बिहार के वैभव सूर्यवंशी ने शुक्रवार 5 जनवरी को रणजी ट्रॉफी टूर्नामेंट के जरिए अपना फर्स्ट क्लास डेब्यू किया। वैभव फर्स्ट क्लास क्रिकेट में सबसे कम उम्र में डेब्यू करने वाले चौथे भारतीय खिलाड़ी बने। रणजी ट्रॉफी में सबसे कम उम्र में डेब्यू करने वाले खिलाड़ी अलीमुद्दीन थे जिन्होंने 1942-43 सीजन में 12 साल 73 दिन की उम्र में ही पदार्पण किया था। वैभव के क्रिकेटर बनने की कहानी संघर्ष से भरी है। उनके क्रिकेटर बनने के पीछे उनके पिता संजीव सूर्यवंशी का बहुत बड़ा हाथ है।
6-7 साल की उम्र में वैभव ने थाम लिया था बैट
संजीव सूर्यवंशी ने इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में बताया है कि उनका खुद ही क्रिकेट से बहुत लगाव था। शुरू में वह मुंबई में रहते थे जहां उन्होंने आजीविका के लिए काफी संघर्ष किया। उन्होंने वैभव के अंदर क्रिकेट का जुनून मुंबई में ही देख लिया था। संजीव बताते हैं कि वैभव ने 6-7 साल की उम्र से ही बैट थाम लिया था और ये देखकर वह काफी हैरान थे।
सुलभ शौचालयों में किया काम
एक्सप्रेस के साथ बातचीत में संजीव सूर्यवंशी ने कहा कि मुझे खुद क्रिकेट बहुत पसंद था, लेकिन मैं क्रिकेटर नहीं बन पाया और फिर बिहार में क्रिकेट तो क्या किसी भी खेल की कोई गुंजाइश नहीं है। संजीव बताते हैं कि वह 19 साल की उम्र में ही बिहार छोड़कर मुंबई चले गए थे। वहां आजीविका के लिए बहुत सी नौकरियां की जैसे कि एक नाइट क्लब में बाउंसर की नौकरी भी मुझे करनी पड़ी। इसके अलावा बंदरगाह पर सुलभ शौचालयों में भी मैंने काम किया था।
अक्सर छुट्टी वाला दिन मैदान में होता था- संजीव
संजीव आगे बताते हैं कि मैं अक्सर अपनी छुट्टी वाला दिन मैदान पर ही बिताता था। वहां क्रिकेट खेलने वाले छोटे बच्चे पैड और हेलमेट में खेलते थे। मैं कई घंटों तक उन्हें देखता था। मैंने तभी तय कर लिया था कि मेरा चाहे बेटा हो या बेटी मैं उसे क्रिकेटर जरूर बनाऊंगा। संजीव ने आगे कहा कि जिस मुंबई ने मुझे आजीविका दी उसी मुंबई के खिलाफ मेरे बेटे ने फर्स्ट क्लास डेब्यू किया। मेरा एक सपना साकार हो गया। संजीव बताते हैं कि उनके दो बेटे हैं। बड़े बेटे की क्रिकेट में कोई दिलचस्पी नहीं थी, लेकिन वैभव ने बाएं हाथ के बल्लेबाज के रूप में मेरा सपना पूरा कर दिया।