं के खिलाफ कुछ अपमानजनक टिप्पणी की थी।

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इस पोस्ट पर संज्ञान लेते हुए लखीमपुर खीरी के जिला मजिस्ट्रेट ने उन्हें हिरासत में लेने का आदेश दिया। बाद में इलाहाबाद हाई कोर्ट ने हिरासत आदेश को रद्द कर दिया।

हालांकि, इस वर्ष की शुरुआत में ट्रायल कोर्ट ने उनके खिलाफ दायर आरोपपत्र पर संज्ञान लिया था। मंसूरी ने अपने खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने के लिए फिर से हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया, लेकिन हाई कोर्ट ने इसे रद्द करने से इनकार कर दिया। इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

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