भारतीय कप्तान विराट कोहली विश्व क्रिकेट में नंबर एक खिलाड़ी माने जाते हैं। अपनी काबिलियत और प्रदर्शन के दम पर उन्होंने खूब नाम, दौलत और शोहरत कमाई है। आज भले ही उनके पास कई गाड़ियां हों, लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब वह खेलने जाने के लिए डीटीसी बस में सफर किया करते थे। तब उनके दिमाग में कभी-कभी टिकट नहीं लेने का मन भी करता था।
हालांकि, इसी चक्कर में वह एक बार फंसते-फंसते बचे थे। डीटीसी बस में खुद को स्टॉफ बताना उन्हें भारी पड़ गया था। तब उन्होंने बस से भागकर अपना पिंड छुड़ाया था। भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान ने यह बात भारतीय फुटबॉल टीम के कप्तान सुनील छेत्री से बातचीत के दौरान बताई थी। पांच नवंबर 1988 को दिल्ली में जन्में कोहली ने सुनील छेत्री से इंस्टाग्राम चैट के दौरान बताया था, ‘एक बार मैं बस में बिना टिकट लिए चढ़ गया। कंडक्टर के टिकट मांगने पर मैंने स्टॉफ बोल दिया। लेकिन मेरा डील-डौल और हावभाव ऐसे नहीं थे। इससे कंडक्टर को शक हो गया है। उसने पलट कर सवाल कर लिया। कहां का स्टॉफ? ऐसे में खुद को फंसता हुआ देख मैं बस से उतरकर भाग गया था।’
छेत्री ने कोहली से पूछा था, ‘डीटीसी में सफर करते हुए पास था या टिकट नहीं लेते थे, कि पकड़े गए तो देखा जाएगा?’ इस पर कोहली ने कहा, ‘नहीं मेरी शक्ल ऐसी नहीं थी कि कोई देख कर छोड़ देगा। हमारी पर्सनालिटी ही ऐसी नहीं थी कि कंडक्टर को बोलें, हां भाई स्टॉफ हैं। कुछ लड़कों का अलग ही टशन होता था, जो स्टॉफ चलाते थे। उनको देखकर कंडक्टर दोबारा बोलता नहीं था।’
कोहली ने बचपन का बस से जुड़ा एक और किस्सा बताया। कोहली ने कहा, ‘जिस सोसाइटी में हम रहते थे, वहां हर गुरुपर्व पर रोड पर आने-जाने वाले लोगों को छबील (ठंडी शरबत) बांटते थे। वहां से बसे भी गुजरती थीं। मैं भी छबील बांटता था। मुझे बहुत मजा आता था उस काम में। एक बार क्या हुआ, मैं एक बस में ट्रे और गिलास लेकर चढ़ गया। बस में बहुत भीड़ थी। मुझसे गलती यह हो गई कि मैंने ड्राइवर को पहले ही पिला दिया। इसके बाद उसने तो बस चलानी शुरू कर दी। वह मुझे चार-पांच स्टैंड आगे (करीब तीन किलोमीटर) तक ले गया। किसी ने गिलास वापस नहीं किए। फिर उसके बाद वहां से मैं जग हाथ में लेकर दौड़ता हुआ लौटा।’
इस बीच छेत्री ने बताया कि कैसे वह बिना टिकट लिए डीटीसी बस में यात्रा किया करते थे। छेत्री दिल्ली कैंट से छत्रसाल स्टेडियम में फुटबॉल खेलने जाया करते थे। छेत्री ने कहा, ‘मुझे घर से रोजाना 20 रुपए मिलते थे। बस में बिना टिकट पकड़े जाने पर 20 रुपए ही फाइन था। मैं हमेशा बिना टिकट लिए सफर करता था। सोचता था कि पकड़ा जाऊंगा तो दे दूंगा 20 रुपए। एक बार पकड़े जाने पर 20 रुपए फाइन भी दिया था। फिर बाद में 50 रुपए फाइन हो गया। तब मैंने सोचा अब तो टिकट लेकर चलने में ही भलाई है।’