विदर्भ के बल्लेबाज दानिश मालेवार ने बुधवार (26 फरवरी) को केरल के खिलाफ रणजी ट्रॉफी 2024-25 के फाइनल में शानदार बल्लेबाजी की। उन्होंने पहले दिन 168 गेंदों में शतक जड़ा। नागपुर के जामथा में वीसीए स्टेडियम में केरल ने गेंदबाजी का फैसला किया। दाएं हाथ के इस स्टाइलिश बल्लेबाज ने विदर्भ को हरी भरी पिच पर खराब शुरुआत से उबरने में मदद की। इस पिच से पहले सत्र में तेज गेंदबाजों को मदद मिली।
बल्लेबाजी क्रम में थोड़ा बदलाव करते हुए अक्षय वाडकर की टीम ने निचले क्रम के बल्लेबाज पार्थ रेखाड़े और दर्शन नालकांडे को नई गेंद का सामना करने के लिए भेजा। केरल के तेज गेंदबाजों ने 12 ओवर के अंदर तीन विकेट लिए। इससे मेजबान टीम का स्कोर 3 विकेट पर 24 रन हो गया। चौथे नंबर पर बल्लेबाजी करने आए मालेवार और पांचवें नंबर के करुण नायर ने अहम साझेदारी।
छक्का-चौका लगाकर शतक पूरा किया
इस साझेदारी को आगे बढ़ाते हुए मालेवार ने मौजूदा सीजन का अपना दूसरा शतक बनाया। यह विदर्भ के लिए उनका पहला सीजन है। बाएं हाथ के स्पिनर आदित्य सरवटे की गेंद पर छक्का लगाकर 99 रन बनाने के बाद मालेवार ने मिड-विकेट पर चौका लगाकर शतक पूरा किया।
नागपुर में प्रथम श्रेणी डेब्यू
दानिश मालेवार ने रणजी सीजन के पहले हाफ में आंध्र के खिलाफ नागपुर में प्रथम श्रेणी डेब्यू किया और तीसरे नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए दूसरी पारी में 61 रन बनाकर प्रभावित किया। इसके बाद उन्होंने अपनी अगली तीन पारियों में 56, 42 और 59 रन बनाए और फिर नागपुर में गुजरात के खिलाफ घरेलू मैदान पर अपना पहला प्रथम श्रेणी शतक (115) बनाया।
रणजी नॉकआउट चरण में शानदार प्रदर्शन
छोटे प्रारूपों में अभी तक डेब्यू नहीं करने वाले 21 वर्षीय मालेवार इस महीने की शुरुआत में रणजी नॉकआउट चरण शुरू होने के बाद से ही रंग में थे। क्वार्टर फाइनल में तमिलनाडु के खिलाफ 75 रन और शून्य रन बनाने के बाद मालेवार ने मुंबई के खिलाफ 79 और 29 रन बनाकर सेमीफाइनल में बहुमूल्य योगदान दिया। फिर फाइनल में केरल के खिलाफ शानदार प्रदर्शन किया।
पिता विष्णु क्रिकेट के दीवाने
मालेवार के पिता विष्णु क्रिकेट के दीवाने हैं। उन्होंने शादी के समय ही तय कर लिया था कि अगर उनका बेटा हुआ तो वे उसे क्रिकेटर बनाएंगे। लेकिन लोअर मिडिल क्लास से होने के कारण विष्णु को पता था कि यह मुश्किल होगा। मालेवार ने सेमीफाइनल के दौरान कहा था, “मेरे पिता हमेशा चाहते थे कि मैं क्रिकेटर बनूं और जब मैं सात साल का था तब मुझे एक एकेडमी में दाखिला मिल गया। उन्होंने बहुत सी कठिनाइयों का सामना किया, लेकिन यह सुनिश्चित किया कि मेरी क्रिकेट संबंधी जरूरतों का ख्याल रखा जाए। मेरे जूनियर दिनों में जब मैं रन बनाता था तो ऐसे लोग थे जो मुझे बैट, पैड और दस्ताने देते थे। पैसे मेरे अंडर-19 दिनों के बाद ही आने शुरू हुए।”